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    Lok Sabha Election 2024:बंगाल में श्रीराम... संदेशखाली समेत इन मुद्दों पर हो रही सियासी जंग, किस पार्टी के क्‍या हैं मुद्दे?

    Updated: Mon, 11 Mar 2024 02:01 PM (IST)

    पश्चिम बंगाल में चुनावी मुद्दे बदल चुके हैं। साल 2016 के बाद से देखा जा रहा है कि विधानसभा हो या फिर लोकसभा चुनाव जन सरोकार के मुद्दे पीछे चले जा रहे हैं। अब जाति-धर्म और क्षेत्र आधारित आइडेंटिटी पॉलिटिक्स यानी पहचान की राजनीति जमकर की जा रही है। विशेषकर 2021 के विधानसभा चुनाव में तो सभी दलों ने बंगाली अस्मिता और पहचान की राजनीति का दांव खेला था।

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    Lok Sabha Election 2024: बंगाल में हो रही अस्मिता और पहचान की सियासी जंग।

     जयकृष्ण वाजपेयी, कोलकाता। साल 1952 से लेकर 2016 तक बंगाल की राजनीति और विशेषकर चुनावी विमर्श में सर्वहारा, किसानों-मजदूरों और आमजनों के मुद्दे हावी हुआ करते थे, लेकिन 2016 के बाद से देखा जा रहा है कि विधानसभा हो या फिर लोकसभा चुनाव जन सरोकार के मुद्दे पीछे चले जा रहे हैं। अब जाति-धर्म और क्षेत्र आधारित आइडेंटिटी पॉलिटिक्स यानी पहचान की राजनीति जमकर की जा रही है।

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    विशेषकर 2021 के विधानसभा चुनाव में तो सभी दलों ने बंगाली अस्मिता और पहचान की राजनीति का दांव खेला था। अभी 2024 के लोकसभा चुनाव की घोषणा भी नहीं हुई, लेकिन उससे पहले ही एक बार फिर बंगाली अस्मिता और आइडेंटिटी पॉलिटिक्स पर धार देने की कवायद शुरू हो गई है।

    मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी का बंगाली अस्मिता और पहचान की राजनीति वाला कार्ड आजमाया हुआ है। साल 2021 के विधानसभा चुनाव में इन्हीं कार्डों के सहारे भाजपा के आक्रमण को कुंद कर भारी जीत दर्ज की थी। यह अलग बात है कि ममता की टीएमसी के अलावा भाजपा, कांग्रेस-माकपा गठबंधन ने भी जमकर पहचान की राजनीति की थी।

    अभी से ही ऐसा लग रहा है कि दिल्ली की सत्ता के खेल में यह राजनीति बंगाल के चुनावी इतिहास में इस बार एक और नया अध्याय जोड़ सकती है। अभी जो स्थिति दिख रही है, उसमें हर दल की ओर से प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सांप्रदायिकता के तड़के के साथ जाति-पंथ रूपी राजनीतिक हथियार को शान देते दिख रहे हैं।

    राजनीतिक गलियारों से मिल रहे संकेतों से साफ है कि लोकसभा चुनाव में शह-मात के इस खेल में एक बार फिर राजनीतिक पार्टियां बंगाली अस्मिता और पहचान की राजनीति को हथियार बनाकर क्लास पॉलिटिक्स यानी वर्ग की राजनीति को पीछे छोड़ देंगे।

    ममता बनर्जी किन मुद्दों को बना रही हथियार?

    मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो अभी से ही सरना धर्म कोड लागू करने, कुड़मी समुदाय को एसटी का दर्जा देने, संदेशखाली कांड पर मुख्य आरोपित शाहजहां शेख का परोक्ष रूप से बचाव कर और स्थानीय-बाहरी वाला मुद्दा उठा बंगाली अस्मिता की बातें कहकर पहचान की राजनीति को एक बार फिर हवा दे रही हैं। साथ ही उनके दल के विधायक और सांसद अयोध्या राम मंदिर को लेकर ऊल-जलूल बयान दे रहे हैं।

    वहीं, भाजपा खुद को बंगाली अस्मिता, संस्कृति व विभूतियों से जोड़कर जय श्रीराम का नारा बुलंद कर रही है।

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    मुस्लिम मतदाता को रिझाने में लगे माकपा-कांग्रेस नेता

    दूसरी ओर धर्मनिरपेक्षता का दंभ भरने वाले माकपा और कांग्रेस नेता भी मुस्लिम वोटरों को रिझाने में लगे हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा बंगाल के उन्हीं जिलों से होकर गुजरी, जहां मुस्लिम आबादी सर्वाधिक है। माकपा के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम और अन्य नेता राहुल गांधी की यात्रा में मुर्शिदाबाद जिले में शामिल हुए हैं, जहां मुस्लिम आबादी 75 प्रतिशत से अधिक है।

    अगर माकपा-कांग्रेस में गठबंधन होता है तो उसमें एक बार फिर फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट के भी शामिल होने के पूरे आसार हैं। पीरजादा की पार्टी स्पष्ट  रूप से मुस्लिम वोट बैंक की ही राजनीति करती है।

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