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    सपा-बसपा को छोड़कर काशी की जनता ने सभी को भेजा संसद, पीएम मोदी इस सीट से बना चुके हैं जीत का रिकॉर्ड

    लोकसभा क्षेत्र वाराणसी (77) का राजनीतिक इतिहास काफी शानदार रहा है। यहां से दो बार से सांसद नरेन्द्र मोदी पिछले 10 वर्षों से देश के प्रधानमंत्री हैं। पहले लोकसभा चुनाव से यह सीट काफी दिनों तक कांग्रेस का गढ़ रही तो पिछले तीन दशक से भाजपा के कब्जे में है। इसके बावजूद यहां से कम्युनिस्ट और जनता दल और कई बाहरी लोगों को भी संसद जाने का मौका मिला।

    By Ashok Singh Edited By: Abhishek Pandey Updated: Mon, 11 Mar 2024 11:24 AM (IST)
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    सपा-बसपा को छोड़कर सभी को संसद भेजा काशी की जनता ने

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। लोकसभा क्षेत्र वाराणसी (77) का राजनीतिक इतिहास काफी शानदार रहा है। यहां से दो बार से सांसद नरेन्द्र मोदी पिछले 10 वर्षों से देश के प्रधानमंत्री हैं। पहले लोकसभा चुनाव से यह सीट काफी दिनों तक कांग्रेस का गढ़ रही तो पिछले तीन दशक से भाजपा के कब्जे में है।

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    इसके बावजूद यहां से कम्युनिस्ट और जनता दल और कई बाहरी लोगों को भी संसद जाने का मौका मिला। बावजूद इसके यहां से प्रदेश की राजनीति में प्रमुख स्थान रखने वाली सपा-बसपा को संसद जाने का मौका काशीवासियों ने नहीं दिया।

    लगातार तीन बार सांसद रहे रघुनाथ सिंह

    लोकसभा चुनाव की शुरुआत होते ही कांग्रेस के रघुनाथ सिंह सांसद बने। वह लगातार तीन बार सांसद रहे। इसके बाद सीपीएम के एसएन सिंह ने लाल झंडा लहराया। तब कांग्रेस ने 1971 के चुनाव में अपना प्रत्याशी बदल कर काशी विद्यापीठ के तत्कालीन कुलपति प्रो. राजाराम शास्त्री को मैदान में उतारा। प्रो. शास्त्री ने भारतीय जनसंघ के कमला प्रसाद सिंह को हराया।

    जेपी लहर में 1977 के चुनाव में भारतीय लोकदल के चंद्रशेखर सिंह ने कांग्रेस के प्रो. शास्त्री से सीट छीन ली। इसके बाद 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने अपने प्रमुख नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी को मैदान में उतारा। उनके सामने थे इंदिरा गांधी को हराने वाले राजनारायण जिन्होंने 1977 में रायबरेली में उन्हें हराया था।

    लालबहादुर शास्त्री के बेटे ने दर्ज की थी जीत

    अंतिम दिनों में बदली राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से राजनारायन चुनाव हार गए। इंदिरा गांधी की मौत के बाद 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस के श्यामलाल यादव सांसद बने। इसके बाद केंद्र की राजनीति में वीपी सिंह के उद्भव के बाद 1989 में जनता दल के प्रत्याशी बने भूतपूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री।  उन्होंने कांग्रेस से सीट छीन ली।

    वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस लेने और सरकार गिरने के बाद हुए चुनाव में भाजपा ने यहां से श्रीराम मंदिर के आंदोलन के अगुवा पूर्व पुलिस अधिकारी श्रीशचंद दीक्षित को मैदान में उतारा। यहीं से भगवा ब्रिगेड का उद्भव हुआ जो आज तक जारी है।

    पीएम मोदी ने लगातार दो बार दर्ज की जीत

    1996 में सांसद बने भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल लगातार तीन बार सांसद बने। 2004 में कांग्रेस के डा. राजेश मिश्र ने भाजपा से सीट छीनकर एक बार फिर कांग्रेस के हाथ को मजबूत किया। 2009 में भाजपा ने अपने राष्ट्रीय नेता डा. मुरली मनोहर जोशी को मैदान में उतारा। उन्हें टक्कर देने बसपा ने माफिया मुख्तार अंसारी को उतारा। मुख्तार ने कड़ी टक्कर दी लेकिन जीत भाजपा को मिली। 2014 से नरेन्द्र मोदी भाजपा का भगवा रंग चटक कर रहे हैं।

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