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    'किसी का हाथ तो किसी का काट दिया अंगूठा', जब वोट न डालने के फरमान को इन बहादुर मतदाताओं ने कह दिया था ना

    Updated: Fri, 19 Apr 2024 11:51 AM (IST)

    देश में आज लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो रहा है। इस बीच अविभाजित बिहार की है। जब नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सली लोकतंत्र के महापर्व में विघ्न डालते रहे हैं। हाल के वर्षों में लगातार चले सुरक्षाबल के अभियानों से नक्सली कमजोर पड़े हैं। पहले चुनावों में नक्सली पोस्टर चिपकाकर ग्रामीणों के लिए यह फरमान जारी करते थे कि कोई भी वोट डालने नहीं जाएगा।

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    Lok Sabha chunav 2024: हाथ काट देने पर भी नहीं बदला वोट देने का इरादा।

     जुलकर नैन, चतरा। चुनाव में मतदाताओं को डराना-धमकाना अपराध है। ऐसा करने पर सजा भी निर्धारित है, लेकिन अविभाजित बिहार के नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सली लोकतंत्र के महापर्व में विघ्न डालते रहे हैं। हाल के वर्षों में लगातार चले सुरक्षाबल के अभियानों से नक्सली कमजोर पड़े हैं।

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    पहले चुनावों में नक्सली पोस्टर चिपकाकर ग्रामीणों के लिए यह फरमान जारी करते थे कि कोई भी वोट डालने नहीं जाएगा। फरमान का उल्लंघन होने पर नक्सली कई बार ग्रामीणों की जान तक ले लेते थे या तरह-तरह से प्रताड़ित करते थे।

    झारखंड़ में चतरा जिले के जसमुद्दीन अंसारी मतदाताओं के लिए रोल मॉडल हैं। साल 1999 में नक्सलियों के फरमान का उल्लंघन कर मतदान करने पर माओवादियों ने उनका हाथ काट दिया था। इसके बावजूद वह डरे नहीं। वह आज भी मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। गांव के अन्य लोगों को भी प्रेरित करते हैं। 70 वर्षीय अंसारी कहते हैं कि वोट देने से उन्हें कोई वंचित नहीं कर सकता है। जब तक जीवित हूं, मतदान करता रहूंगा।

    महादेव का काट दिया था अंगूठा

    वह जिले के टंडवा प्रखंड के कामता के रहने वाले हैं। नक्सलियों ने उनके साथ ही गाड़ीलौंग गांव के महादेव यादव का भी अंगूठा काट दिया था। इस घटना के करीब चार वर्षों बाद महादेव की मौत हो गई।

    जसमुद्दीन नक्सलियों के अत्याचार की 25 वर्ष पुरानी घटना को याद कर कभी-कभी भावुक हो जाते हैं। 1999 में चतरा समेत कई इलाकों में नक्सलियों का आतंक था। चुनाव में उन्होंने वोट बहिष्कार का नारा दिया था। उस वक्त चतरा का टंडवा प्रखंड हजारीबाग संसदीय क्षेत्र के अधीन था।

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    तब जसमुद्दीन और महादेव एक राजनीतिक दल के प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार कर रहे थे। नक्सलियों के फरमान की परवाह नहीं करते हुए दोनों मतदान सुनिश्चित कराने के अभियान में जुटे थे। उनसे प्रेरित होकर लोग मतदान के लिए आगे आ रहे थे। यह सब देखकर नक्सली बौखला उठे थे। डराने- धमकाने का असर नहीं हुआ तो दोनों को उनके घरों से उठा लिया।

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    सरकार ने दिया नौकरी का भरोसा

    चतरा जिले के सिमरिया विधानसभा क्षेत्र के तत्कालीन विधायक योगेंद्र नाथ ने बिहार विधानसभा में इस मामले को उठाया था। सदन ने न्याय का भरोसा दिलाते हुए दोनों को नौकरी देने का वायदा किया था।

    इसी बीच झारखंड अलग हो गया। यह मामला खटाई में पड़ गया। झारखंड बनने के बाद सिमरिया विधायक किशुन कुमार दास ने विधानसभा में यह मामला उठाया था। हाल ही में सरकार ने दोनों के आश्रितों को सरकारी नौकरी देने का भरोसा दिया है।

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