Loksabha Election 2014: होली के बाद उत्तराखंड में चढ़ेगा सियासी रंग
उत्तराखंड में होली के बाद सियासी रंग चढ़ेगा। सियासतदां अभी होली के रंगों में खलल डालने के मूड में नहीं हैं।
By Edited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 08:08 PM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 11:08 AM (IST)
देहरादून, राज्य ब्यूरो। लोकसभा चुनाव के लिए देवभूमि में भले ही सियासी दलों ने गोटियां फिट कर दी हों, मगर सियासत के इन रंगों पर अभी होली के रंग भारी पड़ रहे हैं। भाग्यविधाता यानी मतदाता त्योहारी रंग में रंगे हुए हैं। सियासतदां भी इसमें खलल डालने के मूड में नहीं हैं। हालांकि, राजनीतिक दलों ने फील्डिंग जरूर सजा ली है, लेकिन फिलहाल वे चुप्पी साधे हैं। यही नहीं, दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों भाजपा और कांग्रेस ने प्रत्याशियों को लेकर अभी पत्ते भी नहीं खोले हैं। ऐसे में साफ है कि यहां होली के बाद ही सियासी रंग परवान चढ़ेगा।
उत्तराखंड में 11 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव के मतदान के लिए सियासी दल लंबे समय से तैयारियों में जुटे थे और अब सभी ने अपनी-अपनी फील्डिंग सजा ली है। कार्यकर्ता रूपी फौज की तैनाती हो चुकी है, जो नेतृत्व से आदेश मिलते ही चुनाव प्रचार में जुट जाएगी। हालांकि, इस सबके बीच सियासी दलों की ओर से बैठकों आदि का सिलसिला जरूर शुरू किया गया है, मगर चुनाव की वह रौनक नजर नहीं आ रही, जो पिछले चुनावों में चुनाव की तिथियों का एलान होने के बाद दिखने लगती थी।
दरअसल, वर्तमान में समूचा राज्य होली के रंग में रंगा हुआ है। लोग रंगों-उमंगों के त्योहार होली की तैयारियों में जुटे हुए हैं। ऐसे में उनके पास सियासतदां की बात सुनने के लिए वक्त कहां है। शायद सियासी दलों ने भी इस बात को समझा है और उन्होंने अपनी चुनावी गतिविधियों को जोर-शोर से शुरू करने में कदम पीछे खींचे हैं। ये भी माना जा रहा कि यहां के चुनावी दंगल में मुख्य रूप से मुकाबले में रहने वाली पार्टियों भाजपा और कांग्रेस द्वारा प्रत्याशियों के नामों का एलान न किए जाने से भी चुनावी गतिविधियां कुछ धीमी धीमी सी हैं।
सूरतेहाल, 21 मार्च को दुल्हैंडी (रंग पंचमी) के बाद ही राज्य में लोस चुनाव का रंग परवान चढ़ेगा। उम्मीद जताई जा रही कि तब तक प्रमुख सियासी दलों के प्रत्याशियों का एलान भी हो जाएगा। साथ ही त्योहार निबटने के बाद प्रत्याशी, उनके समर्थक व राजनीतिक दल जोर-शोर से अभियान शुरू कर देंगे। साफ है कि रंग पंचमी के बाद पहाड़ की कंदराओं से लेकर मैदानी इलाकों तक वादों-दावों और चुनावी नारों की गूंज तेजी से गुंजायमान होने वाली है।
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