'जनता के सुल्तान थे कांग्रेस नेता केडी सुल्तानपुरी', पढ़िए पंचायत के पंच से छह बार के सांसद बनने तक का सफर
Lok sabha Election 2024 लोकसभा चुनावी रण के बीच कई ऐसे नेता हुए हैं जिन्होंने अपनी राजनीतिक जिम्मदारियों और सरल जीवन से आम जनता के दिलों में जगह बनाई। ऐसे ही एक कांग्रेस के नेता थे केडी सुल्तानपुरी। वे अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों को लेकर जितने आग्रही थे निजी जीवन में उतने ही सरल। वे सही मायनों में जनता के सुल्तान थे। पढ़िए नवनीत शर्मा का आलेख…...।
Lok sabha Election 2024: हिमाचल प्रदेश की शिमला संसदीय सीट से लगातार छह बार सांसद रहे कांग्रेस नेता कृष्ण दत्त सुल्तानपुरी उर्फ केडी सुल्तानपुरी अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों को लेकर जितने आग्रही थे, निजी जीवन में उतने ही सरल। नवनीत शर्मा का आलेख…...।
मुझे अजीब लगता था जब लोग पिता जी को एमपी कहते थे। सोचता था कि जो आता है, वह एमपी को ढूंढता है, हमारे पिता जी का नाम एमपी तो नहीं है। लोगों ने किससे पूछकर पिता जी का नाम बदल दिया होगा...और यह सब पांच या 10 वर्ष तक नहीं हुआ, यह नाम 1980 से लेकर 1998 के चुनाव तक गूंजता रहा....निर्बाध...अविरल।’ यह कहते हैं हिमाचल प्रदेश के कसौली से विधानसभा सदस्य विनोद सुल्तानपुरी। वह शिमला संसदीय सीट से सांसद रहे कांग्रेस नेता स्व. कृष्णदत्त सुल्तानपुरी यानी केडी सुल्तानपुरी के छोटे पुत्र हैं।
ऐसे शुरू हुआ राजनीतिक सफर
भारत की राजनीति में ऐसे कम ही उदाहरण होंगे कि कोई व्यक्ति पंचायत का पंच बनने से राजनीतिक यात्रा आरंभ कर छह बार संसद का सदस्य रहा हो। पंच से सांसद बनने की यात्रा में उनके पड़ाव खंड विकास समिति, जिला परिषद भी रहे। पंचायत से प्रारंभ राजनीतिक यात्रा कसौली विधानसभा क्षेत्र की एक पंचायत है बड़ोग। वहां से केडी सुल्तानपुरी ने पंच के रूप में राजनीतिक यात्रा आरंभ की। बाद में बड़ोग पंचायत के प्रधान भी हुए। यह वही बड़ोग है जो इंजीनियर बड़ोग के नाम से बसाया गया है, जहां कालका- शिमला रेलमार्ग की सबसे लंबी सुरंग है।
आज तक क्या बना हुआ है रहस्य?
सुल्तानपुरी तब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े थे। गांव-गांव तक प्रत्येक व्यक्ति से संबंध था। समाज सेवा और क्षेत्र के विकास का भाव इतना था कि सहकारी सभाओं की स्थापना भी की। क्षेत्र के दो बड़े बैंक बघाट बैंक और जोगिंद्रा बैंक की नींव में सुल्तानपुरी के ही प्रयास थे। 1967 में लोगों ने कहा, क्षेत्र की आवाज उठाने के लिए विधानसभा जाना चाहिए। तब सोलन जिला नहीं था, बृहत्तर सोलन था, जिसके विधानसभा क्षेत्र कंडाघाट आदि थे। शेर का चुनाव चिन्ह लेकर केडी सुल्तानपुरी ने चुनाव लड़ा और हार गए। हारे तो सही, लेकिन तत्कालीन जिलाधीश सुल्तानपुरी के घर आए और कहा मैं क्षमायाचना करने आया हूं। आप हारे नहीं हैं, आपको हराया गया है। आपके साथ कुछ गलत हुआ है। क्या गलत हुआ था, यह आज तक रहस्य है।
70 के दशक का ऐसा था सियासी रण
उन्होंने 1972 में दोबारा विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते। तब तक वह हिमाचल निर्माता डा. यशवंत सिंह परमार के करीब आ गए थे। परमार ने पूछा, मंत्री बनोगे? सुल्तानपुरी बोले, पद का क्या करना है, आप मेरे क्षेत्र के काम कर दिया करें। 1977 में जनता पार्टी की लहर आई और सुल्तानपुरी 143 मतों से चमन लाल गाचली से हार गए। यदि उनके संबंधी रघुराज निर्दलीय के रूप में न खड़े होते तो सुल्तानपुरी जीत जाते। 1980 में जब इंदिरा गांधी ने वापसी की तो केडी सुल्तानपुरी पहली बार सांसद बने।
बोली में झलकती थी बघाटी और सिरमौरी महक
मीठी बोली, कड़क काम केडी सुल्तानपुरी की विशेषता यह थी कि वह आगंतुकों के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे। पहाड़ी बोली में ही बात करते थे। घर आने वाला कोई भी व्यक्ति बिना चाय-पानी के नहीं जाता था। तीसरी खूबी यह थी कि क्षेत्र के छोटे मुद्दों से लेकर बड़े विषयों तक उनकी पकड़ थी। जब राम निवास मिर्धा संचार मंत्री थे, केडी सुल्तानपुरी के संसद में पूछे गए प्रश्नों में उनका शिमला संसदीय क्षेत्र ही झलकता था। संसदीय क्षेत्र के तीन जिलों- शिमला, सोलन और सिरमौर के कई गांवों के लिए 1985 में टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित करने से लेकर बागवानी विश्वविद्यालय की मांग करने तक उनके प्रयास रहे हैं। उनकी बोली में बघाटी और सिरमौरी महक आती थी, लेकिन संसद में या बाहर के नेताओं के साथ हिंदी में बात करते थे।
सोलन को घोषित कराया जिला
उन्होंने सोलन को जिला घोषित करवाया और सोलन को ही जिला मुख्यालय बनवाया, जबकि उस समय का सोलन बहुत कम विकसित था। डा. यशवंत सिंह परमार वानिकी एवं बागवानी विश्वविद्यालय भी उन्हीं की देन है। इसे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वीकृति दी तथा लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया था। इसके अलावा स्टोन फ्रूट के लिए बागवानों को समस्या न आए, तो उन्होंने उस जमाने में मल्ला से सुल्तानपुर, छैला, रोहड़ू और चौपाल तक हर मौसम में खुला रहने वाला मार्ग बनवाया था।
सादा जीवन, सादा भोजन
केडी सुल्तानपुरी की आम पृष्ठभूमि सबको मोह लेती थी। उनका अपना कोई एजेंडा नहीं था सिवाय क्षेत्र के विकास के। डॉ. यशवंत सिंह परमार, ठाकुर राम लाल और वीरभद्र सिंह से उनके अच्छे संबंध रहे। अंतिम पारी में वीरभद्र सिंह के साथ अवश्य मतभेद हुए और सातवीं बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया। मगर मतभेद दूर हुए तो एक दिन वीरभद्र सिंह ने कहा, ‘यार केडी, जय बिहारी लाल खाची चले गए, राम लाल ठाकुर चले गए.....एक दिन मैं और आप भी चले जाएंगे....हम स्वर्ग में मंत्रिमंडल का गठन करेंगे।’
सरल पहनावा और टमाटर की खेती
सुल्तानपुरी साधारण कुर्ता- पायजामा पहनते थे। विनोद बताते हैं, ‘घर आते तो देखते थे कि कभी सब्जी नहीं है तो बस सिल पर नमक घिसने के बाद रोटी पर छिड़का और छाछ के साथ खाकर जनसभा के लिए निकल जाते थे। वे जानते थे कि मां ने पूरी खेती संभाली है। पिता जी जितने वर्ष सांसद रहे, उतने वर्ष भी मां ने टमाटर की खेती
नहीं छोड़ी। यह क्षेत्र टमाटर के लिए प्रसिद्ध है। हमने पिता जी से स्कूल की फीस या अन्य कामों के लिए कभी पैसा नहीं मांगा। यह सब हिसाब मां के साथ होता था। पिता जी बाहर का काम अधिक देखते थे।’
पिताजी से मिली ये बड़ी सीख
केडी सुल्तानपुरी के बड़े पुत्र कमल सुल्तानपुरी दिल्ली विश्वविद्यालय से विधि स्नातक हैं। इन दिनों नेशनल कंपनी ट्रिब्यूनल में जाइंट रजिस्ट्रार हैं। वह कहते हैं, ‘बड़ा पुत्र होने के नाते मैं उनके साथ पूरा देश घूमा हूं। हमने पिता जी से यह सीखा कि गांव के फरियादी से कैसे बात करनी है और यदि सामने राजीव गांधी हैं तो लहजा कैसा होना चाहिए। संसदीय पारी समाप्त करने के बाद वह प्रदेश में भी 20 सूत्रीय कार्यक्रम के अध्यक्ष रहे।
घर में हर समय लोगों का आना-जाना लगा रहता था, लेकिन जनता और जनप्रतिनिधि के बीच जैसा फासला अब है, वैसा तब नहीं होता था।’ 20 अप्रैल, 1932 को जन्मे केडी सुल्तानपुरी ने 11 जून, 2006 को अंतिम सांस ली। केडी सुल्तानपुरी ने लगातार विजय का जो मानक बनाया, उसे हिमाचल प्रदेश में आज तक कोई नहीं छू पाया।
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