जागरण संपादकीय: जहां निर्माण, वहां भ्रष्टाचार; सरकारी भवनों के निर्माण में लापरवाही
राजस्थान के झालावाड़ में सरकारी स्कूल का जर्जर भवन गिरने से बच्चों की मौत और घायल होने की घटना सरकारी भवनों की लापरवाही दर्शाती है। घटनाओं के बाद जांच और कार्रवाई की बातें होती हैं पर नतीजा कुछ नहीं निकलता। सवाल यह है कि क्या इसके लिए झालावाड़ की घटना का इंतजार था?
राजस्थान के झालावाड़ में एक सरकारी स्कूल का जर्जर भवन गिरने से कई बच्चों की मौत होना और अनेक का गंभीर रूप से घायल हो जाना यह बताता है कि अपने देश में सरकारी भवनों के निर्माण और उनकी देखरेख में कितनी अधिक लापरवाही बरती जाती है। इस तरह की घटनाएं देश के विभिन्न हिस्सों में रह-रहकर होती ही रहती हैं। जब किसी घटना में जनहानि होती है तो शोक जताने के साथ जांच, कठोर कार्रवाई करने की खूब बातें होती हैं, पर नतीजा ढाक के तीन पात वाला रहता है।
चूंकि ऐसी ज्यादातर बातें दिखावटी होती हैं, इसलिए घटना-दुर्घटना की तह तक कभी नहीं जाया जाता और न ही जिम्मेदार लोगों को समय रहते ऐसा दंड दिया जाता है, जिससे अन्य सबक सीखें। झालावाड़ की घटना पर भी कहा जा रहा है कि स्कूल का भवन गिरने की घटना को बहुत गंभीरता से लिया गया है। खुद मुख्यमंत्री ने घटना का संज्ञान लिया है। शिक्षा विभाग ने आदेश जारी किया है कि जर्जर हो गए स्कूलों में बच्चों को न बैठाएं। क्या ऐसा आदेश जारी करने के लिए झालावाड़ की घटना का इंतजार किया जा रहा था?
शिक्षा निदेशक ने प्रदेश भर के जर्जर स्कूली भवनों की रिपोर्ट मांग ली है। क्या उन्हें नहीं पता था कि राजस्थान में सरकारी स्कूलों की कई इमारतें जर्जर हैं और उनमें बच्चों का पढ़ना जानलेवा साबित हो सकता है? क्या ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी?
यदि यह सच है कि झालावाड़ के जर्जर स्कूली भवन की मरम्मत के लिए पैसा स्वीकृत हो गया था, लेकिन फाइल अटकी पड़ी थी तो यह भी एक तरह की आपराधिक लापरवाही है। बात केवल राजस्थान के झालावाड़ के खस्ताहाल स्कूली भवन की ही नहीं है। देश में न जाने कितने सरकारी भवन ऐसे हैं, जो जर्जर हैं। आए दिन सरकारी भवनों की खस्ताहाल स्थिति के साथ सड़कों के धंसने, पुलों के गिरने की खबरें आती ही रहती हैं। ऐसा इसलिए है कि जहां निर्माण, वहां भ्रष्टाचार भारत की एक कटु सच्चाई है।
सरकारी निर्माण मानकों की अनदेखी करके किया जाता है। इसका मूल कारण भ्रष्टाचार है। हर तरह के सरकारी निर्माण में रिश्वत का बोलबाला है। नेता-नौकरशाह इसके बारे में सब जानते हैं। कई बार तो वे खुद कमीशनखोरी में शामिल रहते हैं। दुखद यह है कि कोई भी हालात बदलने के लिए तैयार नहीं। केवल निर्माण में ही भ्रष्टाचार नहीं है। इसके साथ-साथ इमारतों, सड़कों, पुलों आदि की देखरेख और उनकी मरम्मत में भी घोटाले होते हैं। सरकारी निर्माण में भ्रष्टाचार की बीमारी इतनी अधिक बढ़ गई है कि अब वह निजी क्षेत्र में भी घुस गई है। आम लोग भी मानकों की अनदेखी कर और कई बार तो भ्रष्ट अधिकारियों को पैसे देकर निर्माण कराते रहते हैं।
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