जागरण संपादकीय: भारत और भगदड़, नहीं रुक रही जानलेवा घटना
मनसा देवी मंदिर में भगदड़ का कारण करंट फैलने की अफवाह को बताया जा रहा है। क्या इस तरह की अफवाह को रोका नहीं जा सकता था? हमारा प्रशासन कोई अनुमान लगाने में इतना अक्षम क्यों है? क्या इसका कारण उसकी संवेदनहीनता है अथवा यह कि संबंधित अधिकारी यह जानते हैं कि कैसी भी घटना हो जाए उनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला।
यह बड़े शर्म और दुख की बात है कि भगदड़ की एक और जानलेवा घटना घट गई। इस बार यह घटना हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में हुई। इसमें कुछ लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। यह भगदड़ यही बता रही है कि इस तरह की पहले की घटनाओं से कहीं कोई सबक नहीं सीखा गया। हाल के समय में भगदड़ की कुछ बड़ी घटनाएं हुई हैं।
कुंभ में भगदड़ मचने से अनेक लोग मारे गए थे। इसके बाद बेंगलुरु में आरसीबी की जीत के जश्न में आयोजित समारोह में भगदड़ मचने से कई क्रिकेट प्रशंसकों की मौत हो गई। हाल ही में पुरी में भगदड़ जानलेवा साबित हुई। भगदड़ की घटनाओं के सिलसिले में हाथरस के एक आश्रम में बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की घटना को भी नहीं भूला जा सकता।
आखिर ऐसी कितनी घटनाओं के बाद शासन और प्रशासन चेतेगा। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि भगदड़ की घटनाएं लगभग वैसे ही कारणों से रह रहकर होती रहती हैं, जैसे पहले हो चुकी होती हैं। हर बार जांच, कठोर कार्रवाई करने, सबक सीखने की बातें की जाती हैं, लेकिन नतीजा के ढाक के तीन पात वाला है। न तो शासन-प्रशासन कोई सबक सीख रहा है और न ही आम जनता संयम एवं अनुशासन का परिचय देने की आवश्यकता समझ रही है।
भगदड़ की घटनाओं का सिलसिला कायम रहने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की बदनामी भी होती है, क्योंकि इन घटनाओं से यही संदेश जाता है कि भारत का शासन-प्रशासन भगदड़ रोकने में पूरी तरह नाकाम है। सार्वजनिक स्थलों पर भगदड़ की घटनाएं दुनिया के अन्य देशों में भी होती है, लेकिन उतनी नहीं जितनी अपने देश में होती ही रहती हैं।
मनसा देवी मंदिर में भगदड़ का कारण करंट फैलने की अफवाह को बताया जा रहा है। क्या इस तरह की अफवाह को रोका नहीं जा सकता था? हमारा प्रशासन कोई अनुमान लगाने में इतना अक्षम क्यों है? क्या इसका कारण उसकी संवेदनहीनता है अथवा यह कि संबंधित अधिकारी यह जानते हैं कि कैसी भी घटना हो जाए, उनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला।
आखिर हम दुनिया के अन्य देशों से कोई सबक सीखने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं? भारत दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश है, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं हो सकता कि सार्वजनिक स्थलों और विशेष रूप से धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों में लोग कुचलकर मारे जाएं। अच्छा यह होगा कि सरकारें भगदड़ की घटनाओं को लेकर प्रशासन को सच में जवाबदेह बनाना सीखें।
इसके साथ ही आम लोगों को भी जापान जैसे देशों के लोगों से अनुशासन की सीख लेनी होगी। शासन-प्रशासन और आम जनता को अपने हिस्से की जिम्मेदारी इसलिए निभानी होगी, क्योंकि आने वाले समय में सार्वजनिक स्थलों पर भीड़ का दबाव और अधिक बढ़ेगा।
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