विवेक ओझाः  राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने कश्मीर स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के एक सदस्य को जम्मू-कश्मीर में आतंकी साजिश मामले में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया है। एनआइए ने उसे इस आधार पर गिरफ्तार किया कि वह पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद कमांडर के संपर्क में था। इससे स्पष्ट है कि कश्मीर में अभी भी पाक प्रायोजित आतंकवाद एक चुनौती के रूप में कायम है।

इसके अलावा एनआइए इस समय देश में खासकर उत्तर भारत में माफिया, गैंगस्टर और आतंकियों के बीच लिंक को तोड़ने में लगा हुआ है। गैंगस्टर को हथियार कहां से मिल रहे हैं, अपराध को बढ़ावा देने में हथियारों की तस्करी को कैसे अंजाम दिया जा रहा है, छोटे अपराधियों को विदेशी हथियार कैसे प्राप्त हो रहे हैं, इन सब का पर्दाफाश एनआइए द्वारा किया जा रहा है।

हाल के दिनों में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि संगठित अपराध नेटवर्क और आतंकियों के बीच का गठजोड़ देश की कानून व्यवस्था के लिए अभी भी एक चुनौती के रूप में विद्यमान है।

नक्सलवाद और माओवाद पर प्रहार

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में कुछ ही समय पहले डीआरजी ग्रुप पर हुए नक्सली हमले की जांच कर रही एनआइए की जांच टीम बिहार और झारखंड तक पहुंची थी। केंद्रीय एजेंसी एनआइए ने इन दोनों राज्यों में 14 से अधिक ठिकानों पर सर्च आपरेशन शुरू किया।

यह सर्च आपरेशन सीपीआइ (माओवादी) से जुड़े लोगों या उनके समर्थकों के ठिकानों पर चला। एनआइए की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि 25 अप्रैल 2022 को एक एफआइआर दर्ज की गई थी। इसमें पाया गया था कि देश में पहले से प्रतिबंधित सीपीआइ (माओवादी) अपने संगठन का विस्तार कर रही है। इसके लिए संगठन से जुड़े लोग युवाओं को गुमराह करने प्रयास कर रहे हैं।

इस संबंध में संगठन के पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी के सदस्यों को नामजद भी किया गया है। साथ ही हाल में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने झारखंड के प्रतिबंधित नक्सल संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट आफ इंडिया (पीएलएफआइ) के फरार स्वयंभू सुप्रीमो को गिरफ्तार किया है।

एनआइए ने कहा है, “आरोपी के खिलाफ 102 आपराधिक मामले थे और 30 लाख रुपये का इनाम रखा था।’ इस प्रकार एनआइए वामपंथी उग्रवाद के खात्मे के लिए एक विशेष रणनीति के तहत कार्य कर रहा है। नक्सलियों की फंडिंग, भर्ती, प्रशिक्षण रोकने की दिशा में एनआइए द्वारा प्रभावी उपाय किए जा रहे हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा में बहुआयामी भूमिका

नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की भूमिका भारत की आंतरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती देने में अति महत्वपूर्ण रही है। इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड अल शाम (आइएसआइएस) से संबंध रखने वाले के विरुद्ध कार्रवाई हो, पापुलर फ्रंट आफ इंडिया के द्वारा भारत में जेहाद कल्चर को उभारने पर रोक लगाने की बात हो, साइबर आतंकवाद, नार्को आतंकवाद, नक्सलियों और माओवादियों के फंडिंग रूट को ब्लाक करने की बात हो, एनआइए ने पूरी सक्रियता के साथ अपनी भूमिका निभाई है।

एनआइए ने ही पिछले साल अमरावती के उमेश कोल्हे हत्याकांड की कई परतें भी खोली थीं। इस केस में एनआइए ने पाया था कि देश में इस्लामिक कट्टरता को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

अलगाववाद और धार्मिक कट्टरता

आइएस जैसे आतंकी संगठनों द्वारा भारत और अन्य देशों में आतंकवाद के जिस स्वरूप को मजबूती देने की कोशिश की गई है, उसे धार्मिक आतंकवाद की श्रेणी में रखा जाता है और आतंकवाद का यह स्वरूप घातक रूप में देश की आंतरिक सुरक्षा और देश के सेक्युलर ताने-बाने पर बड़े खतरे उत्पन्न करता है।

आइएस जिस धार्मिक आतंकवाद के सहारे एक अखिल इस्लामिक गणराज्य की स्थापना की मंशा रखता है, वह भारत जैसे देशों के लिए इसलिए अधिक खतरनाक है, क्योंकि धर्म ग्रंथों की गलत और अति कट्टर व्याख्या कर भारतीय युवाओं को चरमपंथी, धार्मिक मतांध बनाकर उनके मन में धार्मिक पूर्वाग्रह, दुराग्रह, ईर्ष्या, द्वेष, शत्रुता के भावों का बीजारोपण किया जाता है और अब इस काम को बखूबी अंजाम देने के लिए आनलाइन उग्रवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। साइबर आतंकवाद से निपटने के लिए एनआइए ने भारत में आतंकवाद से जुड़े मामलों में जांच पड़ताल करने के लिए अधिकृत एजेंसी है जो इस काम को अपने विशेष न्यायालयों के जरिये पूरा करती है।

नए अधिकार और शक्तियां

आतंकवाद के विभिन्न स्वरूपों और उसके संगठित अपराधों से लिंक को तोड़ने के उद्देश्य से ही पिछले साल एनआइए संशोधन अधिनियम, 2019 में एनआइए को आतंकी मामलों से निपटने के साथ ही साइबर सुरक्षा से जुड़े मामलों, जाली मुद्रा कारोबार से जुड़े अपराधों, विस्फोटक पदार्थ से जुड़े अपराधों, मानव तस्करी से जुड़े मामलों, जांच का अधिकार क्षेत्र विदेश तक बढ़ाने और ऐसे व्यक्तियों को भी जांच के घेरे में रख सकने का अधिकार दिया गया है, जो भारत के बाहर भारतीय नागरिकों के खिलाफ या भारत के हितों को प्रभावित करने वाला अनुसूचित अपराध करते हैं।

भारत में आइएस की उपस्थिति के सबूत समय समय पर गृह मंत्रालय और एनआइए ने दिए हैं। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि दक्षिणी भारतीय राज्यों सहित विभिन्न राज्यों के कुछ लोगों के इस्लामिक स्टेट में शामिल होने की बात केंद्रीय और राज्य सुरक्षा एजेंसियों के सामने आई है। इसे लेकर एनआइए ने 17 मामले दर्ज किए हैं।

गृह मंत्रालय ने भी कहा है कि एनआइए ने तेलंगाना, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में आइएस की उपस्थिति से संबंधित 17 मामले दर्ज किए हैं और 122 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है। एनआइए की जांच में पता चला है कि इस्लामिक स्टेट (आइएस) केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, बंगाल, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में सबसे अधिक सक्रिय है।

भारत के गृह मंत्रालय ने भारतीय राज्यों में आइएस की उपस्थिति और सक्रियता होने की सार्वजनिक तौर पर पुष्टि सितंबर 2020 में की थी। भारत में आइएस की सक्रियता से निपटने की रणनीति को बहुआयामी बनाने की जरूरत है और एनआइए के नेतृत्व में ऐसा किया भी जा रहा है। अपनी विचारधारा को फैलाने के लिए आइएस इंटरनेट मीडिया मंचों का उपयोग कर रहा है। इसे देखते हुए संबद्ध एजेंसियां साइबर स्पेस की सतत निगरानी कर रही हैं और कानून के अनुसार कार्रवाई की जा रही है।

गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि सरकार के पास सूचना है कि इन लोगों को वित्त कैसे मुहैया कराया जा रहा है और आतंकी गतिविधियों को संचालित करने के लिए इन्हें विदेश से कैसे मदद मिल रही है। इसलिए आतंक के वित्त पोषण को रोकने की रणनीति के तहत जाली मुद्रा कारोबार, ब्लैक मनी, मनी लांड्रिंग, हवाला कारोबार से निपटने पर विशेष जोर दिया गया है।

हाल ही में एनआइए की टीम लंदन गई थी। इस टीम ने वहां के सुरक्षा अधिकारियों और मेट्रोपालिटन पुलिस से मिलकर बीते दिनों वहां हुए भारतीय उच्चायोग कार्यालय पर खालिस्तान समर्थक प्रदर्शनकारियों के हमले की जांच का निर्णय लिया। यह इस बात का साक्ष्य है कि भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़े मुद्दों के साथ किसी भी हाल में समझौता नहीं कर सकता है। केंद्र सरकार ने 2019 में एनआइए को यह नया अधिकार दिया था कि वह विदेश में भी आतंकी मामलों की जांच कर सकेगी। एनआइए ने इस जिम्मेदारी का निर्वहन तत्परता से किया है

भारत सरकार के गृह मंत्रालय के तहत देश में चरमपंथ और कट्टरपंथी सोच से निपटने के लिए आतंकवाद रोधी एवं इस्लामिक कट्टरवाद रोधी (सीटीसीआर) प्रभाग बनाया गया है। यह आतंकवाद से मुकाबला करने, कट्टरपंथीकरण, गैर कानूनी क्रियाकलाप (रोकथाम) अधिनियम, नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी अधिनियम, फेक इंडियन करेंसी नेटवर्क (एफआइसीएन) और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के आतंक के वित्त पोषण को रोकने, काले धन और मनी लांड्रिंग से निपटने के प्रयासों को दिशा देता है।

इसके अलावा कट्टरपंथ से निपटने के लिए भारत के सशस्त्र बलों, अर्ध सैनिक बलों के द्वारा कट्टरपंथ, अलगाववाद और आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में प्रभावी तरीके से सिविक एक्शन प्रोग्राम और परसेप्शन मैनेजमेंट रणनीति के जरिये गुमराह युवाओं में शासन-प्रशासन के प्रति विश्वसनीयता के भावों का विकास किया जाना जरूरी है।

जेहादी साहित्य, दस्तावेज आदि के प्रसार को रोकने के लिए इंटरनेट मीडिया मंचों का प्रभावी विनियमन आवश्यक है। उग्रवाद, आतंकवाद और कट्टरतावाद या चरमपंथ को केवल बल के उपयोग से पराजित नहीं किया जा सकता और इसके लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्वीकार करना राष्ट्रों के लिए जरूरी है। अतिवादी और हिंसक विचारधाराओं को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट मीडिया के उपयोग को रोकना, युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और आतंकियों की भर्ती करने में धार्मिक केंद्रों के उपयोग को रोकने एवं सहिष्णुता को बढ़ावा देने के उपाय राष्ट्रों द्वारा किए जाने आवश्यक हैं।

इस संदर्भ में उरुग्वे के सवाब और हेदायह केंद्र जैसी पहल के योगदान का उदाहरण दिया जा सकता है जो चरमपंथी विचारधाराओं का मुकाबला करने और अंतरराष्ट्रीय उग्रवाद-विरोधी सहयोग को आनलाइन स्तर पर आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे ही चरमपंथ विरोधी केंद्रों के गठन की आवश्यकता भारत में भी है।

साथ ही आधुनिक शिक्षा प्रणाली जिसमें मानवीय मूल्य, लोकतांत्रिक मूल्यों और सरोकारों, मानवाधिकार और राष्ट्रीय एकीकरण के भावों को संवेदनशीलता से रखा गया हो, उसे चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों में कुशलता से रखा जाना आवश्यक है। इस बात पर भी जोर दिया जाना चाहिए कि गुमराह युवाओं का डी-रेडीकलाइजेशन रणनीति के तहत कैसे उनका कट्टरपंथी सोच और वैचारिकी का खात्मा किया जा सकता है। गृह मंत्रालय के तत्वावधान में गुमराह युवाओं को उनकी कट्टरपंथी सोच से उन्हें मुक्त करने के लिए डी-रेडीकलाइजेशन के लिए महाराष्ट्र माडल का अध्ययन किया गया है, जहां इस दिशा में सफलता पाई गई है। 

लेखक आंतरिक सुरक्षा मामलों के जानकार हैं।