विचार: षड्यंत्र था भगवा आतंक का जुमला, जांच और अदालती फैसले ने खोल दी पूरी कड़ी
मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए कम तीव्रता वाले धमाके में इस्तेमाल हुई मोटरसाइकिल कथित रूप से साध्वी प्रज्ञा की बताई गई जबकि वह बाइक सुनील जोशी को बेच दी गई थी पर स्वामित्व हस्तांतरण प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही जोशी की मौत हो गई। पुलिस ने इस मामले में प्रज्ञा और पांच अन्य को मध्य प्रदेश से गिरफ्तार किया।
संध्या जैन। भारतीय न्यायिक इतिहास में मालेगांव बम धमाकों (2008) से जुड़ा फैसला मील का पत्थर माना जाएगा। इसने भगवा आतंक के मिथ्या आख्यान को ध्वस्त किया। इस्लामिक आतंक की विषबेल की धारणा को संतुलित करने के लिए ही भगवा या हिंदू आतंक का फर्जीवाड़ा किया गया। इसे स्थापित करने के लिए कई कड़ियां भी जोड़ी गईं, लेकिन जांच और अदालती फैसले ने उन्हें पूरी तरह से तोड़ दिया।
हिंदू आतंक के फर्जीवाड़े की हवा समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के साथ ही फैली थी। दिल्ली से लाहौर के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस 18 फरवरी, 2007 को पानीपत में बम धमाकों की शिकार बनी। इसमें 68 लोग मारे गए। कथित हिंदू आतंक के मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और स्वामी असीमानंद को फंसाने का कुचक्र रचा गया।
आरोप लगाया गया कि धमाकों के लिए पुरोहित ने 60 किलो आरडीएक्स चुराया, पर यह तब निराधार निकला, जब पता चला कि बम बनाने के लिए पोटेशियम क्लोरेट, सल्फर आदि का इस्तेमाल किया गया था। तब अमेरिकी एजेंसियों की जांच में यह सामने आया था कि मुंबई ट्रेन धमाकों और समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के पीछे पाकिस्तानी आतंकी आरिफ कसमानी का हाथ था, जबकि मक्का मस्जिद धमाका हरकत-उल-जिहाद-इस्लामी(हूजी) ने किया था। लश्कर आतंकी कसमानी ने मुंबई धमाकों के लिए दाऊद इब्राहिम से पैसे जुटाए थे। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने 2009 में उसे आतंकी घोषित किया।
मालेगांव में पहले धमाके 8 सितंबर, 2006 को हुए, जिनमें 30 से अधिक लोग मरे। महाराष्ट्र एटीएस ने सिमी और लश्कर के नौ लोगों को आरोपित बनाया। कुछ दलों और अल्पसंख्यक नेताओं के दबाव में यह मामला सीबीआइ को सौंपा, जो बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए के पास गया।
एनआइए ने दावा किया कि मालेगांव धमाके, हैदराबाद, अजमेर शरीफ और समझौता एक्सप्रेस जैसे आतंकी हमले हिंदुओं ने किए, जो जिहादी आतंक से बदला लेना चाहते थे। एनआइए ने 22 मई, 2013 को आरोपपत्र में प्रज्ञा और स्वामी असीमानंद को मुख्य आरोपित बनाया। चूंकि उनके विरुद्ध पुख्ता साक्ष्य नहीं थे, इसलिए प्रज्ञा और पुरोहित का संदर्भ नहीं दिया और उन्हें 2008 मालेगांव धमाकों में आरोपित बनाया गया।
मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को हुए कम तीव्रता वाले धमाके में इस्तेमाल हुई मोटरसाइकिल कथित रूप से साध्वी प्रज्ञा की बताई गई, जबकि वह बाइक सुनील जोशी को बेच दी गई थी, पर स्वामित्व हस्तांतरण प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही जोशी की मौत हो गई। पुलिस ने इस मामले में प्रज्ञा और पांच अन्य को मध्य प्रदेश से गिरफ्तार किया।
पुरोहित को नवंबर 2008 में गिरफ्तार किया गया। एटीएस ने 19 जनवरी, 2009 को दाखिल चार्जशीट में पुरोहित और प्रज्ञा को मुख्य षड्यंत्रकारी बताया। पुरोहित पर विस्फोटक उपलब्ध कराने और प्रज्ञा पर धमाके करने के लिए लोगों को जुटाने का आरोप लगाया। ये आरोप टिक नहीं पाए।
सितंबर 2017 में जमानत मिलने के बाद पुरोहित ने पीएम मोदी को पत्र लिखा कि एक दल के मुखिया इस षड्यंत्र के पीछे हैं। धमाकों के समय वे तो खुफिया जानकारियां जुटाने के सिलसिले में पचमढ़ी में एक कोर्स कर रहे थे। माना जाता है कि नवंबर 2008 के मुंबई आतंकी हमले को लेकर वे कुछ ऐसी जानकारियां हासिल कर रहे थे, जो उनकी परेशानियों का कारण बन गईं। इस मामले में कर्नल आरके श्रीवास्तव का नाम भी एक अहम कड़ी है।
भोपाल एयरपोर्ट पर कर्नल श्रीवास्तव ने पुरोहित को एक फर्जी आवाजाही आदेश के तहत मुंबई की उड़ान पकड़ने पर मजबूर किया। सैन्य अदालत द्वारा 2009 की जांच में पुरोहित के इस दावे पर मुहर लगी कि कर्नल श्रीवास्तव ने उन्हें अगवा कर अवैध रूप से कब्जे में रखा। पुरोहित को खंडाला के एक बंगले में 4 नवंबर, 2008 तक एटीएस की अवैध कस्टडी में रखा गया, जहां उन्हें भयंकर शारीरिक-मानसिक यातनाएं दी गईं।
इस मामले में जिन अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका रही, उनमें एक एटीएस के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे थे, जिनकी मुंबई आतंकी हमले में मौत हो गई थी। तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक परमबीर सिंह, इंस्पेक्टर अरुण खानविलकर और असिस्टेंट कमिश्नर मोहन कुलकर्णी भी इनमें शामिल माने गए। पुरोहित को 2008 के मालेगांव धमाकों में आरोपित नंबर नौ बनाया गया। पचमढ़ी से पहले पुरोहित सेना की दक्षिणी कमान, पुणे की एक ईकाई से जुड़े थे। उनके आधिकारिक खुफिया सूत्र सुधाकर चतुर्वेदी को मालेगांव मामले में आरोपित नंबर 11 बनाया गया।
एटीएस के अनुसार मालेगांव धमाकों में इस्तेमाल आरडीएक्स के तार चतुर्वेदी जुड़े थे। हालांकि सेना की जांच में पता चला कि चतुर्वेदी की गिरफ्तारी से कुछ दिन पहले एटीएस अधिकारी शेखर बागड़े को चतुर्वेदी के घर में यह सुबूत प्लांट करते हुए पकड़ा गया। समझौता एक्सप्रेस की तरह 2008 मालेगांव धमाकों में भी आरडीएक्स का इस्तेमाल नहीं हुआ था।
2013 में केंद्रीय सूचना आयोग के दबाव में सैन्य प्राधिकारी संस्थाओं को यह स्वीकार करना पड़ा कि उन्हें पुरोहित से यह खुफिया जानकारी मिली थी कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात में नकली करेंसी का नेटवर्क चल रहा है, जिसमें कई बड़े नेता और अधिकारी शामिल हैं। चूंकि पुरोहित कुछ ऊंचे लोगों की करतूतों का भंडा फोड़ कर सकते थे, इसलिए उन्हें फंसा दिया गया। पुरोहित की तरह प्रज्ञा को भी बहुत प्रताड़ना झेलनी पड़ी।
उन्हें 10 से 23 अक्टूबर के बीच बिना किसी महिला कांस्टेबल के 13 दिनों तक अवैध हिरासत में रखा गया। उन्हें इतना प्रताड़ित किया गया कि औपचारिक गिरफ्तारी से पहले अस्पताल में इलाज कराना पड़ा। उनके नार्को और पालीग्राफ टेस्ट में किसी अपराध की पुष्टि नहीं हुई। उन्हें फंसाने के लिए एटीएस ने 2006 और 2008 धमाकों के तथ्यों का घालमेल कर दिया। इसके बाद हुई मुंबई आतंकी हमले को भी वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने 2010 में शर्मनाक रूप से ‘आरएसएस की साजिश’ करार दिया। इस फर्जी विमर्श की धज्जियां उड़ चुकी हैं।
(स्तंभकार वरिष्ठ पत्रकार, शोधकर्ता एवं लेखिका हैं)
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