आज व्यक्ति का सारा पुरुषार्थ, समय और शक्ति धन के अर्जन और संचय पर ही केंद्रित हो गई है। समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। जीवन में तनाव निरंतर बढ़ रहा है। व्यक्तित्व में विकृतियां घर कर रही हैं, क्योंकि समस्याओं का सम्यक समाधान नहीं मिल रहा है। ज्ञान हमें सत्य का बोध कराता है। ज्ञान विश्व के समस्त रहस्यों को उजागर कर कर्तव्य का पाठ पढ़ाता है। हमें मुक्ति की राह बताता है। ज्ञान के अभाव में हमारी स्थिति उस नाविक के समान होती है जो छिद्र वाली नौका में सवार होकर संसार सागर को पार करना चाहता है। ऐसा व्यक्ति किनारा मिलने से पहले ही डूब जाएगा। अज्ञान सबसे बड़ा दुख है, जिसके कारण वह परेशान होकर हमेशा ही इधर-उधर भटकता रहता है। जो व्यक्ति ज्ञान के वैभव से समृद्ध होता है वह हर परिस्थिति में समान रूप में अडिग बना रहता है। वह विकट परिस्थितियों में भी राह निकाल लेता है। केवल अज्ञान के कारण ही जीव दुख को सुख मान लेता है। अनित्य को ही शाश्वत मान लेता है। व्यक्ति अपना चेहरा अपनी आंखों से नहीं देख सकता। इसके लिए उसे दर्पण की आवश्यकता होती है। ज्ञान आत्मा का मौलिक गुण है, उसे प्रकट करने के लिए शास्त्र ज्ञान का अवलंवन आवश्यक होता है। ज्ञान प्राप्ति के साथ उसके अनुकूल आचरण भी आवश्यक हैं। व्यक्ति यदि हाथ-पैर नहीं हिलाएगा, तो वह जल प्रवाह में अवश्य ही डूब जाएगा। इसलिए क्रिया शून्य ज्ञान और ज्ञान शून्य क्रिया, दोनों ही मुक्ति की ओर नहीं ले जा सकती।

ज्ञान से दृष्टि में परिवर्तन आता है। यह परिवर्तन स्वाध्याय से आ सकता है। ज्ञान से दृष्टिकोण और विचारों की शुद्धि होती है। विचार-शुद्धि से आचरण शुद्ध होता है। सूरज के साथ चलने वालों को कभी अंधेरे का सामना नहीं करना पड़ता है। ठीक वैसे ही ज्ञान में जीने वाले लोगों को अज्ञान के दुख की ठोकरें नहीं खानी पड़ती हैं। जैसे धागे में पिरोई हुई सुई गिर जाने पर भी गुम नहीं होती उसी तरह ज्ञान के धागों से बंधी हुई आत्मा संसार में नहीं भटकती है। ज्ञान प्रकाशपुंज के समान है जो लोगों को भटकने से बचाता है और उन्हें सही राह दिखाता है। सफलता को प्राप्त करने के लिए ज्ञान जरूरी है।

[बीना जैन]

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