ट्रेन के आखिरी डिब्बे पर क्यों बना होता है 'X' का निशान? कम ही लोग जानते हैं इस सवाल का सही जवाब
रोजाना करोड़ों लोग ट्रेन से सफर करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि हर ट्रेन के आखिरी डिब्बे पर एक बड़ा सा 'X' का साइन क्यों बना होता है? पहली नजर में यह एक साधारण पेंटिंग या डिजाइन जैसा लगता है, मगर इसके पीछे छिपा है रेलवे सुरक्षा से जुड़ा बेहद अहम कारण। आइए, इस आर्टिकल में जानते हैं।

क्यों जरूरी है ट्रेन के अंतिम डिब्बे पर 'X' का निशान? (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या आपने कभी सोचा है कि ट्रेन के आखिरी डिब्बे पर हमेशा एक बड़ा-सा 'X' का निशान क्यों बना होता है? यह निशान केवल एक डिजाइन या किसी की कलाकारी नहीं है। असल में यह भारतीय रेलवे का एक गुप्त कोड है, एक ऐसा संकेत जो हर यात्री की सुरक्षा की गारंटी देता है।
ट्रेन के पूरा गुजर जाने की पहचान
इस 'X' साइन का सबसे बड़ा मकसद यह सुनिश्चित करना होता है कि पूरी ट्रेन प्लेटफॉर्म या ट्रैक से गुजर चुकी है। जब कोई ट्रेन किसी स्टेशन या सिग्नल पॉइंट से निकलती है, तो स्टेशन मास्टर या ट्रैकमैन आखिरी डिब्बे पर बने इस 'X' को देखकर पुष्टि करते हैं कि ट्रेन के सभी कोच गुजर चुके हैं, कोई डिब्बा बीच में नहीं छूटा है। रात के समय या कोहरे जैसी कम दृश्यता की स्थिति में यह निशान सुरक्षा के लिए एक मजबूत भरोसा देता है।
आपात स्थिति में मददगार
अगर किसी कारण से ट्रेन का कोई डिब्बा बीच रास्ते में अलग हो जाए, तो पीछे आने वाले रेलवे कर्मियों को तुरंत समझ आ जाता है कि ट्रेन अधूरी है, क्योंकि आखिरी डिब्बे पर 'X' दिख ही नहीं रहा। ऐसे में, तुरंत अलर्ट जारी किया जाता है और ट्रेन को रोका जाता है, जिससे किसी बड़े हादसे को टाला जा सके। इस तरह यह छोटा-सा 'X' कई यात्रियों की जान बचाने में मददगार साबित होता है।
सिर्फ 'X' नहीं, और भी होते हैं संकेत
दिन में 'X' निशान के साथ अक्सर “LV” (Last Vehicle) लिखा बोर्ड भी लगाया जाता है, जो बताता है कि यह ट्रेन का आखिरी डिब्बा है। रात के समय इस निशान के साथ लाल रंग की झिलमिलाती टेल लाइट भी लगाई जाती है, ताकि दूर से भी यह साफ दिख सके कि ट्रेन पूरी गुजर चुकी है। ये सभी संकेत मिलकर रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत बनाते हैं।
रिफ्लेक्टिव पेंट से बढ़ती है दृश्यता
रेलवे इस 'X' निशान को साधारण पेंट से नहीं, बल्कि रिफ्लेक्टिव या रेडियम पेंट से बनाता है, ताकि यह रात, कोहरे या कम रोशनी में भी साफ दिखाई दे। यह व्यवस्था इसलिए की जाती है ताकि रेलवे कर्मचारी या सिग्नलमैन आसानी से देख सकें कि पूरी ट्रेन निकल चुकी है या नहीं।
क्या दुनिया के सभी देशों में भी होता है ऐसा?
- ट्रेन की “पूरी होने की पुष्टि” यानी End of Train (EOT) संकेत सिर्फ़ भारत में नहीं, बल्कि दुनियाभर के रेलवे सिस्टम में एक जरूरी हिस्सा है। हालांकि हर देश इसका तरीका अलग अपनाता है- तकनीक और जरूरत के अनुसार।
इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम
- अमेरिका और कनाडा में ट्रेनों में Electronic End-of-Train Devices (EOTDs) लगाए जाते हैं।
- ये उपकरण न सिर्फ ट्रेन के ब्रेक प्रेशर की निगरानी करते हैं, बल्कि पीछे एक फ्लैशिंग लाइट के जरिए ट्रेन के अंत का संकेत भी देते हैं।
- यह एक स्मार्ट टेक्नोलॉजी आधारित तरीका है, जो ट्रेनों की सुरक्षा और संचार दोनों को बेहतर बनाता है।
उन्नत सिग्नलिंग सिस्टम
- यूरोप के हाई-स्पीड रेलवे नेटवर्क में 'X' जैसे भौतिक संकेतों की जरूरत बहुत कम होती है।
- यहां Axle Counters और European Train Control System (ETCS) जैसी आधुनिक तकनीकें हर पहिये और कोच की गिनती करती हैं, जिससे सिस्टम खुद जान लेता है कि ट्रेन पूरी गुज़र चुकी है या नहीं।
झंडे और लाल डिस्क
कई देशों में अब भी पारंपरिक तरीकों का उपयोग होता है-
- दिन में रंगीन झंडे, और रात में लाल गोल डिस्क या लैंप लगाकर ट्रेन के अंत का संकेत दिया जाता है।
- ये तरीके भले पुराने हों, लेकिन सरल, भरोसेमंद और कम खर्चीले हैं- ठीक वैसे ही जैसे भारत का 'X' साइन।
ट्रेन के आखिरी डिब्बे पर बना 'X' केवल एक रंगीन निशान नहीं, बल्कि रेलवे सुरक्षा की नींव है। यह सुनिश्चित करता है कि हर सफर सुरक्षित रहे, कोई कोच पीछे न छूटे और किसी भी आपात स्थिति में तुरंत कदम उठाए जा सकें।
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