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    QWERTY Keypad: क्यों कीबोर्ड पर आगे-पीछे लिखे होते हैं अक्षर, जानें QWERTY फॉर्मेट के इस्तेमाल का कारण

    Updated: Sat, 02 Mar 2024 07:07 PM (IST)

    लैपटॉप और स्मार्ट फोन पर टाइप करते वक्त आपने ध्यान दिया होगा कि इनके कीबोर्ड पर अल्फाबेट्स क्रमबद्ध नहीं होते हैं। वे आगे-पीछे होते हैं। इस फॉर्मेट को QWERTY फॉर्मेट कहा जाता है लेकिन आखिर क्यों इस फॉर्मेट की जरूरत पड़ी। क्यों ABC फॉर्मेट का इस्तेमाल किया जाता है। जानें क्या है QWERTY फॉर्मेट के कीपैड के खोज की कहानी।

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    कैसे शुरू हुआ QWERTY कीपैड का इस्तेमाल?

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। QWERTY Keypad: तकनीक का इतना विकास हो गया है कि अब लिखने के लिए भी कलम का कम और फोन या लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। टाइप करते समय अगर आपने ध्यान दिया होगा, तो आपको पता होगा कि कीबोर्ड पर अल्फाबेट्स क्रमबद्ध तरीके से अरेंज नहीं होते हैं। उन्हें आगे-पीछे करके लगाया जाता है। इसे देखकर क्या आपने कभी यह सोचा है कि ऐसा क्यों होता है। आखिर इसके पीछे की वजह क्या है। अगर नहीं, तो आज हम आपको बताते हैं कि क्या है कीबोर्ड पर QWERTY कीपैड बनाने की कहानी।

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    अंग्रेजी भाषा के अल्फाबेट्स का क्रमबद्ध सीरीज है A, B, C, D…, जो हमें हमेशा याद रहता है। लगभग सभी जानते हैं कि किस अल्फाबेट के बाद कौन सा अल्फाबेट आएगा। इससे टाइप करने में काफी आसानी होती, क्योंकि हमें पता होता कि किस अक्षर के बाद क्या आएगा।

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    पहले होता था ABC फॉर्मेट का इस्तेमाल

    इस बात को ध्यान में रखते हुए और लोगों के जीवन को और अधिक आसान बनाने के लिए 1868 में लैथम शोल्स नाम के व्यक्ति ने दुनिया के पहले टाइपराइटर का आविष्कार किया। इस टाइपराइटर के कीपैड पर ABC फॉर्मेट का ही इस्तेमाल किया गया था, जो लोगों को याद रहता है। अक्षरों की सीरीज पता होने की वजह से लोगों को टाइप करने में काफी आसानी होने लगी और वे काफी जल्दी-जल्दी टाइप कर लेते थे।

    अब आप सोचेंगे कि जब लोग आसानी से और तेजी से टाइप कर ले रहे थे, तो फिर QWERTY कीपैड अपनाने की क्या जरूरत पड़ी। इसकी वजह भी लोगों का तेजी से टाइप करना ही है। टाइपिंग की तेज स्पीड की वजह से टाइप राइटर के बटन जाम होने लग जाते थे।

    क्या थी ABC फॉर्मेट के साथ दिक्कत?

    टाइपराइटर के बटन पास-पास थे और ABC फॉर्मेट में थे। इस वजह से लोग जल्दी-जल्दी टाइप करते थे और टाइपराइटर के पिन आपस में उलझ जाते थे। पिन उलझने की वजह से कीपैड जाम होने लगते थे और बटन खराब हो जाते थे। इस कारण से कुछ समय बाद, लोगों को टाइपराइटर का इस्तेमाल करने में काफी परेशानी होने लग जाती थी।

    इसलिए अपनाया गया QWERTY कीपैड

    इस समस्या को दूर करने के लिए 1873 में शोल्स ने टाइपराइटर के कीपैड फॉर्मेट में बदलाव करने का फैसला लिया। उन्होंने कीपैड को QWERTY फॉर्मेट में बदला। इस फॉर्मेट के इस्तेमाल से लोगों की टाइपिंग स्पीड कम हो गई और टाइपराइटर के पिन आपस में नहीं उलझते थे।

    हालांकि, इस फॉर्मेट को बनाते समय इस बात का खास ध्यान रखा गया कि जिन अल्फाबेट्स का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, उन्हें उंगलियों के पास रखा जाए। इसलिए E, I, S, M जैसे अल्फाबेट्स को उंगलियों के पहुंच के करीब रखा गया और जिन अक्षरों का कम इस्तेमाल होता है जैसे- X, Z, उन्हें उंगलियों से दूर रखा गया।

    अल्फाबेट्स का क्रम बदलने की वजह से लोगों की टाइप करने की स्पीड कम हो गई। ऐसे हुआ QWERTY फॉर्मेट का खोज और इसी कारण से आज तक कंप्यूटर, लैपटॉप और स्मार्ट फोन्स के कीबोर्ड में इसी फॉर्मेट का इस्तेमाल किया जाता है।

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    Picture Courtesy: Freepik