दिल के गंभीर रोगियों के लिए वरदान बनी टैवी तकनीक, बिना ओपन हार्ट सर्जरी बदला जा रहा वाॅल्व
टैवी तकनीक गंभीर हृदय रोगियों के लिए एक बड़ी चिकित्सा उपलब्धि है, जो बिना ओपन हार्ट सर्जरी के खराब एओर्टिक वाॅल्व को बदलने में मदद करती है। यह विशेषकर ...और पढ़ें

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। दिल के गंभीर रोगियों के इलाज में टैवी (ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाॅल्व इम्प्लांटेशन) तकनीक को बड़ी चिकित्सा उपलब्धि माना जा रहा है। इस तकनीक के जरिए अब दिल के खराब एओर्टिक वाल्व को बिना ओपन हार्ट सर्जरी बदला जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह विशेषकर बुजुर्ग और अति गंभीर मरीजों के लिए उपचार की नई उम्मीद है, जिनके लिए पारंपरिक सर्जरी जोखिम भरी या असंभव होती थी।
विशेषज्ञों के अनुसार, टैवी हृदय उपचार की दिशा और दशा दोनों बदलने की क्षमता रखती है। भारत में, खासकर दिल्ली जैसे बड़े शहरों के उन्नत अस्पतालों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, परिणाम उत्साहजनक हैं।
अभी तक एओर्टिक वाॅल्व खराब होने पर ओपन हार्ट सर्जरी करना ही उपचार का एकमात्र तरीका था। इस प्रक्रिया में कई घंटे का आपरेशन, खून का अत्याधिक बहना, लंबे समय तक आइसीयू में भर्ती और महीनों की रिकवरी शामिल होती थी। मरीज को सामान्य जीवन में लौटने पर एक वर्ष से अधिक का समय लग जाता था।
यही नहीं बुजुर्ग, कमजोर या अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए यह सर्जरी कई बार संभव नहीं होती थी, अगर होती भी थी तो जान का खतरा पूरे समय बना रहता था। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली के कार्डियक सर्जन प्रो. डाॅ. देवगुरु वेलायुदम के अनुसार, एओर्टिक वाॅल्व की बीमारी के इलाज में पारंपरिक ओपन हार्ट सर्जरी ही मानक पद्धति रही है, लेकिन यह हर मरीज के लिए उपयुक्त नहीं होती थी।
तकनीक टैवी ने ऐसे मरीजों के लिए उपचार का रास्ता खोला है, जिनको बड़ी सर्जरी से खतरा अधिक होता था। शरीर पर सर्जरी का दबाव कम पड़ता है, रिकवरी भी तेज होती है। इसकी लागत पारंपरिक ओपन हार्ट सर्जरी की तुलना में अधिक होती है। पर, ओपन हार्ट सर्जरी के पहले और बाद के खर्च व दवा आदि के खर्च को मिलाकर यह लगभग बराबर हो जाता है।
कैसे काम करती है टैवी?
राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी (आरजीएसएसएच) अस्पताल के वरिष्ठ कार्डियोलाजिस्ट डाॅ. अजीत जैन बताते हैं कि टैवी तकनीक में छाती और हृदय नहीं खोला जाता। पैर या हाथ की नस के रास्ते एक पतली नली (कैथेटर) के माध्यम से नया वाल्व दिल तक पहुंचाया जाता है। पुराने खराब वाल्व के अंदर ही नया वाॅल्व फिट कर दिया जाता है। दिल को रोके बिना प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
बताया कि इस तकनीक में न सिर्फ दर्द और खून का बहना कम होता है, बल्कि मरीज के अस्पताल में रहने की अवधि कम होती है। पारंपरिक सर्जरी में जहां अस्पताल में लंबे समय तक भर्ती रहना पड़ता था, वहीं अब 48 घंटे काफी होते हैं। यही वजह है कि यह तेजी से लोकप्रिय हो रही है।

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