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    कैसे होती है कृत्रिम बारिश? दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए अब केजरीवाल सरकार ने लिया इसका सहारा

    By Jagran NewsEdited By: Sonu Suman
    Updated: Wed, 08 Nov 2023 09:51 PM (IST)

    राजधानी दिल्ली में प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार कई कदम उठा रही है। इसी क्रम में अब कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी की जा रही है। 20 नवंबर को कृत्रिम बारिश कराए जाने की संभावना है। हालांकि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट से अनुमति ली जाएगी। आइए जानते हैं कि आखिर कृत्रिम बारिश है क्या और कैसे कराई जाती है?

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    दिल्ली में प्रदूषण के रोकथाम के लिए कृत्रिम बारिश कराए जाने की तैयारी।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में प्रदूषण अपने चरम पर है। इसको लेकर केजरीवाल सरकार पहली बार कृत्रिम बारिश कराएगी। 20 नवंबर के आसपास कृत्रिम बारिश कराए जाने की योजना है। आईआईटी कानपुर ने दिल्ली सरकार को पूरा प्लान सौंप दिया है। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि इससे दिल्लीवासियों को प्रदूषण से राहत मिलने की उम्मीद है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कृत्रिम बारिश क्या है और यह कैसे कराई जाती है?

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    दरअसल, कृत्रिम बारिश कराने के पीछे उद्देश्य फसल की अच्छी पैदावार कराना था। कई बार ऐसा होता है कि फसलों को पानी की जरूरत होती है, लेकिन बारिश नहीं होती। ऐसे में बारिश की समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने इसपर विचार किया था। कृत्रिम वर्षा करने के लिए कृत्रिम बादल बनाये जाते हैं, जिन पर सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिससे कृत्रिम वर्षा होती है।

    क्या है सामान्य वर्षा

    साधारणतः वर्षा तब होती है, जब सूरज की गर्मी से हवा गर्म होकर हल्की हो जाती है औरऊपर की ओर उठती है। ऊपर उठी हुई हवा का दबाव कम हो जाता है और आसमान में एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वह ठंडी हो जाती है। जब इस हवा में और सघनता बढ़ जाती है तो वर्षा की बूंदे इतनी बड़ी हो जाती है कि वे अब और देर तक हवा में लटकी नही रह सकती है। वे बारिश के रूप में नीचे गिरने लगती हैं। इसे ही सामान्य वर्षा कहते हैं।

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    कृत्रिम वर्षा कैसे कराई जाती है?

    कृत्रिम वर्षा से मतलब एक विशेष प्रक्रिया द्वारा बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम तरीके से बदलाव लाना होता है, जो वातावरण को बारिश के अनुकूल बनाता है। बादलों के बदलाव की यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है।

    तीन चरणों में पूरी होती है प्रक्रिया

    पहले चरण में रसायनों का इस्तेमाल करके वांछित इलाके के ऊपर वायु के द्रव्यमान को ऊपर की तरफ भेजा जाता है, जिससे वे बादल बना सके। इस प्रक्रिया में कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक और यूरिया के यौगिक और यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट के यौगिक का प्रयोग किया जाता है। यौगिक हवा से जलवाष्प को सोख लेते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। दूसरे चरण में बादलों के द्रव्यमान को नमक, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, सूखी बर्फ और कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग करके बढ़ाया जाता है।

    बादलों में केमिकल कैसे छिड़का जाता है?

    तीसरे चरण की प्रक्रिया तब की जाती है, जब या तो बादल पहले से बने हुए हों या मनुष्य द्वारा बनाये गए हों। इस चरण में सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का बादलों में छिड़काव किया जाता है। इससे बादलों का घनत्व बढ़ जाता है और सम्पूर्ण बादल बर्फीले स्वरुप में बदल जाते हैं और वे इतने भारी हो जाते हैं कि और कुछ देर तक आसमान में लटके नही रह सकते हैं तो बारिश के रूप में बरसने लगते हैं। सिल्वर आयोडाइड को निर्धारित बादलों में प्रत्यारोपित करने के लिए हवाई जहाज, विस्फोटक रौकेट्स या गुब्बारे का प्रयोग किया जाता है। कृत्रिम वर्षा कराने के लिए इसी प्रक्रिया का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।

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