अमावस्या को मनाया जाने वाला दीवाली का त्योहार एक-दो नहीं, बल्कि पूरे पांच पर्वो का होता है
दीवाली की शुरुआत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुरू होती है। इसे ही धनतेरस कहा जाता है। इस दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा-आराधना की जाती है। धनतेरस के दिन घर-गृहस्थी से जुड़ी वस्तुओं के साथ ही आभूषण आदि खरीदने की परंपरा है।
नई दिल्ली, निहारिका। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या को मनाया जाने वाला दीवाली का त्योहार सबसे अलग है, क्योंकि यह ऐसा त्योहार है जो एक-दो नहीं, बल्कि पूरे पांच पर्वो का होता है।
पहला पर्व:
दीवाली के त्योहार की शुरुआत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुरू होती है। इसे ही धनतेरस कहा जाता है। इस दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा-आराधना की जाती है। धनतेरस के दिन घर-गृहस्थी से जुड़ी वस्तुओं के साथ ही आभूषण आदि खरीदने की परंपरा है। बहुत से स्थानों पर इस दिन घी के दीये जलाकर देवी लक्ष्मी की आराधना की जाती है।
दूसरा पर्व:
दूसरा पर्व होता है चतुर्दशी का। इसे नरक चौदस या रूप चौदस भी कहा जाता है। इसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है। बहुत से स्थानों पर इस दिन शाम के समय घर की नाली के पास पुराना मिट्टी का दीपक (सरसों का तेल डालकर) जलाया जाता है। कुछ स्थानों पर इस दिन घर के सभी सदस्य सुबह के समय उबटन लगाकर स्नान करते हैं। इस बार नरक चौदस और दीवाली का त्योहार एक साथ मनाया जाएगा।
तीसरा पर्व
तीसरा पर्व होता है दीवाली का। भारत के अधिकांश हिस्सों में दीवाली का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणोश व माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीये जलाकर हर ओर प्रकाश किया जाता है। दीवाली का त्योहार विदेशों में भी मनाया जाता है। इस त्योहार से अनेक प्रकार की कथाएं जुड़ी हैं। हालांकि इन सबका एक ही मर्म है कि हमारे जीवन से अंधियारा दूर हो और हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश हो।
चौथा पर्व:
चौथा पर्व शुक्ल पक्ष प्रतिपदा का होता है। इसे अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन घर में अनेक प्रकार के व्यंजन बनते हैं और घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाकर और घर में बने व्यंजनों का भोग लगाकर गोवर्धन की पूजा की जाती है।
पांचवा पर्व:
इस पर्व को भाई दूज और यम द्वितीया कहा जाता है। भाई दूज का पर्व दीवाली का अंतिम पर्व होता है। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को और प्रगाढ़ करता है। इस दिन बहनें अपने भाई को टीका लगाकर उसकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। कुछ स्थानों पर इस दिन बहन-भाई के यमुना नदी में स्नान करने की भी परंपरा है। इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज दूर रहते हैं।
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