सरस आजीविका मेला: आत्मनिर्भरता की मिसाल बनीं लखपति दीदियां, हुनर से बदल रही गांवों की तस्वीर
दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में सरस आजीविका मेला लगा है जहाँ महिला उद्यमिता और आत्मनिर्भरता की झलक दिख रही है। लुधियाना से आई लखपति दीदी शिखा अपने हाथों से बनाए खिलौने बेच रही हैं। उत्तर प्रदेश की गुलबहार बेडशीट पर कढ़ाई कर महिलाओं को रोजगार दे रही हैं। बिहार की नीतू देवी मखाने की खेती से कमा रही हैं। कुल 200 लखपति दीदियों ने मेले में स्टाल लगाए हैं।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में चल रहे सरस आजीविका मेले में महिला उद्यमिता और आत्मनिर्भरता की झलक साफ दिखाई दे रही है। यहां स्टाल लगाने वाली महिलाएं न सिर्फ सामाजिक बेड़ियों को तोड़ चुकी हैं बल्कि अपने हुनर के दम पर परिवार का भरण- पोषण कर रही हैं। ये महिलाएं ग्रामीण अंचल की दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने की राह दिखा रही हैं।
बाजार भाव से कम दाम पर बेच रही
मेले में हर उम्र के लोगों के लिए कुछ न कुछ खास है। बच्चों के लिए जहां आकर्षक खिलौनों के स्टाल हैं। वहीं गृहिणियों के लिए बेडशीट, परिधान और खानपान की सामग्री उपलब्ध है। लुधियाना से आईं 20 वर्षीय लखपति दीदी शिखा अपने हाथों से बनाए साफ्ट खिलौनों को बाजार भाव से कम दाम पर बेच रही हैं।
शिखा बताती हैं कि हर माता-पिता चाहते हैं कि बच्चों को उनकी पसंद का खिलौना मिले, लेकिन महंगाई बड़ी बाधा बन जाती है। स्वरोजगार ने मुझे यह अवसर दिया कि मैं सस्ते और टिकाऊ खिलौने बाजार में उतार सकूं। करीब 30-35 तरह के खिलौनों के साथ वह मेले में बच्चों की मुस्कान बिखेर रही हैं।
आज दे रही हैं रोजगार
उधर, उत्तर प्रदेश के बागपत से आईं गुलबहार की कहानी भी संघर्ष और सफलता की मिसाल है। घरेलू खर्च पूरे न हो पाने पर उन्होंने घर की चौखट लांघ सिलाई- कढ़ाई का प्रशिक्षण लिया। धीरे-धीरे अन्य महिलाओं को जोड़कर 11 सदस्यीय समूह बनाया और बेडशीट पर सुंदर कढ़ाई का काम शुरू किया। आज उनकी बेडशीट की मांग यूपी से बाहर के बाजारों में भी है। पहली बार दिल्ली आई गुलबहार बताती हैं कि जहां पहले दस रुपये खर्च करने में सोचना पड़ता था। वहीं, आज मैं गांव की महिलाओं को रोजगार दे रही हूं।
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घर से बाहर निकलने पर थी पाबंदी
बिहार के हाजीपुर से आईं नीतू देवी की कहानी भी प्रेरणादायक है। पति की मामूली आमदनी से परिवार का खर्च चलाना मुश्किल था। ससुराल के विरोध के बावजूद नीतू ने स्वयं सहायता समूह से जुड़कर मखाने की खेती शुरू की। अब उनकी मेहनत रंग लाई है। बाजार में मखाने की अच्छी कीमत मिल रही है और आठ-दस महिलाएं उनके साथ जुड़कर हर माह अच्छा खासा कमा रही हैं। नीतू मुस्कुराते हुए कहती हैं कि आज वही लोग जो मुझे घर से बाहर निकलने नहीं देना चाहते थे, अब मेरे प्रयासों पर गर्व करते हैं।
200 लखपति दीदियों ने अपना स्टाल लगाया
ग्रामीण विकास मंत्रालय की निदेशक डाॅ. मौली श्री ने बताया सरस मेले का यह दृश्य स्पष्ट करता है कि आत्मनिर्भरता की राह पर निकली महिलाएं न केवल अपनी जिंदगी संवार रही हैं बल्कि पूरे गांव की तस्वीर बदल रही हैं। सरस मेले में 31 राज्यों से आई कुल 200 लखपति दीदियों ने अपना स्टाल लगाया है।
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