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जरूरतें पूरी करने को संचयन से ज्यादा हो रहा दोहन, इन उपायों को करने से बनेगी बात

यमुना को मौजूदा दौर में मानसूनी नदी (ऐसी नदियां जो वैसे भले सूखी रहती हों लेकिन मानसून में वर्ष भर का पानी रिचार्ज कर लेती हैं) मानते हुए भी दिल्ली का जल संकट दूर किया जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 21 Jul 2021 12:19 PM (IST)Updated: Wed, 21 Jul 2021 12:19 PM (IST)
विलुप्त भूजल पुनर्भरण संरचनाओं का करना होगा कायाकल्प।

नई दिल्ली, सजीव गुप्ता। दिल्ली-एनसीआर पानी की कमी वाला क्षेत्र है, इसीलिए इसके विभिन्न हिस्सों में भूजल संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है। पिछले एक दशक में इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या और इसके घनत्व में तेजी से वृद्धि हुई है। उच्च जनसंख्या घनत्व के चलते ही तमाम जरूरतें पूरी करने के लिए अधिक मात्र में पानी की आवश्यकता होती है। इसी दिशा में सतही जल की जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल का दोहन किया जाता है। लेकिन दोहन ज्यादा और वर्षा जल संचयन के प्रयास कम होने के कारण प्राकृतिक पुनर्भरण की दर लगातार घटती जा रही है।

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यही वजह है कि साल दर साल भूजल के स्तर में गिरावट की प्रवृत्ति बढ़ रही है। वर्षा जल संचयन और भूजल स्तर में सुधार करने के लिए प्राकृतिक जल स्रोतों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। इसके बिना भूजल स्तर में सुधार संभव ही नहीं है। लेकिन वास्तविकता यह है कि आज अनदेखी के कारण झील, बावलियां, जोहड़ एवं कुएं सूख रहे हैं। इनकी तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है। नदियों का जल स्तर भी घटता जा रहा है। दिल्ली की एकमात्र यमुना नदी तो मृतप्राय: हो चुकी है। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि नदियों और इनके आसपास का बाढ़ग्रस्त क्षेत्र भी अब सूखने लगा है जबकि यह सारा क्षेत्र मानसून के दौरान भूजल रिचार्ज के लिहाज से बेहतर विकल्प हो सकता है। बस जरूरत है इसके लिए बेहतर योजना बनाने और धरातल पर काम करने की।

इन उपायों को करने से बनेगी बात

  • वर्षा जल संचयन और कृत्रिम पुनर्भरण के लिए एनसीआर के अलवर क्वार्टजाइट्स में जल निकायों का संरक्षण और पुन: डिजाइन करने की है जरूरत
  • भूजल संसाधनों को बढ़ाने के लिए शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन और भूजल का कृत्रिम पुनर्भरण है जरूरी
  • विलुप्त भूजल पुनर्भरण संरचनाओं का करना होगा कायाकल्प
  • शहरी बाढ़ को समायोजित करने और पुनर्भरण उद्देश्यों के लिए तालाबों के साथ पार्क अवधारणा को शामिल करने के लिए लैंड स्केप वास्तुकला का भी सहारा लिया जाना चाहिए

ईमानदार प्रयास की दरकार : यमुना को मौजूदा दौर में मानसूनी नदी (ऐसी नदियां जो वैसे भले सूखी रहती हों, लेकिन मानसून में वर्ष भर का पानी रिचार्ज कर लेती हैं) मानते हुए भी दिल्ली का जल संकट दूर किया जा सकता है। जरूरत केवल इस पानी को सहेज कर रखने, उसे प्रदूषण से बचाने और बेहतर ढंग से उपयोग में लाने की है। इसके लिए गंदे नालों को यमुना से अगल कर बरसाती नालों को जोड़ना होगा। सोसायटी में भी सामूहिक स्तर पर वर्षा जल संचयन के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। इससे कम से कम सोसायटी स्तर पर पानी की कमी तो दूर होगी। इन सब के अलावा सरकार को ईमानदारी पूर्वक वर्षा जल संचयन की दिशा में काम करने की जरूरत है।

[प्रो. शशांक शेखर प्रोफेसर, भूगर्भ विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय]


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