Holika Dahan Timing 2021: जानिये- कैसे होलिका दहन की लौ भी देती है शुभ-अशुभ का संकेत
Holika Dahan Timing 2021 होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रविवार शाम 6 बजकर 37 मिनट से शुरू हुआ और रात 8 बजकर 56 मिनट तक ही रहा। दिल्ली-एनसीआर में भी लोगों ने होलिका दहन के दौरान विधिवत पूजा भी की।

नई दिल्ली/नोएडा/गाजियाबाद, ऑनलाइन डेस्क। Holika Dahan Timing 2021: कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे और प्रभाव के बीच सोमवार को देशभर में रंगों का त्योहार होली मनाया जा रहा है। वहीं, इससे पहले दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार समेत भारत के तमाम राज्यों में रविवार शाम को होलिका दहन किया गया। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रविवार शाम 6 बजकर 37 मिनट से शुरू हुआ और रात 8 बजकर 56 मिनट तक ही रहा। दरअसल, दिल्ली-UP समेत पूरे भारत में होलिका दहन का शुभ मुहूर्त सिर्फ 2 घंटे 20 मिनट के लिए ही रहा। इसी मुहुर्त में दिल्ली-एनसीआर में भी लोगों ने होलिका दहन के दौरान विधिवत पूजा भी की। वहीं, कई ज्योतिषियों के मुताबिक, रविवार को पूर्णिमा तिथि 27 की देर रात 2:28 बजे लगी जो 28 मार्च की देर रात 12:39 बजे तक रही, कई जगहों पर रात तक होलिका दहन किया गया।
होलिका दहन मार्च 28, 2021
होलिका दहन मुहूर्त : रविवार शाम 6 बजकर 37 मिनट से शुरू होकर रात 8 बजकर 56 मिनट तक रहा।
शुभ मुहूर्त की अवधि : 2 घंटे 20 मिनट रही।
होलिका दहन मुहूर्त : रविवार शाम 7:00 बजे से रात 12:39 बजे तक (कई ज्योतिषियों के मुताबिक)
विद्वानों के मुताबिक, भद्रा दिन में 1 बजकर 33 बजे समाप्त हुई और पूर्णिमा तिथि रात में 12:40 तक ही रहेगी। ऐसे में भद्रा रहित पूर्णिमा तिथि में ही होलिका दहन शुभ होता है और इस लिहाज से रविवार रात में 12:30 बजे से पूर्व होलिका दहन करना ठीक होगा, क्योंकि रात में 12:30 बजे के बाद प्रतिपदा तिथि लग जाएगी।
#WATCH दिल्ली: होलिका दहन के अवसर पर दिल्ली के खान मार्केट से दृश्य। pic.twitter.com/ocT8P02rpU
— ANI_HindiNews (@AHindinews) March 28, 2021
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वहीं, विद्वानों का कहना है कि होलिका दहन की लौ भी शुभ-अशुभ का भी संकेत देती है। कहा जाता है कि होलिका दहन के दौरान जब लौ पूर्व दिशा की ओर उठती है तो इससे भविष्य में धर्म, अध्यात्म, शिक्षा व रोजगार के क्षेत्र में लाभ होता है। विकास होता है। इसके विपरीत होलिका दहन के दौरान अगर पश्चिम में आग की लौ उठे तो पशुधन को लाभ होता है। इसी तरह लौ के उत्तर की ओर रुख करने पर देश व समाज में सुख-शांति बनी रहती है। इसी कड़ी में दक्षिण दिशा में होली की लौ हो तो अशांति और क्लेश बढ़ता है। झगड़े-विवाद होते हैं। पशुधन की हानि होती है और तो और आपराधिक मामले भी बढ़ते हैं।
इन गलतियों से बचें
होलिका दहन के पूरे दिन किसी से भी पैसे उधार न लें। इस दिन सफेद खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहिए।
इस दिन कोई भी मांगलिक या शुभ कार्य नहीं करें। होलिका दहन पूजन के दौरान हमेशा अपना सिर कपड़े से ढककर ही पूजा करें, इसे शुभ माना जाता है। नवविवाहित महिलाएं व सास और बहू एक साथ होलिका दहन न देखें। ऐसा करना कतई शुभ नहीं होता है।
चार शुभ मुहूर्त
- अभिजीत मुहूर्त- 28 मार्च दोपहर 12 बजकर 07 मिनट से 12 बजकर 56 मिनट तक रहा।
- अमृत काल- 28 मार्च को सुबह 11 बजकर 04 मिनट से दोपहर में 12 बजकर 31 मिनट तक रहा।
- सर्वार्थसिद्धि योग- 28 मार्च को सुबह 6 बजकर 26 से शाम 5 बजकर 36 तक था।
- अमृतसिद्धि योग- 28 मार्च को सुबह 5 बजकर 36 मिनट से 29 मार्च की सुबह 6 बजकर 25 मिनट तक रहा।
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क्रमवार जानिये होली पूजा की विधि
- होलिका दहन पूजन के दौरान हमेशा अपना सिर कपड़े से ढककर रखें
- नवविवाहित महिलाएं व सास और बहु एक साथ होलिका दहन न देंखे
- होली पूजा से पूर्व स्नान जरूर करना चाहिए। इससे आप भीतर से प्रसन्नचित महसूस करेंगे।
- होलिका पूजे से पूर्व अक्षत्, गंध, फूल, कच्चा सूत, एक लोटा जल, माला, रोली, गुड़, गुलाल, रंग, नारियल, गेंहू की बालियां, मूंग पहले से एकत्र कर लें
- पूजा सामग्री के साथ होलिका के स्थान पर पहुंचे फिर नियमानुसार पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- पूजा करने के क्रम में गंध, धूप, पुष्प आदि से होलिका की पंचोपचार विधि से शुरुआत करें।
- पूजा के दौरान अपने पितरों, परिवार के नाम से बड़गुल्ले की एक-एक माला होलिका को समर्पित करें। इसके बाद 3 या 7 बार परिक्रमा करें। इस दौरान कच्चा सूत होलिका में लपेट दें।
- पूजा के क्रम में अब लोटे का जल तथा अन्य पूजा सामग्री होलिका को समर्पित कर दें। इसी के साथ होली की पूजा पूर्ण हो जाएगी।
- होली पूजा के बाद बताए गए मुहूर्त में परिजनों के साथ सार्वजनिक स्थान पर बनी होलिका के पास एकत्र हो जाएं।
- विधि के अंतिम चरण में कपूर या उप्पलों की मदद से होलिका में आग प्रज्जवलित कर दें।
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होलिका दहन के दौरान इन मंत्रों को करें उच्चारण
नमस्ते नरसिंहाय प्रह्लादाह्लाद दायिने
हिरण्यकशिपोर्वक्षः शिला-टङ्क-नखालये
इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो
यतो यतो यामि ततो नृसिंहः
बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो
नृसिंहमादिं शरणं प्रपद्ये
पढ़िये- होलिका दहन से जुड़ी कहानी
होलिका दहन का पौराणिक महत्व हजारों साल से है। होली त्योहार को लेकर कहानी प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप से जुड़ी। दरअसल, राक्षस हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। प्रह्लाद हमेशा भगवान विष्णु का याद कर उनकी पूजा तक किया करता था। इससे हिरण्यकश्यप नाराज रहने लगा, क्योंकि वह भगवान विष्णु को अपना भगवान मानता था और हमेशा उनसे खिन्न रहता था। उधर, पिता की मनाही के बावजूद प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता रहा।
वहीं, नाराज हिरण्यकश्यप ने कई बार अपने पुत्र प्रह्लाल को मारने की कोशिश की, लेकिन विष्णु की कृपा से उसे सफलता नहीं मिली। वहीं, षड़यंत्र के तहत हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि की चिता पर बैठी, लेकिन होलिका जलकर राख हो गई, लेकिन प्रह्लात को कुछ नहीं हुई। दरअसल, होलिका को आग में न जलने का वरदान मिला था।
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