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    Kawad 2024: दिल्ली समेत कई राज्यों के कांवड़िए UP के प्रसिद्ध पुरामहादेव मंदिर पर क्यों करते हैं जलाभिषेक? जानिए वजह और पूरा इतिहास

    Updated: Thu, 01 Aug 2024 06:53 PM (IST)

    Pura Mahadev Temple Baghpat महाशिवरात्रि का जल 2 अगस्त को चढ़ेगा। हरिद्वार गए लाखों कांवड़िए अपने शिवालयों की ओर चल पड़े हैं। कुछ कांवड़िए अपने गंतव्य तक पहुंच चुके हैं तो कुछ पहुंचने वाले हैं। दिल्ली हरियाणा और यूपी के सबसे ज्यादा कांवड़िए प्राचीन पुरामहादेव मंदिर पर ही जलाभिषेक करते हैं। पूरे देश में प्रसिद्ध पुरामहादेव मंदिर का क्या इतिहास है? इस रिपोर्ट में पढ़िए-

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    Pura Mahadev Temple Baghpat बागपत में स्थित प्राचीन पुरामहादेव मंदिर। जागरण फोटो

    Kanwar Yatra 2024 दिल्ली, हरियाणा और यूपी समेत कई राज्यों से हर साल लाखों की संख्या में कांवड़िए हरिद्वार जाते हैं। इस बार 22 जुलाई से सावन माह शुरू तो शिव भक्त भी कांवड़ व जल लेने हरिद्वार के लिए निकल पड़े। कोई वर्षों से शिव भगवान के नाम की कांवड़ लेकर आ रहा है तो कोई पहली बार बाबा महादेव के दर्शन के लिए नीलकंठ की चोटी पर पहुंचा।

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    वहीं, अब भोले के भक्त अपने शिवालयों की ओर चल पड़े हैं और कल यानी शुक्रवार तक सभी अपने-अपने क्षेत्रों के शिव मंदिरों तक पहुंच जाएंगे। लेकिन शिव भक्तों की भी अपनी-अपनी आस्था है। दिल्ली, हरियाणा और यूपी के ज्यादातर कांवड़िए प्राचीन परशुरामेश्वर पुरामहादेव मंदिर Pura Mahadev Temple Baghpat पर जलाभिषेक करते हैं। इस प्राचीन मंदिर का इतिहास भगवान शिव से जुड़ा है। आइए आज हम आपको इस प्रसिद्ध मंदिर का इतिहास और मान्यता के बारे में बताएंगे-

    पुरामहादेव मंदिर पर लाखों कांवड़िए करते हैं जलाभिषेक

    यह प्राचीन मंदिर पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। इस मंदिर में दूर-दूर से लोग भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं। खास बात यह है कि हर साल सावन माह Sawan 2024 में इस प्राचीन मंदिर पर हर सोमवार को शिव भक्तों की खूब भीड़ लगती है। वहीं, महाशिवरात्रि पर तो लाखों की संख्या में कांवड़िए जलाभिषेक Puramahadev Mandir Jalabhishek करते हैं। इस दौरान मंदिर पर अधिकतर दिल्ली, हरियाणा और यूपी के कांवड़िए जलाभिषेक करते हैं। क्योंकि इस प्राचीन मंदिर को इन राज्यों के शिव भक्तों की आस्था का केंद्र माना जाता है। 

    सुरक्षा व्यवस्था के रहते हैं कड़े इंतजाम

    पूरे सावन माह में शिव भक्तों व कांवड़ियों की संख्या के हिसाब से यहां सुरक्षा व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं। इस दौरान यहां चप्पे-चप्पे पर पुलिस फोर्स का पहरा रहता है। बताया जाता है कि सावन महाशिरात्रि पर यहां कई राज्यों के कांवड़िए जलाभिषेक करते हैं, जिस वजह से लाखों की संख्या में शिव भक्त पहुंचते हैं। इसी को देखते हुए पुलिस प्रशासन के अधिकारी पहले ही सुरक्षा व्यवस्था को लेकर तैयारी करते हैं। यहां शिव भक्तों को कोई भी परेशानी नहीं होने दी जाती है।

    शुभ मुहूर्त का समय

    इस बार सावन माह की शिवरात्रि शुक्रवार, दो अगस्त 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त रात्रि 12 बजकर 06 मिनट से रात 12 बजकर 49 मिनट तक रहने वाला है।

    क्या है पुरामहादेव मंदिर का इतिहास?

    बागपत जनपद के पुरा गांव में पुरामहादेव मंदिर स्थित है। यह प्राचीन मंदिर शिवभक्तों का श्रद्धा केंद्र है और इसे एक प्राचीन सिध्दपीठ भी माना गया है। यहां कभी कजरी वन हुआ करता था। बताया जाता है कि यहीं पर एक आश्रम में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका के संग रहते थे।

    प्राचीन समय में एक बार राजा सहस्त्र बाहु शिकार करते हुए ऋषि जमदग्नि के आश्रम में पहुंच जाते हैं। इस दौरान जमदग्नि की पत्नी रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का पूर्ण आदर सत्कार किया। लेकिन राजा बलपूर्वक उस गाय को अपने साथ ले जाना चाहते थे।

    वहीं, गाय को अपने साथ ले जाने में विफल होने पर राजा गुस्से में रेणुका को ही बलपूर्वक अपने साथ हस्तिनापुर महल में ले जाते हैं और वहां बंधक बना लेते हैं। लेकिन राजा की पत्नी (रानी) ने रेणुका को बंधन मुक्त करा दिया था।

    यहां किसने स्थापित किया था शिवलिंग?

    इसके बाद रेणुका ने आश्रम पहुंच कर ऋषि को पूरा किस्सा सुनाया तो ऋषि ने एक रात्रि दूसरे पुरुष के महल में रहने के कारण रेणुका को आश्रम छोड़ने का आदेश दे दिया। इतना ही नहीं ऋषि ने अपने चौथे पुत्र परशुराम को अपनी मां का सिर धड़ से अलग करने का आदेश दिया। परशुराम ने पिता का आदेश मानते हुए अपनी मां का सिर धड़ से अलग कर दिया।

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    वहीं, बाद में पश्चाताप हुआ तो शिवलिंग स्थापित कर महादेव की पूजा की। भगवान शिव ने प्रत्यक्ष दर्शन दिए और वरदान में माता को जीवित कर दिया और एक परशु (फरसा) भी दिया। युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया।

    इसके बाद भगवान परशुराम वहीं वन में एक कुटिया बनाकर रहने लगे थे। परशुराम ने कुछ दिनों बाद अपने फरसे से संपूर्ण सेना सहित राजा सहस्त्रबाहु को मार गिराया था। बताया जाता है कि जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी वहां एक मंदिर भी बनवाया गया था।

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    कालांतर में मंदिर खंडहरों में बदल गया। काफी समय बाद एक दिन लंडौरा की रानी इधर घूमने निकली तो उसका हाथी वहां आकर रुक गया। महावत की बड़ी कोशिश के बाद भी हाथी वहां से नहीं हिला। इसके बाद रानी ने सैनिकों को वह स्थान खोदने का आदेश दिया। खुदाई में वहां एक शिवलिंग प्रकट हुआ, जिस पर रानी ने एक मंदिर बनवा दिया। यही शिवलिंग और इस पर बना मंदिर आज परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से विख्यात है। इसी पवित्र स्थल पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी कृष्ण बोध आश्रम जी महाराज ने भी तपस्या की थी।

    इस प्राचीन मंदिर की मान्यता

    मेरठ से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित पुरामहादेव मंदिर की बहुत मान्यता है। माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से भगवान शिव के दर्शन करने आता है, बाबा महादेव उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। यहां देश के अलग-अलग शहरों से श्रद्धालु शिव भगवान के दर्शन करने आते हैं।

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