आखिर जंतर-मंतर पर ही प्रदर्शन क्यों? जानिए कैसे एक ऐतिहासिक धरोहर बनी लोकतंत्र की आवाज
दिल्ली में जंतर-मंतर के प्रदर्शन स्थल बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है। जंतर-मंतर पर पहला विरोध प्रदर्शन साल 1993 में हुआ था। इसके बाद यह अन्ना हजारे से लेकर मेधा पाटकर जैसे समाजसेवियों के प्रदर्शन का गवाह रहा है जिन्होंने देश की सत्ता की जड़े हिलाकर रख दी थीं।

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। राष्ट्रीय राजधानी के दिल में स्थित जंतर-मंतर वैसे तो अपनी खूबसूरती और आस-पास मौजूद हरियाली के लिए पर्यटन का केंद्र बना रहता है लेकिन यह प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की भी मिसाल है। हालांकि आज की पीढ़ी के बीच जंतर-मंतर की पहचान यहां होने वाले दर्जनों प्रदर्शनों के कारण है। जंतर-मंतर कई ऐसे प्रदर्शनों का साक्षी रहा है जिसने देश की सत्ता और शासन को झुकने पर मजबूर किया। पर क्या आप जानते हैं कि ज्यादातर लोग जंतर-मंतर को अपने प्रदर्शन के लिए क्यों चुनते हैं, कैसे एक ऐतिहासिक धरोहर लोकतंत्र की आवाज बनी, अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको बताते हैं जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शनों के इतिहास के बारे में...।
पहलवानों का प्रदर्शन
दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश के लिए ओलंपिक में मेडल जीतने वाले पहलवान WFI के प्रमुख के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए उन पर एफआईआर दर्ज करने की मांग कर रहे हैं। महिला पहलवानों ने डब्ल्यूएफआई और अन्य कोच पर यौन शोषण का आरोप लगाया था।
वहीं, पहलवानों की अर्जी पर मंगलवार 25 अप्रैल को सुप्रीम ने सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है और पुलिस से जवाब मांगा है। अब इस मामले की सुनवाई शुक्रवार 28 अप्रैल को होगी। इससे पहले पहलवानों ने डब्ल्यूएफआई के प्रमुख बृज भूषण के खिलाफ जनवरी में प्रदर्शन किया था। तब सरकार के आश्वासन पर उन्होंने अपना प्रदर्शन खत्म कर दिया था, लेकिन कार्रवाई न होने पर फिर से विरोध प्रदर्शन पर बैठ गए हैं।
कब हुआ जंतर-मंतर पर पहला विरोध प्रदर्शन
जंतर-मंतर की देश के सबसे बड़े प्रदर्शन स्थल के रूप में उभरने की कहानी बेहद रोचक है। संसद भवन के करीब होने की वजह से यहां हर वक्त विरोध प्रदर्शन और आंदोलन चलते रहते हैं, जबकि कुछ लोग तो वहां सालों से अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। जंतर-मंतर पर पहला विरोध प्रदर्शन 1993 में DUSU के अध्यक्ष आशीष सूद ने केंद्र सरकार के एक आदेश के बाद किया था। इसके बाद से यह हजारों छोटे-बड़े प्रदर्शनों का गवाह बन चुका है।
अन्ना हजारे आंदोलन
अपने प्रदर्शन से देश की सत्ता की जड़ें हिला देने वाले अन्ना हजारे ने अपने आंदोलन की शुरुआत अप्रैल, 2011 में यहीं से की थी। महाराष्ट्र के समाजसेवी हजारे ने लोकपाल बिल लाने और देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए यहीं से आंदोलन शुरू किया था और इसके बाद जो हुआ उसका गवाह पूरा देश है। अन्ना हजारे के इस आंदोलन से देश को कई नेता मिले तो इस आंदोलन से कई नए समाजसेवियों का भी जन्म हुआ।
समाज सेवी मेधा पाटकर के नेतृत्व में साल 2013 में नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन किया। इसके बाद साल 2017 में तमिलनाडु के किसानों ने सूखा राहत पैकेज देने की मांग को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया। किसानों ने इस प्रदर्शन के जरिए केंद्र सरकार से राहत के लिए भारी भरकम रकम की मांग की थी।
एनजीटी ने प्रदर्शनों पर लगाई रोक
एनजीटी ने साल 2017 में जंतर-मंतर पर विरोध-प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी थी। एनजीटी ने कहा था कि इन प्रदर्शनों की वजह से इस जगह की हरियाली खराब हो रही है और इलाके में गंदगी भी फैल रही है। साथ ही एनजीटी ने लोगों को रामलीला मैदान में प्रदर्शन करने की सलाह दी थी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने 2018 में एनजीटी के इस आदेश पर रोक लगाते हुए दिल्ली पुलिस से नई गाइडलाइन जारी करने को कहा था।
जंतर-मंतर से पहले यहां होते थे विरोध प्रदर्शन
बताया जाता है कि किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान संघ के विरोध ने अक्टूबर, 1988 में सरकार को हिला दिया था। उस दौर में राजधानी ने कई सालों बाद उस वक्त का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन देखा था। टिकैत हजारों आंदोलनकारी किसानों और मवेशियों के साथ प्रदर्शन के लिए दिल्ली के बोट क्लब पहुंचे थे। मवेशियों के बोट क्लब के पास पहुंचने से यह पूरा इलाका बुरी तरह गंदगी से भर गया। इसके बाद सरकार ने एक कानून लाकर बोट क्लब पर विरोध प्रदर्शन करने पर प्रतिबंध लगा दिया था और इसके बाद जंतर-मंतर को प्रदर्शनकारियों के लिए आधिकारिक स्थल बना दिया। वहीं, बोट क्लब से पहले दिल्ली में विरोध प्रदर्शन अकबर रोड पर हुआ करते थे।
कब हुआ जंतर-मंतर का निर्माण
आज भारतीय लोकतंत्र में अपनी महत्वपूर्ण जगह बना चुका जंतर-मंतर हजारों विरोध प्रदर्शनों का गवाह है। दिल्ली के बीचों-बीच स्थित जंतर-मंतर का निर्माण साल 1724 में महाराज जयसिंह द्वितीय ने कराया था। यह एक खगोलीय वेधशाला है। मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दू और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थिति को लेकर बहस छिड़ गई थी, जिसको खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। उन्होंने दिल्ली के साथ-साथ जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी इसका निर्माण कराया था। बताया जाता है कि दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है।

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