जेएनयू में भारतीय ज्ञान परंपरा पर बोले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, स्वदेशी ज्ञान को खारिज करना है सुनियोजित विनाश
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारत का उदय तभी सार्थक है जब उसकी बौद्धिक और सांस्कृतिक गरिमा बढ़े। उन्होंने स्वदेशी ज्ञान की उपेक्षा पर चिंता जताई और इसे संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया। केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनरुत्थान को सराहा।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारत का वैश्विक शक्ति के रूप में उदय तभी सार्थक होगा जब उसके साथ उसकी बौद्धिक और सांस्कृतिक गरिमा का भी उत्थान होगा। वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में भारतीय ज्ञान परंपरा (आइकेएस) पर हुए प्रथम वार्षिक अकादमिक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। वहीं, आइसा ने इस दौरान प्रदर्शन भी किया।
इस अवसर पर उन्होंने कहा, “सिर्फ भौतिक उत्थान टिकाऊ नहीं होता, हमारी परंपराओं के अनुरूप नहीं होता। किसी राष्ट्र की ताकत उसके विचारों की मौलिकता, मूल्यों की शाश्वतता और बौद्धिक परंपराओं की दृढ़ता में होती है। यही स्थायी साफ्ट पावर है, जिसकी आज वैश्विक पटल पर सबसे अधिक आवश्यकता है।”
ज्ञान की निरंतर प्रवाहित होने वाली धारा
उन्होंने कहा, “भारत कोई मध्य-20वीं शताब्दी में बना राजनीतिक निर्माण मात्र नहीं है। यह चेतना, जिज्ञासा और ज्ञान की निरंतर प्रवाहित होने वाली धारा है।”
देश की स्वदेशी ज्ञान परंपरा की उपेक्षा की आलोचना करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “जब स्वदेशी ज्ञान को आदिम अतीत की वस्तु मानकर खारिज किया गया, तो यह व्याख्या की त्रुटि नहीं थी, बल्कि सुनियोजित विनाश, विस्मृति और मिटाने की प्रक्रिया थी। यह चयनात्मक स्मरण स्वतंत्रता के बाद भी जारी रहा। पश्चिमी अवधारणाओं को सार्वभौमिक सत्य के रूप में स्थापित किया गया, जबकि वास्तविकता यह थी कि असत्य को सत्य के रूप में प्रस्तुत किया गया।”
इस्लामी आक्रमण था भारतीय ज्ञान पर प्रहार
उन्होंने कहा, “इस्लामी आक्रमण के दौरान भारतीय विद्या परंपरा की गौरवशाली यात्रा में पहला व्यवधान आया, जब विनम्रता और आत्मसात के बजाय तिरस्कार और विध्वंस हुआ। ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने दूसरा व्यवधान पैदा किया, जब हमारी ज्ञान प्रणाली को बाधित कर दिया गया। हमारे शिक्षा केंद्रों का लक्ष्य बदल गया। साधुओं और मनीषियों को जन्म देने वाले संस्थान बाबू और क्लर्क पैदा करने लगे। हम चिंतन, मनन और लेखन छोड़कर रटने और दोहराने लगे।
शास्त्रीय भाषाओं के ग्रंथों का डिजिटलीकरण जरूरी
उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को संरक्षित करने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। “संस्कृत, तमिल, पाली, प्राकृत जैसी सभी शास्त्रीय भाषाओं के ग्रंथों का डिजिटलीकरण कर व्यापक शोध के लिए उपलब्ध कराना अत्यावश्यक है।
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उन्होंने मैक्स मुलर के कथन का हवाला दिया, “यदि मुझसे पूछा जाए कि किस आकाश के नीचे मानव मस्तिष्क ने अपने श्रेष्ठतम विचार विकसित किए, जीवन की महानतम समस्याओं पर सबसे गहरा चिंतन किया और उनके ऐसे समाधान खोजे जो प्लेटो और कांट जैसे विचारकों का ध्यान आकर्षित कर सकें, तो मैं भारत की ओर इंगित करूंगा।” उपराष्ट्रपति ने कहा, “यह शाश्वत सत्य का ही प्रतिपादन था।”
इस अवसर उपस्थित शिष्ट अतिथि केंद्रीय पोर्ट, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा, पिछले 11 वर्षों में भारतीय ज्ञान परंपरा का ऐतिहासिक पुनरुत्थान हुआ है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से लेकर आयुष की वैश्विक मान्यता तक, हमारे वैदिक विज्ञान, आयुर्वेद, दर्शन और समुद्री ज्ञान विद्यार्थियों को एक समग्र और उपनिवेश-मुक्त दृष्टिकोण प्रदान कर रहे हैं।
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जेएनयू की यह पहल समयानुकूल और परिवर्तनकारी है। भारतीय ज्ञान परंपरा भविष्य की शिक्षा और वैश्विक कल्याण का पथ प्रदर्शक बनेगी। स्वागत भाषण देते हुए कुलपति प्रो. शांतिश्री डी पंडित ने कहा, राजनीतिक शक्ति के लिए नैरेटिव शक्ति चाहिए। इसलिए बौद्धिक वर्ग का महत्व अत्यधिक है और उच्च शिक्षा संस्थानों का यह कर्तव्य बनता है।”
यह सम्मेलन भारतीय ज्ञान परंपराओं के व्यवस्थित अध्ययन का आधार बनेगा और ‘विकसित भारत’ के प्रधानमंत्री के विजन को सशक्त नैरेटिव शक्ति प्रदान करेगा। तीन दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन छह सत्र हुए। इसमें देश-विदेश से आए विद्वानों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
आइसा ने किया विरोध-प्रदर्शन
उधर, आईकेएस कार्यशाला में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के सम्मिलित होने के दौरान ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने प्रदर्शन किया। जेएनयूएसयू के पदाधिकारी पिछले 14 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे हैं। जेएनयू प्रवेश परीक्षा बहाल करने, छात्रों पर लगे फाइन हटाने, छात्रावास विस्तार, छात्रवृत्ति में बढ़ोतरी जैसी मांगें कर रहे हैं। इसी के लिए उन्होंने उपराष्ट्रपति के कार्यक्रम में प्रदर्शन करने की कोशिश की। लेकिन, उन्हें पहले ही रोक लिया गया।
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