जानें क्या है फॉरेंसिक डेंटिस्ट्री तकनीक, जिसने निर्भया के दोषियों की पहचान कर फांसी तक पहुंचाया
निर्भया मामले मे यूं तो कई सुबूत ऐसे थे जिन्होंने दोषियों को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने में मदद की थी लेकिन इनमें फॉरेंसिक डेटिस्ट्री काफी अहम तकनीक थी। इसका पहली बार इस्तेमाल हुआ था।
नई दिल्ली (जेएनएन)। सात वर्षों तक चली लंबी काूननी प्रकिया के बाद आखिरकार शुक्रवार की सुबह निर्भया मामले के सभी चार दोषियों को फांसी दे दी गई। भारत में ये मामला कई चीजों को लेकर नजीर बना। इस मामले को सुलझाने के लिए जुटाए गए सुबूतों के अलावा वो तकनीक भी पहली बार देश में इस्तेमाल की गई जिसने दोषियों की न सिर्फ पहचान करवाई बल्कि उनको उनके किए गुनाह की सजा भी दिलवाई।
इस मामले को सुलझाने और दोषियों की पहचान कराने में जिस तकनीक ने सबसे अहम भूमिका निभाई वो फॉरेंसिक डेंटिस्ट्री तकनीक थी। इसका इस्तेमाल पहली बार देश में किसी मामले को सुलझाने में किया था। इसमें पुलिस की मदद डॉ. असित आचार्य ने की जो इसके विशेषज्ञ भी थे। इस मामले से पहले भारतीय फॉरेंसिक साइंस में इस तरह की तकनीक का कोई जिक्र नहीं किया गया था।
इस तकनीक के माध्यूम से दोषियों की पहचान आसान हो गई थी। दरअसल, निर्भया के दोषियों ने उसके शरीर पर कई जगह दांतों से बुरी तरह से काट दिया था। इस तकनीक के जरिए सभी दोषियों की पहचान सुनिश्चित हो सकी थी। ऐसा इसलिए था क्यों कि कभी भी दो व्यक्तियों के दांतों की बनावट और शरीर पर काटे गए निशान एक जैसे नहीं होते। इसलिए इसे ऐसे मामलों में इसे सबसे पुख्ता सबूत माना जाता है। इसकी ही पहचान करने में ये तकनीक बेहद कारगर है।
डॉ. आचार्य के कहने पर ही निर्भया के शरीर पर मौजूद दांतों के निशान की फोटो के साथ पकड़े गए आरोपियों के दांतों के निशानों को उनके पास भेजा गया था। इसके अलावा दोषियों के दांतों की बनावट जांचने के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस दांतों का जबड़ा बनवाया गया। डाक्टदर आचार्य ने अपनी रिपोर्ट पांच दिनों में पुलिस को सौंप दी थी। उनकी इस रिपोर्ट में चार में से दो आरोपियों के दांतों के निशान निर्भया के शरीर पर मिले निशानों से मेल खा रहे थे। ये दोनों आरोपी विनय और अक्षय थे।
इस तकनीक के अलावा दूसरे साक्ष्यों जिनमें निर्भया के नाखूनों के अंदर से लिए गए दोषियों के त्वचा के नमूने और डीएनए जांच ने भी दोषियों को फांसी की तख्ते तक पहुंचाने में कारगर भूमिका अदा की थी। इनके अलावा कुछ दूसरे भौतिक साक्ष्य जिसमें एटीएम कार्ड, कपड़े, पर्स, जूते, मोबाइल, घड़ी बस में मिले निशान, फिंगर प्रिंट, ब्लड, बाल, मोबाइल लोकेशन जैसी तमाम चीजें भी दोषियों को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने का अहम जरिया बनी थीं। इसके अलावा बाल और लार से भी डीएनए लिया गया।
आपको यहां पर ये भी बता दें कि ये मामला दिल्ली पुलिस के इतिहास में पहला ऐसा मामला था, जिसमें वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये विदेश में मौजूद गवाह के बयान दर्ज किए गए। आपको याद होगा कि भारत सरकार ने निर्भया को बेहतर उपचार और खराब होती हालत के मद्देनजर सिंगापुर के माऊंट एलिजाबेथ अस्पताल में एयर एंबुलेंस से भेजा था। वहीं पर उसकी मौत भी हुई थी। इस दौरान जिन डॉक्टरों ने उसका इलाज किया उनकी भी गवाही इस मामले में दोषियों के खिलाफ अहम सुबूत बनी थी। इन डॉक्टरों की गवाही का जरिया भी वीडियो कांफ्रेंसिंग ही बनी थी।
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