निर्भया के पर्ची पर लिखे वो शब्द पढ़कर आपकी भी कांप उठेगा रूह, दर्द का होगा अहसास
निर्भया ने दर्द से भरे उन आखिरी पलों में अपनी बात को कहने के लिए छोटी छोटी पर्चियों का इस्तेमाल किया था। लेकिन इन पर लिखी गई बातें कर किसी के रोंगटे खड़े कर देंगी।
नई दिल्ली (जेएनएन)। निर्भया के मामले का सात साल बाद पटाक्षेप जरूर हो गया है, लेकिन भविष्य में भी ये मामला लोगों के जहन में बना रहेगा। इस मामले के बाद पूरे देश में इस तरह के दरिंदों के खिलाफ जो गुस्सा और निर्भया के प्रति बेबसी, दुख और सम्मान दिखाई दिया था वो पूरी दुनिया ने देखा था। लेकिन जो दर्द निर्भया और उसकी मां ने इस दौरान बर्दाश्त किया उसकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता है।
16 दिसंबर से 29 दिसंबर को सांसे थमने तक निर्भया जिंदगी के लिए पल-पल लड़ती रही। लेकिन फिर भी जीत नहीं सकी। उसके कुछ सपने थे। छोटी सी जगह पर पैदा हुई निर्भया बड़े होकर काफी कुछ करना चाहती थी और कर भी सकती थी, लेकिन छह दरिंदों ने उसको कहीं का नहीं छोड़ा था। वह अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच भी पल उन पलों को याद कर रही थी जो उसने अपने घर में परिजनों के साथ बिताए थे।
वो जब अस्पताल में अपनी मां के सामने बोल नहीं पा रही थी और दर्द से कराह रही तब वो अपनी बातों को कहने के लिए छोटी छोटी चिट का इस्तेमाल कर रही थी। इन पर वो अपने मन में आ रही बातों को लिखती और अपनी मां को दे देती। इस दौरान उसने जो कुछ कहा वो यकीनन हर किसी के रोंगटे खड़े कर देगा। विश्वारस न हो तो आप भी इन्हें पढ़ कर देख सकते हैं
19 दिसंबर 2012
मां मुझे बहुत दर्द हो रहा है। मुझे याद आ रहा है कि आपने और पापा ने मुझसे बचपन में पूछा था कि मुझे क्या बनना है। तब मैंने आपसे कहा था कि मुझे फिजियोथेरेपिस्ट बनना है। मेरे मन में एक बात थी कि मैं किस तरह से लोगों के दर्द को कम कर सकूं। आज मुझे खुद इतनी पीड़ा हो रही है कि डाॅक्टर या दवाई भी इसे कम नहीं कर पा रही है। डाॅक्टर पांच बार मेरे छोटे बड़े ऑपरेशन कर चुके हैं लेकिन दर्द कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
20 दिसंबर 2012
मां, मैं सांस भी नहीं ले पा रही हूं। डाॅक्टरों से कहो की मुझे एनेस्थीसिया न दें। जब भी मैं आंखें बंद करती हूं तो लगता है कि मैं बहुत सारे दरिंदों के बीच फंसी हूं। जानवर रूपी ये दरिंदे मेरे शरीर को नोच रहे हैं। मां, ये लोग बहुत डरावने हैं। भूखे जानवर की तरह ये लोग मुझपर टूट पड़े हैं। ये मुझे बुरी तरह से रौंद डालना चाहते हैं। मां, मैं अब अपनी आंखें बंद नहीं करना चाहती हूं। मुझे बहुत डर लग रहा है। मैं अब अपना चेहरा भी नहीं देखना चाहती हूं।
22 दिसंबर 2012
मां मुझे नेहला दो, मैं नाहना चाहती हूं। मैं सालों तक शावर के नीचे बैठे रहना चाहती हूं। मैं उन जानवरों की गंदी छुअन को धो देना चाहती हूं, जिनकी वजह से मैं अपने शरीर से नफरत करने लगी हूं। मैंने कई बार बाथरूम जाने की कोशिश की लेकिन पेट मे दर्द की वजह से उठ नहीं पाई। मेरे शरीर में इतनी शक्ति नहीं है की मैं सिर उठाकर आईसीयू से बाहर खड़े अपनों को देख सकूं। मां आप मुझे छोड़कर मत जाना। अकेले में मुझे बहुत डर लगता है। मैं आपको तलाशने लगती हूं।
23 दिसंबर 2012
मां, मेरे इलाज के लिए लगाई ये सारी मशीनरी मुझे उस ट्रैफिक सिग्नल की याद दिलाती हैं जिसके आसपास कई गाड़ियां हॉर्न बजाकर शोर कर रही हैं। लेकिन कोई रुकने का नाम नहीं ले रही है। मेरी आवाज और चीख को कोई नहीं सुन रहा है। ये कमरे की शांति मुझे उस सर्द रात की याद दिलाती है जब उन जानवरों ने मुझे नंगे बदन सड़क पर मेरे दोस्त के साथ फेंक दिया था। मां, पापा तो ठीक है न, उन्हे कहना की दुखी न हों।
25 दिसंबर 2012
मां, आपने मुझे हमेशा से ही मुश्किलों से लड़ने की सीख दी है। मैं इन जानवरों को सजा दिलाना चाहती हूं। इन दरिंदों को ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता है। ये लोग वहशी हैं। इनके लिए माफी की भूल कर भी मत सोचना। इन्होंने मेरे दोस्त को भी बुरी तरह से मारा पीटा था, जब वह मुझे बचाने की कोशिश कर रहा था। उसने मुझे बचाने की बहुत कोशिश की और उसको भी बहुत बुरी तरह से मारा-पीटा गया। अब वो कैसा है।
26 दिसंबर 2012
मां, मैं अब बहुत थक गई हूं। मेरा हाथ अपने हाथ में ले लो। मैं अब सोना चाहती हूं। मां, मेरा सिर अपने पैरों मे रख लो। मेरा शरीर साफ कर दो। डॉक्टरों से कहकर मेरे इस दर्द को कम करने की दवाई दिलवा दो, बहुत दर्द हो रहा है। मेरे पेट मे दर्द लगातार बढ़ता जा रहा है। डाक्टरों से कहना की अब मेरे शरीर का कोई अंग न काटें, इससे मुझे बहुत दर्द होता है। मां, मुझे माफ कर देना, अब मैं ज़िंदगी से और नहीं लड़ सकती हूं।
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