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    Delhi Riots: 2020 दिल्ली दंगा कोई संयोग नहीं, भारत विरोधी ताकतों की सोची समझी थी साजिश

    Updated: Fri, 28 Feb 2025 07:51 PM (IST)

    2020 के दिल्ली दंगों की पांचवीं वर्षगांठ पर जस्टिस रिटायर्ड शिव नारायण ढींगरा लिखते हैं कि हम इन दंगों की पृष्ठभूमि मानसिकता और षड्यंत्र को समझते हैं। ये दंगे भारत-विरोधी शक्तियों द्वारा सुनियोजित थे जिसका उद्देश्य भारत की छवि को धूमिल करना था। दंगों के लिए भरपूर तैयारी की गई थी। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। पढ़िए पूरा लेख।

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    2020 Delhi Riots: 2020 के दिल्ली दंगे भारत विरोधी ताकतों का सुनियोजित षड्यंत्र। फाइल फोटो

    रिटायर्ड जस्टिस शिव नारायण ढींगरा। पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों को पांच वर्ष होने को आए हैं आज यह आवश्यक है कि हम इन दंगों की पृष्ठभूमि, करने वालों की मानसिकता और दंगा करने वालों के षडयंत्र को न केवल समझें बल्कि, यह सुनिचित करें कि इस प्रकार के दंगों की पुनरावृत्ति न हो।

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    यह दंगे एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत भारत-विरोधी शक्तियों द्वारा कराए गए थे। समय का चुनाव ऐसा किया गया कि इन दंगों को मीडिया में अंतर्राष्ट्रीय कवरेज मिले और भारत की छवि को धूमिल किया जा सके। अत: अमेरिकी राष्ट्रपति श्री ट्रंप की भारत यात्रा एवं दिल्ली प्रवास का समय दंगों के लिए चुना गया।

    'भारत की राजधानी में भयंकर हिंसा फैलाना था मकसद'

    इससे पूर्व यह शक्तियां शाहीन बाग में सीएए के विरोध के आंदोलन में लगी हुई थी। सीएए के विरोध में उनके हाथ कुछ खास नहीं लग पा रहा था। तो उनका अगला कदम भारत की राजधानी में भयंकर हिंसा को फैलाना था। उमर खालिद जो इन दंगों और सीएए विरोध का एक मुख्य चरित्र था उसने 17 फरवरी 2020 को ही यह स्पष्ट कर दिया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान दंगे होंगे।

    इन दंगों के लिए भरपूर तैयारी की गई थी। लगभग 7 हजार लोग बाहर से बुलाए गए थे और मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में हिंदुओं व उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने का उद्देश्य था। इन 7 हजार लोगों ने स्थानीय मुस्लिम लोगों के साथ मिलकर इन दंगों को अंजाम दिया। दंगा भड़काने के लिए मस्जिदों का खुलकर इस्तेमाल किया गया।

    इस दंगे में 500 लोग हुए थे घायल

    मुस्लिम प्रतिष्ठानों और स्कूलों का भी बेजा इस्तेमाल किया गया। इन दंगों के कारण एक आईबी अफसर, दो पुलिसकर्मी सहित 53 लोगों को अपना जीवन गंवाना पड़ा। लगभग 500 लोग गंभीर रुप से जख्मी हुए। दंगों के बाद की पुलिस की जांच-पड़ताल में स्पष्ट हो गया कि दंगों से पहले, स्थानीय मुस्लिम समाज को यह संदेश दे दिया गया था कि वे अपने प्रतिष्ठान बंद कर दें।

    फाइल फोटो

    अपने बच्चों को स्कूलों से घर बुला लें और खुद को सुरक्षित कर लें, क्योंकि दंगा करने-कराने वाले अधिकांश लोग बाहर से आये थे और पहला काम जो उन्होंने किया था कि, जो सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे, उन्हें तोड़कर पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया।

    हिंदुओं को इस कारण से बनाया गया था निशाना

    भारत में दंगें होना कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस प्रकार के दंगे जो सुनियोजित ढंग से सरकार की किसी नीति के विरुद्ध हिंदुओं को निशाना बनाकर किए जाए, यह अपने आप में इन दंगों में नई बात थी। इसमें समाज के दो वर्ग किसी विवाद-विशेष को लेकर आमने-सामने नहीं थे।

    हिंदुओं को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया कि उन्होंने सीएए का विरोध नहीं किया था। संविधान की धारा-370 के हटाने पर वे (हिन्दू) संतुष्ट थे। क्या आप समाज के किसी वर्ग को इसलिए दंडित कर सकते हो कि वो, सरकार की नीतियों का समर्थक है।

    आजादी से पहले कांग्रेस को देश की जनता का प्रतिनिधि माना जाता था। लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस को हिन्दू पार्टी माना जाने लगा और मुस्लिम लीग मुसलमानों की प्रतिनिधि मानी जाने लगी थी।

    ये दो यूनिवर्सिटी कट्टरपंथियों के हैं केंद्र

    कांग्रेस क्योंकि यह कोशिश कर रही थी कि देश का बंटवारा किसी भी हालत में न होने पाए तो इसलिए मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन की धमकी दी और हिंदुओं का कत्ल-ए-आम किया। ताकि वे देश का विभाजन करवा सकें। उस हिंसा और कत्ल-ए-आम का परिणाम देश का विभाजन के रुप में सामने मौजूद है।

    स्वतंत्रता के पश्चात मुस्लिम लीग का पाकिस्तान समर्थन एक धड़ा भारत में ही रह गया और रजाकार प्रकृति यहां से गई नहीं। यह रजाकार प्रकृति ही पुन: भारत के अंदर मुस्लिम वर्चस्व देखना चाहती है और भारत को न केवल कमजोर अपितु पुन: टुकड़ों में विभाजित हुआ भी देखना चाहती है।

    इसके लिए कई मुस्लिम छात्र संगठन जैसे SIMI, PFI आदि लगे रहे हैं। इन संगठनों की पैठ उत्तर भारत में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया में बहुत गहरी है। यह दोनों विश्वविद्यालयक कट्टरवादिता के केंद्र हैं।

    1984 का सिख दंगा एक उदाहरण 

    यहां की संस्कृति भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देती है और हिन्दू विरोधी मानसिकता का यह दोनों ही जगह प्रमुख गढ़ है। इस प्रकार के दंगों की पुर्नवृति न हो यह देखना राज्य का काम है। राज्य को अनुशासित पुलिस बल एवं एक प्रभावी न्यायिक व्यवस्था की स्थापना के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।

    आज की न्यायिक व्यवस्था आपराधिक मामलों को निपटाने में अपराधियों को सजा देने में एवं निर्दोष लोगों की रक्षा करने में अक्षम है। इस न्यायिक व्यवस्था पर पैसे और रुतबे का बहुत प्रभाव चलता है। दंगों के केसों में भी, जिनका निपटारा जल्दी होना चाहिए, उनमें भी दसियों साल लगते हैं।

    2020 के दिल्ली के दंगों में अभी तक शायद एक-दो केसों में ही फैसले के बाद हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट की अपीलों में कितना वक्त और लगेगा यह कोई नहीं जनता। अंतिम फैसला आते-आते कई दशक लग जाते हैं।

    फाइल फोटो

    तब तक अपराधी प्रवृति के लोग अपने उद्देश्य में सफल हो चुके होते हैं और ऐसे ही लोग फिर राजनीति में आकर समाज को अधिक क्षति पहुंचाते हैं। अत: एक चुस्त-दुरुस्त पुलिस और न्यायिक व्यवस्था जनता की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है।

    अभी हमारे सामने 1984 के सिख दंगों का उदाहरण मौजूद है। उन दंगों में मुलजिमों को कोई प्रभावी दंड नहीं मिल सका। दिल्ली पुलिस और प्रशासन दोनों ही नाकाम रहे। परिणाम यह हुआ की दंगों के 40 साल बाद हाल ही में एक प्रमुख दंगाई को सजा मिल सकी। सुनियोजित दंगे तभी रोक सकते हैं जब प्रशासन, पुलिस एवं न्याय व्यवस्था तीनों मिलकर यह सुनिचित करें कि ऐसे केसों में देरी नहीं होगी।

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    हजारों परिवार ऐसे जिनकी संपत्ति को पहुंचाया गया नुकसान 

    न्याय प्रक्रिया को रोका नहीं जाएगा और उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय गिने चुने मुकदमों में राजनीतिक अथवा अंतर्राष्ट्रीय दवाब में आकर फैसले नही करेंगे। आज यह हो रहा है कि हमारे न्यायालय फैसला करते हुए उन केसों के गुण दोष (मेरिट) के बजाए, बाहरी एवं असंगत तर्कों का सहारा लेकर मुजलिमों को छोड़ देते हैं।

    यह तर्क होते हैं सेकुलरिज्म के, अंतर्राष्ट्रीय छवि के एवं अपने निजी विचारों के, डेमोक्रेसी आदि-आदि के। मैं यह आशा करता हूं कि न्यायालय जनता के प्रति संवेदनशील होंगे और जो दंगों के भुक्तभोगी हैं उनकी पीड़ा को भी समझेंगे। दिल्ली के इन पांच साल पुराने दंगों में 53 परिवार वो हैं जिन्होंने अपना कोई स्वजन खोया।

    हजारों परिवार ऐसे हैं जिनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। और सैकड़ों परिवार ऐसे हैं जिनके स्वजनों को गंभीर चोटें आई। किसी एक व्यक्ति की स्वतंत्रता इतनी बहुमूल्य नहीं हो सकती है कि वो, हजारों लोगों के दंश से ऊपर हो जाए।

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