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    Digital Arrest: इस कारण से नहीं लग पा रही है साइबर ठगी पर लगाम? अपराधियों को मिल रहा बढ़ावा

    Updated: Sat, 14 Dec 2024 11:27 AM (IST)

    cyber fraud साइबर ठगी के मामलों में कानून की कमजोरियों के कारण अपराधियों पर लगाम लगाना मुश्किल हो रहा है। साइबर लुटेरे पकड़े जाने पर भी जमानत मिलने के कारण आसानी से बच निकलते हैं। साइबर क्राइम से जुड़े कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल बताते हैं कि साइबर ठगी के मामले आइटी एक्ट की धारा 66 व 67 में दर्ज होते हैं जो स्पेशल एक्ट यानी विशेष कानून है।

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    Cyber crime: साइबर ठगी कानून की कमजोरियां दे रही अपराधियों को बढ़ावा।

    राकेश कुमार सिंह, नई दिल्ली। फर्जी दस्तावेजों पर हासिल किए गए मोबाइल नंबरों और बैंक अधिकारियों-कर्मचारियों से साठगांठ कर इस्तेमाल किए जा रहे बैंक खातों के साइबर ठगी में इस्तेमाल के कारण साइबर अपराधियों को पकड़ना पुलिस के लिए पहले ही मुश्किल बना हुआ है।

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    इसे लेकर कमजोर कानून के कारण भी साइबर अपराध पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। यदि साइबर लुटेरे पकड़े भी जाते हैं तो भी उन्हें तुरंत जमानत मिल जाती है और वे जेल से बाहर आते ही नया ठिकाना बनाकर फिर से आपराधिक वारदात शुरू कर देते हैं।

    कानून में इतने पेंच हैं कि साइबर अपराधियों पर लगाम लगा पाना पुलिस के लिए बहुत मुश्किल हो रहा है और पीड़ितों की परेशानी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। स्वयं को और अपने रिश्तेदारों-दोस्तों को साइबर ठगी से बचाने का एकमात्र जरिया जागरूकता व सतर्कता ही है।

    बहुत कम है सजा

    साइबर क्राइम से जुड़े कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल बताते हैं कि साइबर ठगी के मामले आईटी एक्ट की धारा 66 व 67 में दर्ज होते हैं, जो स्पेशल एक्ट यानी विशेष कानून है। कानूनन इन धाराओं के साथ कोई अन्य धारा नहीं लगाई जानी चाहिए, लेकिन आईटी एक्ट जमानती और हल्की धारा है, जिसमें थाने से जमानत मिलने का प्रविधान है।

    इसे गैर-जमानती बनाने के लिए पुलिस को इस धारा के साथ धोखाधड़ी व अन्य धाराएं जोड़नी पड़ती हैं। पुलिस को कोर्ट को बताना होता है कि आरोपित साक्ष्य मिटा रहा है और पीड़ित को धमकी भी दे रहा है, ताकि उसे जमानत न मिल पाए। साइबर लुटेरे पीड़ित से यूपीआई, आरटीजीएस या आइएमपीएस के जरिये पैसे ट्रांसफर कराते हैं। डिजिटल लेन-देन में पुलिस को जांच करने का पूरा समय मिलना चाहिए, लेकिन पुलिस को तय समय पर आरोप पत्र दायर करना होता है।

    जैसे-तैसे जांच होती है, लेकिन मजबूत साक्ष्यों के अभाव में आरोपित को सजा नहीं मिल पाती है। सुप्रीम कोर्ट का दिशानिर्देश है कि सात साल से कम सजा के प्रविधान वाले मामलों में आरोपित को गिरफ्तार नहीं किया जाय। साइबर ठगी के मामलों में तीन साल तक की सजा का ही प्रविधान है। उसमें भी साक्ष्य नहीं मिल पाने के कारण ही देश में साइबर अपराधियों के मामले में सजा की दर महज दो से चार प्रतिशत ही है।

    पहले आओ, पहले पाओ के हिसाब से मिलता है पीड़ित को पैसा

    दुग्गल के अनुसार, साइबर लुटेरे गरीब लोगों के नाम पर खुलवाए गए खातों का इस्तेमाल करते हैं। वे एक खाते में कई पीड़ितों से पैसे मंगवाते हैं। ऐसे में खातों में पुलिस द्वारा पैसे होल्ड कराने के बाद भी पैसे उन्हीं लोगों को मिल पाते हैं, जिन्होंने पैसे की बरामदगी के लिए पहले कोर्ट में आवेदन किया होता है। कोर्ट के आदेश पर पुलिस बैंकों से उन्हें पैसे दिलवा देती है।

    साइबर ठगी के मामले में पहले आओ पहले पाओ का हिसाब चलता है। जो लोग केवल पुलिस में शिकायत कर बैठ जाते हैं और अपने पैसों की रिकवरी के लिए जल्द कोर्ट में आवेदन नहीं करते हैं, उनके पैसे जल्द नहीं मिल पाते हैं। ऐसे पीड़ितों के पैसे आरोपितों से वापस दिलवाने का कानून में कोई प्रविधान नहीं है। आरोपित पकड़े भी जाते हैं तो पुलिस उनसे पीड़ित के पैसे नहीं दिला सकती है।

    साइबर अपराध से इतर लोगों से धोखाधड़ी के जो सामान्य मामले दर्ज होते हैं, उन मामलों में पीड़ितों के पैसे वापस मिल जाते हैं। पैसे नहीं देने पर कोर्ट से आरोपित को जमानत भी नहीं मिल पाती है या कोर्ट से आरोपितों को शर्त के अनुसार जमानत मिलती है, लेकिन साइबर ठगी के मामले में ऐसा प्रविधान नहीं होने से पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पा रहा है।

    पुलिस भी बढ़ा रही साइबर पुलिस थानों की परेशानी

    साइबर अपराध के मामले में पुलिस भी साइबर पुलिस थानों की परेशानी बढ़ा रही है। अगर कोई व्यक्ति वाट्सएप की डीपी पर किसी पुलिस अधिकारी की तस्वीर लगाकर किसी को काल कर ठगी करता है तो शिकायत मिलने पर स्थानीय पुलिस उक्त मामले को भी साइबर सेल थाने में भेज देती है, जबकि इस तरह के अपराध को साइबर अपराध की श्रेणी में नहीं माना जाना चाहिए।

    साइबर पुलिस के अधिकारी का कहना है कि इस तरह की ठगी में किसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं होता है। साइबर सेल थाने में इस तरह के मामले भेजे जाने से उसपर मामलों का बोझ बढ़ रहा है, जिसका दुष्परिणाम यह है कि साइबर ठगी के सही मामलों की जांच और निपटारा नहीं हो पा रहा है। एक बड़ी समस्या यह भी है कि साइबर अपराध के मामले की जांच इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी ही कर सकते हैं। देश में प्रतिदिन साइबर ठगी के जितने मामले आ रहे हैं, उतनी बड़ी संख्या में इंस्पेक्टर किसी भी राज्य की पुलिस में नहीं हैं।

    साइबर ठगी में इस्तेमाल बैंक खातों के खाताधारक भी परेशान

    दिल्ली पुलिस की साइबर सेल में तैनात पवन कुमार का कहना है कि साइबर लुटेरे ठगी का पैसा जिन व्यक्तियों के खाते में भेजते हैं, अधिकतर मामलों में उन खाताधारकों को पता नहीं होता है कि उनके खाते में कहीं से ठगी का पैसा आया है। पीड़ित जब 1930 पर साइबर ठगी की शिकायत करता है तो उसके खाते से निकले पैसे जिन खातों में ट्रांसफर किए जाते हैं, उनमें पैसे होल्ड कर दिए जाते हैं और वे खाते फ्रीज कर दिए जाते हैं।

    ऐसी स्थिति में ये खाताधारक अपने बैंक खाते का इस्तेमाल नहीं कर पाते। ठगी का पैसा उनके खाते में होने के कारण उन्हें फ्रीज किया हुआ खाता एक्टिव कराने में भारी परेशानी आती है। उन्हें पुलिस और बैंकों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और बेवजह परेशानी झेलनी पड़ती है। बहुत मुश्किल से उनका खाता एक्टिव हो पाता है।

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