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    पुलिस से कैसे दो कदम आगे हैं साइबर अपराधी? समझिए किस तरह फैला है पूरा जाल; ठगी से बचने के लिए पढ़ें ये टिप्स

    Updated: Fri, 13 Dec 2024 10:27 AM (IST)

    साइबर क्राइम के बढ़ते मामलों के बीच जागरूकता और सतर्कता बेहद जरूरी है। साइबर अपराधी नए-नए तरीकों से लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि हम साइबर क्राइम के बारे में पूरी जानकारी रखें और खुद को सुरक्षित रखने के लिए हर संभव उपाय करें। इस रिपोर्ट में हम आपको साइबर क्राइम से बचने के लिए कुछ जरूरी टिप्स बताएंगे।

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    साइबर अपराधी दिल्ली से दो कदम आगे है। फाइल फोटो

    सत्येंद्र सिंह/अवनीश मिश्र, नई दिल्ली। साइबर अपराध के प्रति जागरूकता और सतर्कता इसलिए भी अधिक जरूरी है, क्योंकि इन अपराधियों तक पहुंचकर इनकी धर-पकड़ करना पुलिस के लिए बहुत आसान नहीं होता।

    शातिर साइबर अपराधियों ने बैंक अधिकारियों और मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों के कर्मचारियों से ऐसा गठजोड़ कर रखा है कि वह पुलिस से दो कदम आगे रहते हैं। यही वजह है कि साइबर ठगी के अधिकतर मामलों में पुलिस को यदि समय से सूचना मिल जाती है तो भी वह अलग-अलग बैंक खातों में ट्रांसफर किए गए पीड़ित के पैसे होल्ड करवाने से अधिक कुछ नहीं कर पाती।

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    पुलिस बैंक खातों में होल्ड करवाती है पैसे

    अनेक मामलों में जब तक पीड़ित शिकायत देता है और पुलिस बैंक खातों में पैसे होल्ड करवाती है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है और साइबर अपराधी सारी रकम या ठगी गई रकम का बड़ा हिस्सा खातों से निकाल चुके होते हैं। जितने पैसे बैंक खातों में होल्ड हो पाते हैं, वो कोर्ट ऑर्डर के जरिये पीड़ित को आमतौर पर 15 दिनों में मिल जाते हैं।

    साइबर अपराधियों तक पहुंचना मुश्किल

    इसके बाद पीड़ित यदि एफआइआर कराता है तो पुलिस ठगी के लिए आए फोन नंबर और जिन बैंकों में पैसे ट्रांसफर किए गए थे, उनके खाताधारकों की केवाईसी के आधार पर जांच करती है। इसमें अधिकतर मामलों में ये मोबाइल नंबर फर्जी आईडी पर लिए गए होते हैं और जिन खातों में यह रकम पहुंचती है, उन खाताधारकों को पता ही नहीं होता है कि उनके खाते का इस्तेमाल साइबर ठगी में हो रहा है। इसके कारण आगे की राह अंधेरी सुरंग जैसी हो जाती है और साइबर अपराधियों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

    साइबर अपराध में लगे हुए हैं 5वीं पढ़े नाबालिग

    साइबर अपराध में पांचवीं और आठवीं तक पढ़े नाबालिग भी लगे हुए हैं। मेवात क्षेत्र में साइबर ठगी में लगे 178 किशोर पकड़े जा चुके हैं। भले ही यह कम पढ़े-लिखे थे, लेकिन ठगी का तकनीकी ज्ञान इनके पास जांच करने वाले पुलिसकर्मियों से कई गुना अधिक था।

    कई थानों में अधिकतर पुलिसकर्मी इतने परिपक्‍व भी नहीं हैं कि वे साइबर अपराध को ठीक से समझ सकें। साइबर सेल बनाए तो गए हैं, लेकिन अब भी यह राज्‍य मुख्‍यालय या बहुत हद तक जिला स्‍तर पर ही हैं, जबकि साइबर अपराध के मामले तो हर जगह हैं।

    पुलिसकर्मी को नहीं होती हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की जानकारी

    किसी ग्रामीण क्षेत्र के थाने में साइबर अपराध का मामला आता है तो कई बार यह भी देखने में आता है कि केस देखने वाले पुलिसकर्मी को हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की जानकारी ही नहीं है। पुलिस कई बार इस तरह के अपराधों में मानिटर और माउस ही उठा लाती है।

    उसे पता ही नहीं है कि जांच शुरू करने में किन-किन बिंदुओं पर ध्‍यान दिया जाना चाहिए। देशव्यापी स्तर पर साइबर पुलिस का बेहतर नेटवर्क न होना भी साइबर ठगों की धरपकड़ में आड़े आता है।

    ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए तय की गई 7 साल की सजा 

    वहीं, अपराधी पकड़ में आते हैं तो उन्हें सजा दिलाने में कानून कमजोर पड़ जाता है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में कुछ उपबंध जोड़े गए हैं, उसमें ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए सात साल की सजा तय की गई है, जो साइबर अपराधी के लिए कम है। इसके लिए सख्त सजा का प्रविधान होना चाहिए, क्योंकि अभी साइबर ठगों को कानून से भय नहीं है और वह साइबर ठगी की प्रयोगशाला बनाकर नए-नए तरीके से लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं।

    पुलिसकर्मियों को बनाया जा रहा है सक्षम...

    हरियाणा के एडीजीपी (साआइडी) आलोक मित्तल का कहना है कि साइबर लुटेरे नए-नए तरीके से अपराध को अंजाम दे रहे हैं। इनसे निपटने के लिए साइबर क्राइम थाने में नियुक्त पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को और सक्षम किया जा रहा है। उन्हें समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

    केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन एजेंसी द्वारा तैयार किए गए प्रतिबिंब एप की मदद से साइबर अपराधी पकड़े जा रहे हैं। ये एप सभी राज्यों की पुलिस प्रयोग में ला रही है। नूंह के गांवों में बैठकर ठगी करने वाले चार सौ से अधिक ठगों को पकड़ा गया।

    मेरी अपील है कि लोग भी जागरूक बनें। सबसे पहले तो अंजान नंबर से काल या वाट्सएप काल मैसेज आए तो उस पर रिस्पांड नहीं करें, लगातार काल आए तो नंबर ब्लाक कर दें और इसकी शिकायत नेशनल साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 पर काल कर दर्ज कराएं। मेल या वाट्सएप पर कोई लिंक भेजा जाए तो उस पर क्लिक नहीं करें। साइबर लुटेरों का नेटवर्क तोड़ने के लिए सबसे बड़ा हथियार लोगों की जागरूकता और सतर्कता ही है।

    साइबर ठगी की शिकायत मिलने पर ऐसे काम करती है पुलिस...

    गौतमबुद्ध नगर के बिसरख थाने के एसएचओ मनोज कुमार सिंह बताते हैं कि एक पीड़ित जब पुलिस के पास साइबर ठगी की शिकायत लेकर पहुंचता है तो पुलिस सबसे पहले उसे साइबर क्राइम नेशनल हेल्पलाइन नंबर 1930 पर काल कर अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए कहती है।

    यह कॉल ठगी होने के 24 घंटे के भीतर करनी होती है। यदि 24 घंटे से अधिक समय बीत चुका होता है तो पीड़ित को केंद्रीय गृह मंत्रालय से संबंधित वेबसाइट साइबर क्राइम डाट जीओवी डाट इन पर शिकायत करनी होती है।

    हेल्पलाइन नंबर 1930 पर काल कर पीड़ित अपना बैंक खाता नंबर, जिस फोन नंबर से काल कर ठगी की गई वो फोन नंबर और बैंक खाते से जो पैसे निकले उसका ट्रांजैक्शन आइडी बताता है। यह तीन चीजें बताने पर उसे उसके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर एक्नालेजमेंट नंबर और एक लिंक मिलता है, जिसपर उसे शिकायत से जुड़े सुबूत अपलोड करने होते हैं।

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    इसके बाद साइबर क्राइम पोर्टल शिकायतकर्ता के खाते से पैसे निकलकर किस-किस बैंक खाते में गए, उसका पता लगाता है और उन खातों में पैसे होल्ड कराकर खाता फ्रीज करा देता है। साथ ही पीड़ित की शिकायत उसके संबंधित थाने में भेज दी जाती है। यहां शिकायत आने पर पीड़ित पुलिस से संपर्क करता है और यदि किसी कारण किसी खाते में पैसा होल्ड नहीं हो पाया है तो थाने की पुलिस संबंधित बैंक को मेल कर ये पैसा होल्ड करा देती है।

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    इसके बाद होल्ड धनराशि कोर्ट आर्डर के माध्यम से शिकायतकर्ता के खाते मैं वापस करा दी जाती है। इसके बाद यदि पीड़ित एफआइआर कराता है तो जिस मोबाइल नंबर से ठगी की काल आई थी, उसके जरिये और जिन बैंक खातों में उसके पैसे ट्रांसफर किए गए हैं, उन खाताधारकों का केवाईसी के जरिये पता लगाया जाता है और कार्रवाई होती है।