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    Delhi News: राजधानी का एक चेहरा ये भी, हकीकत जान चौंक जाएंगे आप; पढ़िए खास रिपोर्ट

    Updated: Mon, 30 Dec 2024 11:09 AM (IST)

    दिल्ली के गांवों का विकास नहीं हुआ है बल्कि शहरीकृत गांवों के दर्जे के एवज में ग्रामीण आबादी को कुछ नहीं मिला है। किसान और किसानी छिटक गई है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। महिला कॉलेज की कमी है। ट्रामा सेंटर की दरकार है। किसानों को खाद बीज और दवा के लिए हरियाणा जाना पड़ता है। पढ़िए खास रिपोर्ट।

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    चुनाव के समय विकास के बड़े-बड़े वादे तो हुए लेकिन गांवों को आज तक कोई तारणहार नहीं मिला। जागरण फोटो

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली के गांवों का जितना विकास होना चाहिए था, उतना नहीं हुआ। कहने को तो राजधानी के गांवों को शहरीकृत गांवों का दर्जा है, लेकिन ढांचागत सुविधाओं में कोई सुधार नहीं आया। शहरीकृत गांवों के दर्जे के एवज में ग्रामीण आबादी को मिला तो कुछ नहीं, अलबत्ता गंवा बहुत कुछ दिया।

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    शहरीकृत गांव का तमगा मिलने के बाद गांवों से किसान और किसानी छिटक गई। बाहरी दिल्ली का सुल्तानपुर माजरा जीवंत उदाहरण है। चुनाव के समय विकास के बड़े-बड़े वादे तो हुए लेकिन गांवों को आज तक कोई तारणहार नहीं मिला। पेश है, दिल्ली देहात की स्थिति पर मुख्य संवाददाता धर्मेंद्र यादव की रिपोर्ट...

    बाहरी दिल्ली के ग्रामीण अंचल में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। महिला शिक्षा की बात की जाए तो केवल एक महिला कॉलेज है। बवाना में 1993 से संचालित अदिति कालेज आज भी स्कूल की इमारत में चल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के इकलौते महिला कालेज के लिए जमीन फाइनल नहीं हो पाई है। 

    महिला कॉलेज स्थापना के लिए बार-बार मांग उठी

    क्षेत्र में कोई और महिला कालेज नहीं होने के कारण लंबी दूरी तय करके लड़कियों को पढ़ाई के लिए बवाना आना पड़ता है। नरेला में महिला कॉलेज स्थापना के लिए बार-बार मांग उठी, लेकिन इस पर कोई काम नहीं हुआ। महिला कॉलेज के लिए मामूरपुर के लोगों ने अपनी जमीन बरसों पहले दान दी थी।

    ग्रामीण क्षेत्र में तकनीकी संस्थान की मांग भी लंबे समय से उठ रही है। ग्रामीण क्षेत्र में नरेला और पूठ खुर्द में सरकारी अस्पताल हैं, लेकिन दोनों अस्पताल रेफरल अस्पताल बन गए हैं। इस क्षेत्र में ट्रामा सेंटर की मांग भी लोग उठाते रहे हैं। लिबासपुर में डेढ़ हजार बिस्तर का अस्पताल बन रहा है।

    महिला कालेज की कमी, ट्रामा सेंटर की दरकार

    दिल्ली में किसान और किसानी सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं है। यही वजह है कि खाद, बीज व दवा की जरूरत होती है तो दिल्ली के किसान को हरियाणा की ओर रुख करना पड़ता है। दिल्ली का किसान खेती के लिए ट्रैक्टर नहीं खरीद सकता है। अन्य राज्यों की तरह राजधानी के किसान को सस्ती बिजली तो दूर की बात, कृषि सिंचाई कनेक्शन पर फिक्स चार्ज के नाम पर 1,000-1,200 रुपये देने पड़ रहे हैं।

    ग्रामीण क्षेत्र की सड़क बदहाल

    10 किलो वाट कनेक्शन पर इतनी राशि का भुगतान करना ही पड़ेगा, चाहे किसान एक यूनिट बिजली भी खर्च न करे। टटेसर गांव के किसान जयनारायण ने बताया कि तीन-चार साल पहले फिक्स चार्ज हटा दिया गया था, लेकिन अब दो साल से फिर से लिया जा रहा है। दरियापुर कलां के रहने वाले सत्यवान का कहना है कि विकास व कृषि के मामले में दिल्ली के गांव बहुत पीछे चले गए हैं। ग्रामीण क्षेत्र की सड़क बदहाल हैं।

    जल निकासी न होने से बिगड़े गांवों के हालात

    जल निकासी की पुख्ता व्यवस्था नहीं होने से दिल्ली देहात के गांवों का हाल स्लम बस्ती का जैसा हो गया है। उत्तर-पश्चिमी जिले के कई गांवों के लिए जलजमाव से बुरी तरीके से प्रभावित हैं। कराला, मजरी, मदनपुर डबास, रानीखेड़ा, रसूलपुर, घेवरा आदि गांवों में जलभराव से जनजीवन पर भी सीधा असर है। साथ ही खेती करना भी मुश्किल हो गया है।

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    सामाजिक कार्यकर्ता दयानंद डबास का कहना है कि कई दशकों से यह समस्या बनी है।वर्षा के साथ-साथ क्षेत्र में बड़ी संख्या में बसीं कालोनियां के पानी की निकासी का कोई पुख्ता प्रबंध नहीं हैं। बाढ़ नियंत्रण विभाग की लापरवाही के कारण ऐसा हो रहा है।

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