दिलचस्प किस्सा: BJP को 5 साल में बदलने पड़े तीन CM, वजह भी खास; AAP की एंट्री से कैसे बिगड़े समीकरण?
Delhi Vidhan Sabha Chunav 2025 दिल्ली की राजनीति में बीजेपी के लिए पांच साल का सफर आसान नहीं रहा। बहुमत के बावजूद तीन मुख्यमंत्री बदले गए। इसके बाद दिल्ली में आप के रूप में नई पार्टी की एंट्री हुई। इसके बाद 2013 में आप ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। जानिए आखिर दिल्ली की सियासत का दिलचस्प किस्सा क्या है।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। दिल्ली की राजनीति पूर्व में कांग्रेस और भाजपा के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। आजादी के बाद कांग्रेस ने दिल्ली में सरकार बनाई। हालांकि, कुछ कारणों से दिल्ली विधानसभा समाप्त कर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। शुरुआत के दो मुख्यमंत्री कांग्रेस के रहे। 1993 में फिर से विधानसभा की व्यवस्था की गई।
1993 के चुनाव में भाजपा ने मारी बाजी
1993 से 2020 तक दिल्ली में विधानसभा के सात चुनाव हुए हैं। इन 27 वर्षों के राजनीति सफर में छह मुख्यमंत्री मिले, इनमें तीन महिलाएं रहीं हैं। शुरुआत में कांग्रेस और भाजपा में ही सत्ता की जंग रहती थी। राष्ट्रपति शासन हटने के बाद 1993 के चुनाव में भाजपा ने बाजी मारी। पांच वर्ष का शासन भाजपा के लिए आसान नहीं रहा। बहुमत के बावजूद पांच साल के कार्यकाल में तीन लोग सीएम बनाए गए।
पहले मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने। उनके इस्तीफे के बाद साहिब सिंह वर्मा को सीएम की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन महंगाई पर काबू न कर पाने के कारण विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने उन्हें हटाकर सुषमा स्वराज के सिर ताज रखा। भाजपा का यह दांव काम नहीं आ सका।
1998 के चुनाव में जनता ने भाजपा को नकार दिया
जनता ने 1998 के चुनाव में भाजपा को नकार दिया। कांग्रेस ने बाजी मारते हुए सत्ता हासिल की। चुनाव से पहले कांग्रेस ने शीला दीक्षित को सीएम चेहरे के तौर पर पेश किया। इसका पार्टी को फायदा मिला। कांग्रेस को 52 सीट मिली। भाजपा को सिर्फ 15 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। इस चुनाव में दो सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी बाजी मारी।
दूसरे कार्यकाल में बने तमाम फ्लाईओवर
शीला दीक्षित का यह कार्यकाल विकास के रूप में जाना गया। दिल्ली वासियों को 2002 में मेट्रो की सौगात मिली। इससे लोगों का आवागमन सुगम हुआ। इसी वजह से 2003 के चुनाव में भी जीत का सेहरा शीला दीक्षित के सिर बंधा। हालांकि, कांग्रेस की पांच सीटें कम हुई। दूसरे कार्यकाल में तमाम फ्लाईओवर बने। सड़कों की कनेक्टिवटी हुई। लोगों को जाम से राहत मिली।
कांग्रेस अपनी खोई जमीन को वापस पाने की कर रही कोशिश
वहीं, कांग्रेस ने जीत का सिलसिला 2008 में भी बनाए रखा। इस बार कांग्रेस ने 43 सीटों पर कब्जा किया। अब एक बार फिर दिल्ली में अभी भाजपा, कांग्रेस और आप के बीच मुकाबला है। इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने की कोशिश कर रही है। वहीं, आम आदमी पार्टी अपनी जीत को बरकरार रखने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। भारतीय जनता पार्टी भी अपना वनवास खत्म करने के लिए पसीना बहा रही है।
बता दें कि पीएम मोदी से लेकर तमाम बड़े नेता मोर्चा संभाले हुए हैं। बाजी किसके हाथ लगेगी यह तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा, लेकिन चुनाव दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है।
दिल्ली में आप के रूप में एक नई पार्टी की एंट्री हुई
2013 से पहले सत्ता के लिए मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा। इस दौरान दिल्ली में अन्ना हजारे आंदोलन हुआ। निर्भया कांड भी हुआ। कांग्रेस पर घोटालों के आरोप लगे। आम जनता के बीच पार्टी की छवि खराब हुई। दिल्ली में कांग्रेस के खिलाफ ऐसा माहौल बना कि जनता के बीच नेता जाने से बचने लगे। आप के रूप में दिल्ली में एक नई पार्टी की एंट्री हुई।
आप ने 28 सीटें जीतकर रच दिया इतिहास
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आप ने 28 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। शीला दीक्षित को सीधी टक्कर देते हुए केजरीवाल उनके सामने खड़े हुए और विजयी रहें। हालांकि, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन अपने बल पर सरकार बनाने में सक्षम नहीं थी। भाजपा को 32 सीटें हासिल हुई थी। कांग्रेस महज आठ सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस के सहयोग से केजरीवाल ने सरकार बनाई, लेकिन 49 दिन बाद ही इस्तीफा दे दिया।
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फरवरी 2015 में फिर चुनाव होने तक एक साल से अधिक समय दिल्ली में राष्ट्रपति शासन रहा। फरवरी 2015 में दिल्ली में फिर से चुनाव हुए। इसमें आप ने 70 में से 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। बची तीन सीटें भाजपा के खाते में चली गईं। 2020 में भी आपके बेहतर प्रदर्शन का सिलसिला जारी रहा और 62 सीटें जीतने में सफल रही।
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