नाबालिग बेटी से दुष्कर्म करने वाले पिता पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी, 20 साल की सजा में कटौती से इंकार
दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग बेटी से दुष्कर्म करने वाले पिता की 20 साल की सजा को बरकरार रखा है। अदालत ने कहा कि पिता का यह कृत्य कानून और पवित्र पारिवारिक विश्वास का उल्लंघन है जिसके लिए सुनाई गई सजा बिल्कुल उचित है। अदालत ने कहा कि सजा देना एक गंभीर न्यायिक कार्य है जिसमें व्यक्तिगत परिस्थितियों और समाज की न्याय की मांग के बीच संतुलन जरूरी है।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। अपनी ही 17 वर्षीय नाबालिग बेटी से बार-बार दुष्कर्म करने वाले दोषी पिता के कृत्य को गंभीर अपराध करार देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई 20 वर्ष के कठोर कारावास की सजा को बरकरार रखा। सजा की अवधि ज्यादा होने के तर्क को ठुकराते हुए न्यायमूर्ति संजीव नरुला की पीठ ने कहा कि एक पिता द्वारा अपनी ही बेटी के साथ किया गया ऐसा आचरण कानून के साथ पवित्र पारिवारिक विश्वास का उल्लंघन करता है। इसके लिए न्यूनतम से कहीं अधिक सजा उचित है और ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई 20 साल के कठोर कारावास की सजा को न तो अवैध कहा जा सकता है और न ही अत्यधिक।
अदालत ने उक्त टिप्पणी करते हुए अधिक कारावास देने के खिलाफ दोषी पिता की याचिका खारिज कर दी। दोषी पिता ने तर्क दिया था कि 2019 से पहले हुए संशोधन के तहत पाक्सो अधिनियम की धारा-छह के तहत ट्रायल कोर्ट के पास 20 साल के कठोर कारावास की निश्चित अवधि निर्धारित करने का अधिकार नहीं है।
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हालांकि, पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि सजा देना कोई अंकगणितीय अभ्यास नहीं है, बल्कि एक गंभीर न्यायिक कार्य है। इसके लिए व्यक्तिगत परिस्थितियों और समाज की न्याय की मांग के बीच संतुलन की आवश्यकता होती है।
दोषी ने 2018 में दर्ज मामले में ट्रायल कोर्ट के निर्णय को चुनौती दी थी। पीठ ने कहा कि यह कोई गलती न होकर एक जैविक पिता द्वारा अपनी नाबालिग बेटी पर लगातार यौन हमले किए जाने का गंभीर मामला था। दोषी ने बेटी को धमकी भी दी थी।
नाबालिग ने आरोप लगाया था कि सोते समय उसका पिता उसका यौन उत्पीड़न करता था और एक अस्पताल में चिकित्सकीय जांच में गर्भवती पाए जाने के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
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