Delhi High Court का CBI को झटका, बेंटले डीलर को राहत देते हुए कहा- वसूली प्रकृति है 50 लाख की डीडी
दिल्ली हाई कोर्ट ने बेंटले डीलर से सीबीआई द्वारा मांगे गए 50 लाख रुपये के डिमांड ड्राफ्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई का यह आदेश सीआरपीसी की धारा 91 के तहत गलत था क्योंकि यह जांच के लिए दस्तावेज मांगने के बजाय वसूली जैसा था।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। भारत में एक बेंटले डीलर को केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) द्वारा 50 लाख रुपये जमा करने के संबंध में जारी किए गए डिमांड ड्राफ्ट को दिल्ली हाई कोर्ट ने रद कर दिया। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि सीबीआई द्वारा जारी किया गया आदेश गलत था। यह सीआरपीसी के तहत जांच या मुकदमे के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करने के बजाय वसूली की प्रकृति का था।
अदालत ने कहा कि आदेश किसी भी तरह से किसी ऐसे दस्तावेज या अन्य वस्तु से संबंधित नहीं है, जो आदेश पारित होने की तिथि पर अस्तित्व में हो। ऐसे में सीबीआई का उक्त आदेश रद किया जाता है। याचिका के अनुसार समृद्ध जीवन फ्रूड्स नामक कंपनी ने भारत में बेंटले मोटर्स के अधिकृत डीलर, एक्सक्लूसिव मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड से एक बेंटले मल्सैन कार मंगवाई थी और अग्रिम भुगतान के रूप में 50 लाख जमा किए थे।
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50 लाख का डिमांड ड्राफ्ट पेश करने का निर्देश
जब समृद्ध ने शेष राशि का भुगतान नहीं किया, तो बेंटले ने 50 लाख जब्त कर लिए। कार निर्माता या डीलर से असंबंधित एक मामले में समृद्ध के मामलों की जांच करते हुए सीबीआई को लेन-देन का पता चला। इस पर सीबीआई ने एक्सक्लूसिव मोटर्स को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 91 (दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए समन) के तहत 50 लाख का डिमांड ड्राफ्ट पेश करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, समृद्ध जीवन फूड्स ने जनता को दिया धोखा
पीठ ने इस तथ्य पर विचार किया कि क्या डिमांड ड्राफ्ट धारा-91 के तहत दस्तावेज परिभाषा में आएगा। पीठ ने कहा कि अपराध की संदिग्ध आय को सुरक्षित या कुर्क करने के लिए स्थापित प्रक्रियाएं मौजूद हैं, लेकिन राशि का डिमांड ड्राफ्ट तैयार करने का निर्देश दस्तावेज की परिभाषा में नहीं आएगा, जिसे धारा -91 के तहत प्रस्तुत करने की मांग की जा सकती है।
याचिका पर सीबीआई ने कहा कि समृद्ध जीवन फूड्स ने जनता को धोखा देकर 50 लाख की राशि प्राप्त की थी। हालांकि, पीठ ने कहा कि सीबीआई का आदेश दस्तावेजों की जांच के बजाय वसूली की प्रकृति का था।
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