देखभाल नहीं तो संपत्ति नहीं: बुजुर्गों की अनदेखी पर दिल्ली HC की दो टूक, गिफ्ट डीड कर सकते हैं रद
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर परिवार के सदस्य बुजुर्गों की देखभाल नहीं करते तो वे अपनी संपत्ति का गिफ्ट डीड रद्द कर सकते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संपत्ति बच्चों को प्यार और स्नेह की शर्त पर दी जाती है। देखभाल न होने पर डीड रद्द हो सकता है भले ही शर्त लिखित में न हो। यह फैसला एक 88 वर्षीय महिला के मामले में आया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर परिवार के सदस्य बुजुर्गों की देखभाल नहीं करते, तो वे अपनी संपत्ति का गिफ्ट डीड (उपहार में दी गई संपत्ति) रद कर सकते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि माता-पिता या बुजुर्ग जब संपत्ति बच्चों या बहू-बेटों को देते हैं, तो यह प्यार और स्नेह की शर्त पर ही होता है। उन्हें उम्मीद होती है कि उनकी देखभाल होगी।
गिफ्ट डीड को शून्य घोषित करने का अधिकार
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि गिफ्ट डीड में लिखित रूप से देखभाल की शर्त दर्ज होना आवश्यक नहीं है। अगर संपत्ति मिलने के बाद बुजुर्गों की देखभाल नहीं की जाती या उन्हें उपेक्षित किया जाता है, तो इसे वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 23 के तहत धोखाधड़ी या दबाव मानकर गिफ्ट डीड को शून्य घोषित किया जा सकता है।
बहू ने संपत्ति मिलते ही बदला नजरिया
यह फैसला 88 वर्षीय दलजीत कौर के मामले में आया, जिन्होंने वर्ष 2015 में अपनी जनकपुरी स्थित संपत्ति बहू वरिंदर कौर के नाम की थी। दलजीत कौर का आरोप था कि संपत्ति देने के बाद उन्हें उपेक्षित किया गया। इलाज तक से वंचित रखा गया और धमकियां भी दी गईं। वर्ष 2019 में ट्रिब्यूनल ने डीड रद करने से इनकार किया था, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस निगरानी का आदेश दिया था।
बहू बोली-देखभाल करने की नहीं थी शर्त
इसके बाद ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ अपील पर जिला मजिस्ट्रेट ने जुलाई 2023 में गिफ्ट डीड रद कर दी, जिसके बाद बहू ने इस आदेश को हाई कोर्ट में अपील करते हुए और दलील दी कि चूंकि डीड में देखभाल का वादा दर्ज नहीं था, इसलिए धारा 23 लागू नहीं होती। हाई कोर्ट ने बहू की अपील खारिज कर दी और बुजुर्ग महिला के पक्ष में फैसला बरकरार रखा। पीठ ने स्पष्ट किया कि लिखित शर्त न होने पर भी बुजुर्ग अपने अधिकार से गिफ्ट डीड रद कर सकते हैं।
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