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    अवैध निर्माण करने वालों से वसूली के लिए अदालत का इस्तेमाल नहीं कर सकते ब्लैकमेलर: दिल्ली हाई कोर्ट

    Updated: Mon, 22 Sep 2025 11:33 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने अवैध निर्माण की आड़ में अदालत का दुरुपयोग करने वालों पर सख्त टिप्पणी की है। याचिकाकर्ता पर 50 हजार का जुर्माना लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि ब्लैकमेलर अवैध निर्माण करने वालों से जबरन वसूली के लिए अदालत का इस्तेमाल नहीं कर सकते। अदालत ने यह भी कहा कि अनधिकृत निर्माणों से उगाही के उद्देश्य से याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं की वह निंदा करती है।

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    ब्लैकमेलर पैसे ऐंठने के लिए नहीं कर सकते अदालती प्रक्रिया का इस्तेमाल : हाई कोर्ट।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। अपने हित के लिए अवैध निर्माण की आड़ में अदालत प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वालों पर तल्ख टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है।

    याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि ब्लैकमेलर अवैध निर्माण करने वालों से जबरन वसूली के लिए न्यायिक प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं कर सकते।

    अदालत ने कहा कि अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन अदालत ऐसे किसी भी बेईमान व्यक्ति की मदद नहीं करेगी, जो ऐसे अवैध निर्माण करने वाले व्यक्तियों से जबरन वसूली कर सके।

    याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा कि यह अदालत पहले ही अनधिकृत निर्माणों के विरुद्ध धन उगाही के उद्देश्य से याचिका दायर करने वाले कई याचिकाकर्ताओं के आचरण की निंदा कर चुका है।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता तौकीर आलम ने गैर सरकारी संगठन मानव समाज सुधार सुरक्षा संस्था के नाम पर याचिकाएं दायर करने का तरीका अपनाया है।

    अनधिकृत निर्माण के मामलों में बेईमान वादियों द्वारा अपनाई जा रही यह प्रथा एक चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाती है क्योंकि याचिकाकर्ताओं का किसी संपत्ति से कोई संबंध नहीं है।

    याचिका में शाहीन बाग इलाके में एक संपत्ति में किए गए अवैध और अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी।

    अदालत ने कहा कि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई की है और अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त कर दिया गया है।

    वहीं, याचिकाकर्ता का आवास संबंधित संपत्ति से लगभग ढाई किलोमीटर दूर है। उक्त तथ्यों को देखते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के किसी भी कानूनी या मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है।

    अदालत ने कहा कि संपत्ति मालिक के वकील ने भी तर्क दिया है कि उन्हें याचिकाकर्ता से जबरन वसूली के लिए सामान्य स्रोतों से फोन आए हैं।

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