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Delhi Farmers Protest: आंदोलन की बिसात पर शह-मात का खेल, धरने से गहराया संकट

सिंघु बार्डर पर किसानों के आंदोलन से मुख्य सड़क बंद होने के कारण हरियाणा से दिल्ली की ओर आने जाने वाले लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। छोटे-छोटे बच्चों के साथ महिलाएं व पुरुष कई किलोमीटर पैदल चलकर अपने गंतव्य तक जाने को मजबूर हैं। जागरण

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 09 Dec 2020 12:04 PM (IST)Updated: Wed, 09 Dec 2020 12:05 PM (IST)
Delhi Farmers Protest: आंदोलन की बिसात पर शह-मात का खेल, धरने से गहराया संकट
हजारों लोगों के सामने रोजगार का संकट भी खड़ा हो गया है।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। चेहरे पर मास्क और सिर पर भारी थैले का बोझ, थके हारे कदमों से गंतव्य तक पहुंचने की जद्दोजहद...तो दूसरी तरफ वाहनों की लंबी कतारों से होकर दफ्तर पहुंचने की आपाधापी। देश के अन्नदाता अपने अधिकारों की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर कब्जा जमाए बैठे हैं तो दिल्ली-एनसीआर की जनता सड़कों पर भटकने को मजबूर है। दिल्ली बेशक देश की राजधानी है, लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि कभी कृषि कानूनों में बदलाव की मांग को लेकर तो कभी कर्ज माफी, नौकरियों में आरक्षण और सीएए व एनआरसी की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन के माध्यम से इसे बंधक बना दिया जाता है।

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महज अपनी मांगों की पूर्ति के लिए दिल्ली-एनसीआर की करोड़ों जनता की दिनचर्या को बेपटरी कर दिया जाता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रदर्शनकारियों को सड़क जाम कर बेकुसूर जनता को परेशान करने का अधिकार किसने दिया है? अपनी मांगों को मनवाने के लिए इस तरह सड़कों को जाम करना कितना उचित है? राजनीतिक पार्टियां भी आम जन की समस्याओं को भूल आंदोलनकारियों के साथ मिल अपनी राजनीतिक रोटियां क्यों सेंकने लगती हैं? यही है हमारा इस बार का मुद्दा :

धरने से गहराया संकट

रोजगार की समस्या

  • प्रदर्शन की वजह से कई सड़कें बंद हैं। इस वजह से दिल्लीवासियों को कई किलोमीटर दूर तक पैदल चलना पड़ रहा है। बच्चे, बुजुर्ग व महिलाएं सिर पर सामान उठाए मीलों दूर तक पैदल चलने को मजबूर हैं।
  • दिल्ली के ज्यादातर दुकानदारों का इस आंदोलन की वजह से कामकाज ठप है।
  • दुकानदार बंद दुकान का किराया दे रहे हैं। आवक न होने से फल-सब्जियां महंगी हो रही हैं। फैक्ट्रियों में कच्चा माल नहीं पहुंच पा रहा है तो दूसरी ओर तैयार माल कंपनियों में रखा हुआ है।
  • 20 फीसद फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं कच्चा माल न पहुंचने की वजह से। हजारों लोगों के सामने रोजगार का संकट भी खड़ा हो गया है।

हर तरफ फैली है गंदगी

सिंघु बार्डर पर किसान खाना खाकर जूठी प्लेटें और पानी की बोतलें जहां तहां फेंक रहे हैं। इस वजह से हाईवे पर हर तरफ गंदगी फैल गई है। गंदगी और बदबू की वजह आसपास के लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया है। शौचालय की व्यवस्था होने के बावजूद किसान खुले में ही शौच को जा रहे हैं।

कोरोना का खतरा

आंदोलन के दौरान जिस तरह से बुजुर्ग किसान बिना मास्क लगाए शारीरिक दूरी के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, उससे दिल्ली में कोरोना संक्रमण अब कई गुणा तेजी से बढ़ने का खतरा बढ़ गया है। यहां भारी संख्या में लोग खांसते व छींकते रहते हैं इन लोगों के बीच से होकर लाखों लोग हरियाणा से दिल्ली व दिल्ली से हरियाणा पहुंचते हैं।

समय-समय पर होते रहे हैं प्रदर्शन

दिसंबर 2019 से मार्च 2020 : नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में शाहीन बाग में तीन महीने तक धरना प्रदर्शन चला। इससे कालिंदी कुंज, सरिता विहार और फरीदाबाद जाने वाला रास्ता बंद होने से लोगों को काफी परेशानी हुई थी।

फरवरी 2020 : जाफराबाद में सीएए और एनआरसी के विरोध में दो दिन तक विशेष समुदाय की महिलाओं ने सड़क बंद कर विरोध प्रदर्शन किया। अगले दिन दूसरे समुदाय के लोगों ने भी प्रदर्शन किया, जिसके बाद दिल्ली में दंगे भड़के।

दिसंबर 2019 : सीएए और एनआरसी के विरोध में जामिया के छात्रों का विरोध प्रदर्शन। पुलिस लाठीचार्ज के बाद भड़की हिंसा में कई बसों में आग लगाकर की गई तोड़-फोड़।

मार्च 2017 : सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग को लेकर हरियाणा के जाट आंदोलन और धरना प्रदर्शन के लिए दिल्ली आने वाले थे, जिससे दिल्ली के सभी बार्डरों को सील किया गया था और सुरक्षा बढ़ानी पड़ी थी। साथ ही कई मेट्रो स्टेशनों को भी बंद किया गया था।

सितंबर 2017 : तमिलनाडु के किसान कर्ज माफी, सूखा राहत पैकेज और सिंचाई संबंधी समस्या के समाधान के लिए कावेरी प्रबंधन बोर्ड के गठन की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर महीनों धरने पर बैठे थे।

नवंबर 2018 : अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले देश के 208 जनसंगठनों से जुड़े किसानों ने दिल्ली के रामलीला मैदान से संसद तक विशाल रैली निकाली थी। इसके जरिए देश भर के किसानों ने मोदी सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की पहल की थी।

जनवरी 2015 : मोदी सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के लिए लोकसभा से अध्यादेश पारित कराने के खिलाफ किसानों का आंदोलन इतना ज्यादा बढ़ गया था कि सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा।

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