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    मनमानी याचिका पर कोर्ट ने लगाया 10 हजार का जुर्माना, कहा- झूठी याचिका न्याय प्रणाली का दुरुपयोग

    Updated: Wed, 02 Jul 2025 02:04 PM (IST)

    कोर्ट ने मनमानी और बेबुनियाद याचिका दायर करने पर याचिकाकर्ता कपिल अरोड़ा पर 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया। अदालत ने कहा कि ऐसी याचिकाएं न्याय व्यवस्था को बाधित करती हैं और गंभीर आर्थिक दंड के साथ रोकी जानी चाहिए। क्लेरिकल त्रुटि के कारण हुई रिहाई पर अरोड़ा ने मुआवजा मांगा था जिसे मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया।

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    मनमानी और बेबुनियाद याचिका दायर करने पर याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत ने मनमानी और बेबुनियाद याचिका दायर करने पर याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि समृद्ध पक्षकारों द्वारा अनावश्यक मुकदमेबाजी के जरिये न्यायिक व्यवस्था को बाधित करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाना बेहद जरूरी है।

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    'गंभीर आर्थिक दंड के साथ रोका जाना चाहिए'

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ प्रताप सिंह लालेर, कपिल अरोड़ा द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। यह याचिका अप्रैल 2025 की मजिस्ट्रेट अदालत के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें अरोड़ा की स्वतंत्रता के हनन को लेकर मुआवजे की मांग को खारिज कर दिया गया था।

    'अन्य मामलों में होती है देरी'

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश लालेर ने कहा कि याचिका का कोई कानूनी आधार नहीं था और यह कोर्ट पर दबाव बनाने की मंशा से दाखिल की गई थी। उन्होंने कहा कि इस तरह की याचिकाएं न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करती हैं और इन्हें गंभीर आर्थिक दंड के साथ रोका जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि न्याय प्रणाली के दुरुपयोग से अन्य मामलों में देरी होती है और इसे रोकना अनिवार्य है।

    “याचिका का कोई कानूनी आधार नहीं था और यह कोर्ट पर दबाव बनाने की मंशा से दाखिल की गई थी। इस तरह की याचिकाएं न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करती हैं और इन्हें गंभीर आर्थिक दंड के साथ रोका जाना चाहिए।”

    - सौरभ प्रताप सिंह लालेर, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश

    क्लेरिकल त्रुटि के चलते किया गया रिहा

    कपिल अरोड़ा को अक्टूबर 2024 में केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर विभाग ने जीएसटी चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया था। सत्र न्यायालय ने उन्हें 27 नवंबर को सशर्त जमानत दी थी, लेकिन सत्यापन संबंधी देरी और एक क्लेरिकल त्रुटि के चलते उन्हें 29 नवंबर को रिहा किया गया।

    कोर्ट ने याचिका कर दी खारिज

    मजिस्ट्रेट ने पाया था कि कोर्ट स्टाफ की ओर से कोई जानबूझकर गलती नहीं हुई थी और केवल एक चेतावनी देकर मामले को समाप्त किया गया। इसके बावजूद अरोड़ा ने मुआवजे और जिम्मेदारी तय करने की मांग करते हुए दोबारा याचिका दायर की, जिसे फिर खारिज कर दिया गया।

    ...अदालतों का समय न हो बर्बाद

    मनमानी याचिका को लेकर पहले भी कई बार विभिन्न अदालतों से टिप्पणी की गई है। अधिवक्ताओं को यह समझना आवश्यक है कि उनकी याचिकाओं से अदालतों का कीमती समय बर्बाद होता है। ऐसा करने से लोकतंत्र की इस शक्ति का दुरुपयोग होता है।

    ऐसे में अधिवक्ताओं को याचिका दायर करने से पूर्व यह सोचना चाहिए कि वे संविधान प्रदत्त इस शक्ति का दुरुपयोग न करें। यूं भी हमारी अदालतों में वर्षों से लंबित मामलों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। ऐसे में अदालतों के समय का अनावश्यक क्षरण नहीं होना चाहिए।

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