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    स्वच्छ सर्वेक्षण: कभी टॉप-10 में आने वाली दिल्ली छावनी रैंकिंग में फिसली, सफाई व्यवस्था पर उठे सवाल

    Updated: Thu, 17 Jul 2025 09:04 PM (IST)

    दिल्ली छावनी की स्वच्छता रैंकिंग में भारी गिरावट आई है जो पहले सातवें स्थान पर थी अब 30वें स्थान पर पहुँच गई है। कचरा प्रबंधन और सार्वजनिक सफाई में कम अंक मिलने के कारण यह गिरावट हुई है। परिषद सैन्य और शहरी इलाकों पर अधिक ध्यान देती है जबकि ग्रामीण इलाकों में गंदगी की समस्या बनी रहती है और कूड़ा प्रबंधन ठीक से नहीं होता है।

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    कभी शीर्ष 10 में रहने वाला दिल्ली छावनी परिषद स्वच्छ रैंकिंग में लुढ़का।

    गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली : कभी स्वच्छ छावनी स्वस्थ छावनी का नारा सदर बाजार, गोपीनाथ बाजार, झरहेड़ा, नांगल, मेहरम नगर जैसे इलाकों में गूंजा करता था।

    पूरी दिल्ली में छावनी परिषद के इलाके की मिसाल दी जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। यकीन नहीं आए तो ताजा स्वच्छता रैंकिंग पर गौर करें। छावनी परिषद अबकि बार साववें से 30वें स्थान पर पहुंच चुका है।

    इतनी तेजी से रैंकिंग गिरने की वजह क्या है, इस पर अधिकारी कुछ बोलना नहीं चाहते हैं। छावनी के सीईओ कपिल गोयल ने चुप्पी साध रखी हैं।

    रैंकिंग में इस बार का हाल 

    सात पैमाने पर हुए सर्वे में इस बार छावनी परिषद को कचरे को स्त्रोत पर ही अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित करने की श्रेणी में सात प्रतिशत अंक मिला।

    घर-घर कूड़ा एकत्रित करने के मामले में इसका प्रदर्शन निराशाजनक पाया गया। इसमें इसे 49 प्रतिशत अंक मिले।

    सार्वजनिक स्थलों पर जो जन प्रसाधन केंद्र हैं, उसकी सफाई में इसे 83 प्रतिशत अंक मिला है। हालांकि आवासीय व बाजार क्षेत्र की सफाई में इसने शत प्रतिशत अंक प्राप्त किया है।

    क्यों है ऐसा हाल 

    छावनी परिषद में तीन इलाके हैं। एक सैन्य इलाका है, जो पूरी तरह नियोजित है। दूसरा शहरी इलाका है जो बाजारों के आसपास बसा है। तीसरा ग्रामीण इलाका है।

    छावनी परिषद का ध्यान हमेशा नियोजित इलाके पर रहता है। शहरी इलाके में भी यह ध्यान देती है, लेकिन उतना नहीं जितना ध्यान सैन्य इलाकों में दिया जाता है।

    ग्रामीण इलाकों जहां की घनी आबादी रहती है, वहां इसका सबसे कम ध्यान रहता है। यहां गंदगी की समस्या आम है। कूड़ा जगह जगह बिखरा होता है।

    कई दिन तक नहीं उठता है कूड़ा, पार्क की भी देखरेख नहीं

    कई-कई दिनों तक इसे नहीं उठाया जाता है। इन इलाकों में जो पार्क बने हैं, उनकी देखरेख में भी परिषद की रुचि काफी कम होती है। बेसहारा पशुओं की समस्या भी यहां आम है।

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    ऐसे इलाकों में घर घर कूड़ा एकत्र करने की योजना सिर्फ कागजों पर चलती है। कूड़ा निष्पादन अनमने ढंग से होता है। लोगों को जागरुक करने का प्रयास भी अनमने तरीके से ही होता है।

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