दिल्ली में वायु प्रदूषण की असली जड़ पर हमला जरूरी, केवल ई बसें बढ़ाना या ईवी पाॅलिसी लाना नहीं समाधान
दिल्ली में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं है। सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने पर ध्यान नहीं दिया गया। बसों की संख्या कम है और रूट अव्यवहारिक हैं। मेट्रो भी पूरी दिल्ली को कवर नहीं करती। सीएसई के अनुसार ई-बसों की संख्या बढ़ने से प्रदूषण कम नहीं होगा यात्रियों की संख्या बढ़ाना जरूरी है। पीयूसीसी सिस्टम में सुधार और सड़कों का पुन डिजाइन आवश्यक है।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण वाहनों का ईंधन जलने से होने वाला उत्सर्जन है। विंडबना यह कि इसकी रोकथाम के लिए सालों से केवल ई बसों की संख्या बढ़ाने या ईवी पाॅलिसी लाने पर ही काम हो रहा है। समस्या की जड़ यानी लचर सार्वजनिक परिवहन मजबूत करने, सड़कों की रिडिजाइनिंग, लास्ट माइल कनेक्टिवटी बढ़ाने जैसे मुद्दों पर गंभीरता से कभी काम ही नहीं हुआ। यहां तक कि वाहनों को हर साल जारी होने वाले प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र की प्रामाणिकता भी संदेह और भ्रष्टाचार के घेरे में रहती है।
डीटीसी-कलस्टर मिलाकर लगभग 5600 बसें
सुप्रीम कोर्ट ने करीब डेढ़ दशक पहले दिल्ली की आबादी के लिए 12 हजार बसों की जरूरत बताई थी। लेकिन इस समय भी बसों की संख्या इसकी आधी तक नहीं है। ताजा आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में इस समय डीटीसी-कलस्टर मिलाकर लगभग 5600 बसें ही हैं।
इनमें 2700 से 2800 इलेक्ट्रिक बसें हैं। एक तो आबादी की तुलना में बसें कम, दूसरा अव्यवहारिक रूट और सड़कों पर हर समय रहने वाले जाम के कारण इनमें यात्रा करके कोई व्यक्ति कहीं समय पर पहुंच ही नहीं सकता।
बहुत बदलाव नहीं आ पाएगा
यह तो शुक्र है कि आज दिल्ली में मेट्रो का नेटवर्क काफी बड़ा हो चुका है, लेकिन वह भी राजधानी के हर हिस्से काे कवर नहीं करता। ऐसे में निजी वाहनों पर निर्भर रहना दिल्ली वासियों के लिए मजबूरी बन गया है। इन वाहनों में अलग अलग कारणों से ई वाहनों की हिस्सेदारी भी अभी ऊंट के मुंह में जीरा ही है।
सेंटर फाॅर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) के विश्लेषण से सामने आया है कि देश की राजधानी में इस समय ई बसों की संख्या सर्वाधिक है। लेकिन यह भविष्य में यहां का वायु प्रदूषण घटने का संकेत नहीं है। इसके लिए जरूरी है इन बसों में यात्रियों की संख्या का भी बढ़ना। लोग जब तक निजी वाहन छोड़ सार्वजनिक परिवहन सेवा पर भरोसा नहीं कर पाएंगे, वायु प्रदूषण की स्थिति में बहुत बदलाव नहीं आ पाएगा।
निजी वाहनों पर निर्भरता छोड़ें
विश्लेषण बताता है कि 2017-18 की तुलना में यात्रियों की संख्या में 48.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। लचर सेवा, अव्यवहारिक रूट और सड़कों पर रहने वाला जाम बसों के प्रति यात्रियों का भरोसा बढ़ने नहीं दे रहा। सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता राय चौधरी बताती है कि ई-बसें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अच्छा प्रयास है, लेकिन इन्हें लाने का मकसद तभी सफल हो सकेगा, जब लाेग निजी वाहनों पर निर्भरता छोड़ इनमें सवारी करें।
रिपोर्ट में कही गई ये बड़ी बातें
रिपोर्ट के मुताबिक डीटीसी, कलस्टर बसों और मेट्रो में केवल 50.77 प्रतिशत यात्री सवारी कर रहे हैं। 49.33 प्रतिशत अब भी कार, आटो और दोपहिया वाहनों के सहारे हैं। ऐसे में सार्वजनिक परिवहन मजबूत करने के लिए सड़कों की रिडिजाइनिंग और लास्ट माइल कनेक्टिवटी बढ़ाने के साथ-साथ और यात्रियों का भरोसा जीतने की भी जरूरत है।
विशेषज्ञों के सुझाव
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पूर्व अपर निदेशक डा एस के त्यागी कहते हैं कि दिल्ली को वाहनों के प्रदूषण से राहत देने के लिए पीयूसीसी सिस्टम में व्यापक स्तर पर सुधार किए जाएं ताकि सड़कों पर वही गाड़ियां चलें, जो पूरी तरह प्रदूषण मुक्त हों। पीयूसीसी सिस्टम को रिमोट सेंसिंग टेक्नालाजी और इमिशन मानिटर से जोड़ा जाना चाहिए।
पार्किंग मैनेजमेंट एरिया प्लान जरूरी
साथ ही, अधिक प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों की सड़कों पर पहचान जरूरी है। यह सही है कि कमर्शियल व निजी दोनों ही गाड़ियां हवा को काफी अधिक प्रदूषित कर रही हैं। इसीलिए हम हमेशा सार्वजनिक परिवहन और मोबिलिटी सिस्टम को मजबूत करने की बात करते रहते हैं। निजी गाड़ियों को कम करने के लिए पार्किंग रेट बढ़ाने, पार्किंग मैनेजमेंट एरिया प्लान बनाने भी जरूरी है।
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रिमोट सेंसिंग तकनीकों का उपयोग शामिल
वहीं, बकौल अनुमिता रा चौधरी, मैँ एक बेहतर और सख्त प्रदूषण नियंत्रण (पीयूसी) व्यवस्था की अनुशंसा और वकालत करती हूं। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सड़क पर चलने वाले वाहनों का सही रखरखाव किया जा रहा है या नहीं। इसमें उत्सर्जन की निगरानी व सबसे खतरनाक प्रदूषकों की पहचान करने के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीकों का उपयोग शामिल है।
नए फ्लाईओवर बनाने की प्लानिंग
पीयूसी सिस्टम को अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए और इसका एनफोर्समेंट भी प्रभावी होना चाहिए। साथ ही बोटलनेक पर गंभीरता से काम किया जाना चाहिए। वाहन रेंग रेंग कर नहीं, अपनी औसत गति से चलेंगे तो प्रदूषण तेजी से कम होगा। जहां जरूरत हो, सड़कों को रिडिजाइन किया जाए और जरूरत के ही अनुसार नए फ्लाईओवर बनाने की प्लानिंग भी की जाए।
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