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    Delhi AIIMS: एम्स को मिली बड़ी कामयाबी, मल्टीपल मायलोमा का अब इलाज संभव

    delhi aiims update एम्स के डॉक्टरों ने ब्लड कैंसर मल्टीपल मायलोमा के इलाज के लिए एक एंटीबॉडी विकसित की है जिसका इस्तेमाल इम्यूनोथेरेपी के तौर पर किया जा सकता है। इस एंटीबाडी से तैयार कार-टी सेल थेरेपी भी काफी किफायती होगी। इससे मल्टीपल मायलोमा के एडवांस स्टेज के कैंसर मरीजों का भी इलाज हो सकेगा। पढ़ें लेख के माध्यम से पूरी खबर।

    By Jagran News Edited By: Monu Kumar Jha Updated: Wed, 18 Dec 2024 02:53 PM (IST)
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    एम्स ने ब्लड कैंसर मल्टीपल मायलोमा के इलाज के लिए बनाई एंटीबॉडी। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। एम्स के डाक्टरों ने ब्लड कैंसर मल्टीपल मायलोमा के इलाज के लिए एक एंटीबाडी विकसित की है, जिसका इलाज में इम्यूनोथेरेपी के रूप में हो इस्तेमाल हो सकता है। एम्स ने इस एंटीबाडी के भारतीय पेटेंट के लिए आवेदन भी किया है।

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    इस एंटीबाडी का इस्तेमाल कर एम्स के डॉक्टरों ने कार-टी सेल (चिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर-टी सेल) थेरेपी भी विकसित कर ली है, जिसका परीक्षण चूहों पर सफल रहा है।

    कार-टी सेल थेरेपी तैयार होने पर होगी काफी किफायती

    एम्स के डॉक्टर अब मरीजों पर इसके पहले चरण के ट्रायल की तैयारी कर रहे हैं। एम्स के डॉक्टरों का दावा है कि यह कार-टी सेल थेरेपी तैयार होने पर काफी किफायती होगी और इससे मल्टीपल मायलोमा के एडवांस स्टेज के कैंसर मरीजों का भी इलाज हो सकेगा।

    एम्स के डॉक्टर इसे एक बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि यह मल्टीपल मायलोमा के इलाज में गेम चेंजर साबित हो सकता है। कार-टी सेल थेरेपी बहुत महंगी होती हैं। इसके मद्देनजर केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने एम्स को शोध करने के लिए फंड जारी किया था।

    बीसीएमए को अलग कर उसके खिलाफ तैयार की गई एंटीबॉडी

    इसके तहत एम्स के कैंसर सेंटर के लैब आन्कोलॉजी विभाग के विशेषज्ञ डा. मयंक सिंह के नेतृत्व में करीब तीन वर्ष पहले शोध शुरू किया गया था। उन्होंने बताया कि मल्टीपल मायलोमा के लिए बीसीएमए (बी सेल मैचुरेशन एंटीजन) जिम्मेदार होता है।

    एम्स में मरीजों के रखे सैंपल से बीसीएमए को अलग कर उसके खिलाफ एंटीबॉडी तैयार की गई, जिसे दवा के साथ इम्यूनोथेरेपी के रूप में इस्तेमाल हो सकती है। इसके पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया गया है।

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    एम्स द्वारा किए गए इस शोध में इन डॉक्टरों का रहा योगदान

    डा. मयंक सिंह ने बताया कि एंटी बीसीएमए एंटीबॉडी के जीन में इंजीनियरिंग बदलाव कर कार-टी सेल थेरेपी भी तैयार की गई है। इस पर शोध जारी है।

    इस शोध में एम्स के बायोकेमिस्ट्री की प्रोफेसर डा. कल्पना लूथरा, स्टेम सेल सुविधा केंद्र की प्रोफेसर डा. सुजाता मोहंती और मेडिकल आन्कालॉजी विभाग के डा. रंजी साहू शामिल रहे हैं।

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