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    दिल्ली के सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग में फर्जी बिलिंग घोटाले में कोर्ट ने ठेकेदार को दी जमानत

    Updated: Wed, 06 Aug 2025 04:52 PM (IST)

    दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने सिंचाई विभाग में फर्जी बिलिंग से 5.59 करोड़ की धोखाधड़ी के मामले में ठेकेदार अरुण गुप्ता को जमानत दे दी है। विशेष न्यायाधीश दीपाली शर्मा ने 50 हजार के मुचलके पर रिहाई का आदेश दिया। अदालत ने माना कि आरोपी की पुलिस रिमांड खत्म हो चुकी है और जांच लगभग पूरी है।

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    सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग में 5.59 करोड़ के घोटाले में आरोपित ठेकेदार अरुण गुप्ता को मिली जमानत।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राउज एवेन्यू स्थित विशेष न्यायाधीश की अदालत ने सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण (आई एवं एफसी) में फर्जी बिलिंग के जरिये 5.59 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किए गए ठेकेदार अरुण गुप्ता को नियमित जमानत दे दी है।

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    विशेष न्यायाधीश दीपाली शर्मा की अदालत ने आरोपित को 50 हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की एक जमानती पर रिहा करने का आदेश दिया।

    अदालत ने माना कि आरोपित 30 जून 2025 से न्यायिक हिरासत में है, उसकी पुलिस रिमांड समाप्त हो चुकी है और उससे संबंधित मुख्य जांच लगभग पूरी हो चुकी है।

    अदालत ने यह भी माना कि आरोपित एक निजी व्यक्ति है, जबकि मामले में शामिल सरकारी अधिकारियों की भूमिका की जांच अभी शेष है।

    अदालत ने आरोपित पर जांच में पूरा सहयोग करने, किसी भी गवाह को प्रभावित नहीं करने, बिना अनुमति देश नहीं छोड़ने और भविष्य में ऐसे किसी अपराध में शामिल नहीं होने की शर्त लगाई है।

    लोक अभियोजक ने जमानत का विरोध करते हुए दलील दी कि आरोपित ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गंभीर अपराध किए हैं। अभियोजन ने यह भी कहा कि सरकारी धन की इतनी बड़ी हेराफेरी गंभीर मामला है और जांच अभी जारी है।

    वहीं, बचाव पक्ष ने कहा कि अरुण गुप्ता एक मान्यता प्राप्त ठेकेदार हैं और उसने विभाग के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही कार्य किया।

    अधिवक्ता ने दावा किया कि विवादित भुगतान विभागीय मंजूरी के बाद हुआ और इस पूरे विवाद से जुड़े कई बिंदु वर्तमान में मध्यस्थता की प्रक्रिया में हैं।

    एसीबी के अनुसार, आरोपित अरुण गुप्ता पर आरोप है कि उसने अपनी कंपनी बाबा कंस्ट्रक्शन के माध्यम से दिल्ली के सिरासपुर क्षेत्र में कार्य न करते हुए फर्जी बिल बनाकर करोड़ों रुपये का भुगतान ले लिया। जांच में पाया गया कि जिस साइट पर कार्य दिखाया गया, वहां वास्तव में कुछ हुआ ही नहीं था।

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