बच्चे को पालन सिर्फ मां की जिम्मेदारी नहीं... बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए जरूरी है को-पैरेंटिग
राष्ट्रीय पारिवारिक दिवस से पहले विशेषज्ञों ने सह-पालन को अपनाने की सलाह दी है जिसमें माता-पिता बच्चों की परवरिश में समान जिम्मेदारी साझा करते हैं। यह मॉडल न केवल बच्चों के लिए बल्कि पूरे परिवार के लिए फायदेमंद है। सह-पालन में माता-पिता बच्चों के पोषण अनुशासन और मार्गदर्शन में समान भूमिका निभाते हैं। अध्ययन बताते हैं कि सक्रिय माता-पिता के साथ बच्चे अधिक आत्मविश्वासी होते हैं।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। माता-पिता में लिंग आधारित भूमिकाओं के असंतुलन को लेकर राष्ट्रीय पारिवारिक दिवस से ठीक पहले चेतावनी जारी की गई है। देशभर के विशेषज्ञ माता-पिता को सह-पालन (को-पैरेंटिंग) को अपनाने की सलाह दे रहे हैं।
सह-पालन एक ऐसा माॅडल है, जिसमें माता-पिता बच्चों की परवरिश में समान जिम्मेदारी साझा करते हैं, हालांकि मां को ही प्राथमिक पालनकर्ता माना जाता है। पारंपरिक रूप से माताओं ने देखभाल की अधिकांश जिम्मेदारियां निभाई हैं।
अक्सर अपने करियर, मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तिगत भलाई की कीमत पर, जबकि पिता बच्चों की परवरिश में गौण भूमिका में रहे हैं। पालन-पोषण विशेषज्ञ मानते हैं कि यह असंतुलन आधुनिक परिवारों के लिए अस्वस्थ है।
वे सह-पालन की वकालत करते हैं। एक ऐसा माॅडल जिसमें दोनों माता-पिता बच्चों के पोषण, अनुशासन और मार्गदर्शन में समान और पूरक भूमिकाएं निभाते हैं, जो न केवल बच्चों के लिए बल्कि पूरे पारिवारिक वातावरण के लिए लाभकारी होता है।
पैरेंटिंग कोच, मनोचिकित्सक और ट्रेनर, रिरीजी त्रिवेदी कहती हैं कि हम अब ऐसे माता-पिता की नई पीढ़ी को देख रहे हैं जो घर चलाने और बच्चों की परवरिश में समान रूप से समर्पित हैं।
यह परिवर्तन संघर्ष का कारण बनने के बजाय परिवारों के लिए नए दृष्टिकोण अपनाने, सहयोगी साझेदारी का जश्न मनाने और अगली पीढ़ी के लिए स्वस्थ गतिशीलता का माॅडल प्रस्तुत करने के अवसर बन सकते हैं।
माता-पिता होना पूर्ण होने के बारे में नहीं है, बल्कि मौजूद रहने के बारे में है। आधुनिक परिवार कठोर भूमिकाओं से दूर जा रहे हैं। बच्चे तभी फलते-फूलते हैं जब दोनों माता-पिता उनकी परवरिश में सक्रिय भागीदार हों।
शोध से पता चलता है कि साझा पालन न केवल माताओं पर तनाव कम करता है बल्कि पिता और बच्चों के बीच भावनात्मक संबंधों को भी मजबूत बनाता है।
छोटे-छोटे कार्य भावनात्मक वातावरण को देते हैं आकार
लेखक, पैरेंटिंग विशेषज्ञ और टेडएक्स स्पीकर इशिन्ना बी. सदाना कहती हैं कि पालन-पोषण केवल यह नहीं है कि कौन कमाता है या कौन खाना बनाता है, यह इस बारे में है कि कौन भावनात्मक रूप से हर दिन उपस्थित रहता है।
जब दोनों माता-पिता पालन-पोषण के भावनात्मक बोझ को साझा करते हैं, तो परिवार स्वस्थ और संतुलित बनते हैं। बच्चे इससे अत्यधिक लाभान्वित होते हैं कि वे दोनों माता-पिता को उनकी देखभाल में समान रूप से भाग लेते देख सकें।
वे सुरक्षा, सहानुभूति और रिश्तों के प्रति सम्मान की मजबूत भावना के साथ बड़े होते हैं। सह-पालन बड़े कामों के बारे में नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की मौजूदगी के बारे में है।
कहानी पढ़ना, लंच बाॅक्स पैक करना, स्कूल इवेंट में जाना या बस तब मौजूद होना जब बच्चा सांत्वना चाहता है। ये छोटे-छोटे कार्य घर के भावनात्मक वातावरण को आकार देते हैं।
पालन पोषण केवल मां की जिम्मेदारी नहीं
अध्ययन बताते हैं कि जो बच्चे सक्रिय माता-पिता के साथ बड़े होते हैं, वे अधिक आत्मविश्वासी, सहानुभूतिपूर्ण और जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होते हैं। पालन-पोषण अब केवल मां का क्षेत्र नहीं रहा; यह एक साझा जिम्मेदारी है जो पूरे परिवार को सशक्त बनाती है।
बाल मनोवैज्ञानिक नितिन पात्र कहते हैं कि सह-पालन दो परिपूर्ण लोगों के बारे में नहीं है। यह दो ऐसे लोगों के बारे में है जो बच्चे की पूर्णता के लिए बढ़ने के इच्छुक हों। जब माता-पिता सम्मान के साथ जिम्मेदारी साझा करते हैं, तो बच्चे बिना संघर्ष के प्यार का अनुभव करते हैं।
एक स्वस्थ परिवार केवल एक छत के नीचे रहने से परिभाषित नहीं होता, बल्कि उस भावनात्मक सुरक्षा की छत से होता है जो सह-पालक मिलकर बनाते हैं। हर विकल्प, चाहे वह छोटे कृत्यों की दया हो, पारदर्शी संवाद हो या सीमाएं निर्धारित करना हो, उस छत में एक ईंट बन जाता है।
सह-पालन हमें याद दिलाता है कि परिवार एक टीम है और जब माता-पिता परस्पर झगड़ने के बजाय सहयोगी के रूप में कार्य करते हैं, तो बच्चे लचीलापन और विश्वास के साथ फलते-फूलते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अब समय आ गया है कि भारतीय परिवार सह-पालन को अधिक स्वस्थ और टिकाऊ मॉडल के रूप में अपनाए।
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