अब देश के पुरातन स्थलों की खोदाई अपनी मर्जी से नहीं कर पाएंगे पुरातत्वविद, एएसआई ने बदले नियम
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खोदाई को लेकर नियमों में बदलाव किया है। अब एएसआइ की उत्खनन विंग ही खोदाई का काम करेगी। पहले कोई भी पुरातत्वविद अपनी मर्जी से खोदाई कर सकता था लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। एएसआई का कहना है कि अब खोदाई एक लक्ष्य के साथ की जाएगी और पुरानी खुदाइयों में तालमेल की कमी को दूर किया जाएगा।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खोदाई को लेकर व्यवस्था बदली है। अब कोई भी पुरातत्वविद अपनी मर्जी से देश भर में किसी पुरातन स्थल की खोदाई नहीं कर सकेगा।
अब इस काम की जिम्मेदारी एएसआई ने अपनी उत्खनन विंग को सौंपी है। देश भर में एएसआई की उत्खनन विंग की छह शाखाएं हैं, मगर ये खोदाई के काम में अग्रणी होकर काम नहीं कर रही थीं।
एएसआई मुख्यालय ने विंग की सभी शाखाओं से खोदाई को लेकर बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव मांगे हैं। एएसआई मुख्यालय का कहना है कि इस बदलाव की इसलिए जरूरत पड़ी क्योंकि अभी तक हो रही खोदाइयाें का आपस में तारतम्य नहीं बैठ रहा था।
अधिकतर स्थानों पर खोदाई किसी लक्ष्य को आधार मानकर नहीं की जा रही थीं। अब होने वाली खोदाई में उद्देश्य व लक्ष्य भी निर्धारित होगा। देश भर में उत्खनन विंग की दिल्ली (ग्रेटर नाेएडा) नागपुर, पटना, भुवनेश्वर, बड़ोदरा और मैसूर शाखाएं हैं।
एएसआई की पहचान उत्खनन कार्य से अधिक मानी जाती है। सिंधु घाटी की सभ्यता से लेकर अन्य कई महत्वपूर्ण खाेदाई एएसआई ने ही की हैं। अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग समय खोदाई हुई हैं। अयोध्या में राम जन्म भूमि स्थान तय करने में एएसआई की रिपोर्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हर साल एएसआई द्वारा अन्य संस्थाओं को खोदाई के लिए अनुमति दी जाती है और एएसआई स्वयं भी अलग-अलग स्थान पर खोदाई के लिए नई परियोजनाओं के काम करती है या पुरानी परियोजनाओं को आगे बढ़ाती है।
पिछले कुछ सालों से एएसआई में इस बात पर जोरदार तरीके से चर्चा हो रही है कि खोदाई को लक्ष्य आधारित निर्धारित किया जाना चाहिए, जिससे कि खोदाई को लेकर किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके।
पूर्व के मामलों में देखा जाए तो कुछ खुदाइयां तो हुईं, मगर उन्हें क्यों कराया गया, इसके उद्देश्य का पता ही नहीं चल सका। ऐसी खोदाई केवल एक खाेदाई के रूप में ही स्थापित होकर रह गईं। एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी मानते हैं कि हमारा इतिहास सबसे प्राचीन है।
खोदाई में हमारे यहां ही सबसे अधिक पुरातात्विक दस्तावेज मिलने की संभावना है। सिंधु घाटी की सभ्यता से संबंधित स्थलों की खोदाई में इस बात पर को भी बल मिला है कि आर्य बाहर से नहीं आए थे बल्कि भारत के ही निवासी थे।
एएसआई का मानना है खोदाई के माध्यम से मिलने वाले पुरातात्वित दस्तावेजों से कई मामलों में नए मानक स्थापित किया जा सकते हैं। उत्खनन कार्य को लेकर एएसआई की नई व्यवस्था को लेकर कुछ पुरातत्वविदों में असंतोष भी है।
एएसआई के पूर्व अधिकारी इस फैसले को उचित नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि उत्खनन कार्य एक जुनून है। जुनून वाले ऐसे अधिकारी ही इस कार्य के लिए अपनी रुचि लेते हैं और खोदाई करवाते हैं।
वह कहते हैं कि यह एक जटिल कार्य है। उनकी नजर में इस जटिल कार्य काे किसी पर थोप कर नहीं कराया जा सकता है। इसे वही अंजाम देता है जिसके अंदर पुरातत्व के काम को लेकर कुछ करने का जज्बा हाेता है। इसलिए इस पर पुन:विचार किया जाना चाहिए।
अभी तक हुई कई खोदाई को लेकर यह बात सामने आ रही थी कि खोदाई किस उद्देश्य के लिए की गई, उसका तारतम्य नहीं बैठ रहा था। दूसरे उत्खनन विंग का स्टाफ खोदाई के कार्य में योगदान नहीं दे रहा था।
इसे देखते हुए व्यवस्था में परिवर्तन किया गया है और खोदाई के कार्य की जिम्मेदारी उत्खनन विंग को दी गई है। उनसे प्रस्ताव मागें गए हैं मुख्यालय के स्तर पर भी खोदाई के नए स्थानों के बारे में फैसला लिया जाएगा और संबंधित शाखाओं को दिया जाएगा।
इसका मकसद यही है कि कोई भी खोदाई लक्ष्य आधारित हो ताकि हम पुरातत्व दस्तावेजों के आधार पर किसी भी मामले में किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकें। जरूरत पड़ने पर उत्खनन विंग के अलावा भी पुरातत्चविदाें को खोदाई का काम दिया जाएगा।
- डाॅ. वाईएस रावत, महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
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