'दिल्ली स्कूल विधेयक को लेकर विपक्ष के आराेप निराधार', मंत्री आशीष सूद ने दिया AAP को करारा जवाब
शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने विधेयक पर विपक्ष के आरोपों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि विधेयक अभिभावकों के हितों की रक्षा करता है और विपक्ष के आरोप गलत हैं। सूद ने स्पष्ट किया कि स्कूल की शिकायत के लिए 15% अभिभावकों की आवश्यकता का नियम सही है। उन्होंने स्कूलों के ऑडिट के प्रावधान और फीस नियंत्रण के प्रयासों पर भी बात की।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। विधेयक को लेकर विपक्ष के आरोपोें का शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने सिलसिलेबार जवाब दिया और कहा है कि विपक्ष के आरोप गलत हैं। विधेयक में हर स्तर पर अभिभावकों के हितों की रक्षा की गई है।
विपक्ष के स्कूल की शिकायत करने के लिए कुल में से 15 प्रतिशत अभिभावकों के एकत्रित होने के सवाल पर सूद ने कहा कि विपक्ष ने बिना पढ़े आपत्ति जता दी। कहा कि विधेयक के सेक्शन दो में साफ लिखा है कि ऐसे अभिभावकों का समूह, जो प्रभावित कक्षा के कुल अभिभावकों के कम-से-कम 15% से कम न हो। यानी इसका अर्थ है 40 बच्चों की कक्षा में से छह अभिभावक होने चाहिए।
उन्होंने कहा कि जब किसी छात्र की कक्षा बदलती है, जैसे प्राथमिक से मिडल या मिडल से सीनियर सेकेंडरी में जाता है तो फीस में बदलाव की स्थिति में यही नियम लागू होगा।
विपक्ष ने आरोप लगाया कि इस विधेसक में स्कूल के आडिट का प्रविधान नहीं है, इस पर सूद ने कहा कि सेक्शन- 20 में स्पष्ट लिखा है कि इस एक्ट के प्रविधान, दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट 1973 और शिक्षा कानून 2009 सहित सभी लागू कानूनों के अतिरिक्त होंगे, उनके विपरीत नहीं होेंगे। 1973 का कानून संसद का कानून है उसमें आडिट की बात है जो लागू रहेगी।
सूद ने कहा कि दिल्ली में 1700 से अधिक प्राइवेट स्कूल हैं, लेकिन विपक्ष ने कभी उनकी वास्तविक समस्याओं पर विचार नहीं किया। कहा कि लैंड क्लाज़ तो केवल उन पर लागू होता है जिन्होंने डीडीए से ज़मीन ली है। कहा कि जब इस बिल का मसौदा तैयार हो रहा था, मुख्यमंत्री ने शिक्षा विभाग से पूछा कि इन 300 के अलावा बाकी स्कूलों का क्या होगा? उन पर क्या असर पड़ेगा?” क्योंकि चिंता केवल लैंड क्लाज़ की नहीं, बल्कि सभी स्कूलों में फीस नियंत्रण की है।
उन्होंने कहा कि यह लड़ाई केवल 300 नहीं, बल्कि पूरे 1700 स्कूलों की मनमानी फीस के खिलाफ है। सूद ने कहा कि आप के कार्यकाल में दो बार बिल लाने की कोशिश हुई, उन्होंनं आरोप लगाया कि “मोल-तोल” न हो पाने के कारण फाइलें महीनों दबाकर रखी गईं। सात महीने तक मुख्यमंत्री/शिक्षा मंत्री के दफ़्तर में पड़ी रहीं। कहा कि सरकार के पास एक-एक दस्तावेज़ है, क्यों पड़ी रहीं ये फाइलें? क्या लेन-देन की कोशिशें होती रहीं?
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