आज तक शीतलता दे रही है 700 साल पुरानी निजामुद्दीन की बावड़ी, पढ़िये- खूबियां
करीब 700 साल पहले निजामुद्दीन के शागिर्द फौजा नसीरूद्दीन ने इस बावड़ी का निर्माण कार्य कराया था। इसके बाद उन्हें हजरत निजामुद्दीन औलिया ने चिराग-ए-दिल्ली का खिताब दिया था। फिलहाल आगा खां ट्रस्ट बावड़ी की देखरेख करता है।
नई दिल्ली [गौरव बाजपेई]। 'फकीर के दर पर रौनक और राजा का महल उजाड़' राजधानी दिल्ली में बसे 2 स्थानों को लेकर यह लोकोक्ति पूरी तरह से सही साबित हो रही है। दरअसल, एक ही समय काल में बनाए गए तुगलकाबाद किले और निजामुद्दीन की बावड़ी दोनों वक्त के थपेड़ों के बाद भी अपने स्थान पर हैं, लेकिन एक तरफ किला दिन में भी वीरान रहता है तो वहीं बावड़ी लोगों को शीतलता दे रही है। करीब 700 साल पहले निजामुद्दीन के शागिर्द फौजा नसीरूद्दीन ने बावड़ी का निर्माण कराया था। इसके बाद उन्हें हजरत निजामुद्दीन औलिया ने चिराग-ए-दिल्ली का खिताब दिया था। फिलहाल आगा खां ट्रस्ट बावड़ी की देखरेख करता है और लगातार उसके जीर्णोद्धार और साफ-सफाई के काम करवा रहा है।
रोचक है बावड़ी के निर्माण की कहानी
हजरत निजामुद्दीन दरगाह के इमाम पीर ख्वाजा अहमद निजामी सज्जादानशीन ने बताया कि करीब 700 साल पहले इस बावड़ी का निर्माण कराया गया। जिस समय बावड़ी का निर्माण कराया जा रहा था उसी समय दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक, तुगलकाबाद में किले का निर्माण करा रहे थे। इस दौरान वही मजदूर रात में बावड़ी का काम भी करते थे, जिससे चिढ़कर बादशाह ने पूरे ग्यासपुर में तेल की बिक्री बंद करा दी थी जिससे रात में खुदाई का काम बंद हो जाए। इस दौरान निजामुद्दीन ने नसीरुद्दीन को सोते के पानी से चिराग जलाने का आदेश दिया और कहा जाता है कि पानी से दिए जल गए जिसके बाद नसीरूद्दीन को चिराग-ए-दिल्ली का खिताब दिया गया। उन्होंने बताया कि बावड़ी में नीचे कुआं है जिसका आधार लकड़ी का बनाया गया है। जामुन की लकड़ी से बनाया गया आधार आज भी उसी स्थिति में है। पांच साल पहले कुएं की गाद को मजदूरों के माध्यम से बाहर निकाला गया। उन्होंने बताया कि बावड़ी में कुल सात स्रोत हैं जिनसे अलग अलग तरह का पानी निकलता है।
रोगों से मुक्ति के लिए आते हैं श्रद्धालु
बताया जाता है कि बावड़ी के पानी में गंधक की मात्रा ज्यादा है। यहां चर्मरोग, कुष्ट रोग सहित अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीज स्नान करने आते हैं। श्रद्धालु बावड़ी में नहाते के साथ बावड़ी का पानी लेकर जाते हैं। हालांकि, वैज्ञानिक इस तर्क से सहमत नहीं हैं, लेकिन लोगों की आस्था अब भी बरकरार है।
700 साल पहले निर्मित बावड़ी को फिलहाल मरम्मत की जरूरत है। बावड़ी में प्लास्टिक की गिलास, पत्तल इत्यादि तैरते नजर जाएंगे। इस मामले में निजामी की दलील है कि हवा बहने के दौरान आसपास के मकानों से ये समान उड़कर बावड़ी में गिर जाते हैं। इसके अलावा दरगाह में आने वाले भिखारियों में जागरूकता होने की वजह से भी गंदगी की समस्या है। बावड़ी की सीढ़ियां टूटी हुई हैं। ड्रेस चेंजिंग रूम में केवल पर्दा लटका हुआ है।
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