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Dussehra 2022: निकाल दीजिए अपने मन में बसे रावण के ये 5 भाव, हर हाल में मिलेगी सफलता

Dussehra 2022 रावण दरअसल प्रतीकात्मक रूप में कई बुराइयों का समूह है। जब मनुष्य इन बुराइयों को खुद में समाहित करता है तो वह अपना नुकसान ही करता है। ईर्ष्या-द्वेष और लालच का भाव ही मनुष्य की बर्बादी का कारण बनता है।

By Jp YadavEdited By: Published: Tue, 04 Oct 2022 04:03 PM (IST)Updated: Wed, 05 Oct 2022 04:34 AM (IST)
Dussehra 2022: निकाल दीजिए अपने मन में बसे रावण के ये 5 भाव, हर हाल में मिलेगी सफलता
हिंसा के प्रतीक रावण की प्रतीकात्मक फोटो।

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। Dussehra 2022 : दिल्ली-एनसीआर समेत देश भर में दशहरा पर्व बुधवार (5 अक्टूबर) को धूमधाम से मनाया जाएगा। रामलीला मंचन के अंतिम चरण में सदियों से रावण दहन की परंपरा है। यह परंपरा आज भी बरकरार है। क्या आप जानते हैं कि रावण दहन से कई सीख भी मिलती है, जिसे अपना कर कोई भी शख्स अपनी भीतर के रावणों को खत्म कर सकता है। 

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1. ईर्ष्या: सीता के स्वयंबर में रावण भी सम्मिलत हुआ था, लेकिन वह शर्त के अनुसार धनुष नहीं उठा सका। उधर, रामचंद्र ने धनुष उठाया, जिसके बाद राम और सीता का विवाह हुआ। रावण को चाहिए था कि वह इस सच को स्वीकार कर लेते, लेकिन वह राम से ही ईर्ष्या रखने लगा था। इसी ईर्ष्या की वजह से आखिरकार राम-रावण के बीच युद्ध हुआ। रावण के कुल के सभी लोग मारे गए, सिर्फ विभीषण ही बचा। कुलमिलाकर दिल में ईर्ष्या नहीं रखनी चाहिए। ईर्ष्या की वजह से इंसान का विवेक ही खत्म हो जाता है और फिर अंत बेहद दर्दनाक होता है।

2. अहंकार: 'आवेला जवानी बड़ा जोर हो जाला, कोई लुटेरा तो कोई चोर हो जाला' भोजपुरी का यह एक प्रसिद्ध गीत है। इसका आशय यह है कि सत्ता मिलने पर अमूमन लोग अहंकारी हो जाते हैं। रावण के साथ भी ऐसा ही था। इतना बड़ा साम्राज्य होने के बावजूद उसमें अहंकार आ गया था। राम से प्रतिशोध के भाव में वह इस कदर डूब गया था कि उसे भले-बुरे का ध्यान भी नहीं रहा। आखिरकार राम से युद्ध में रावण ने अपने भाइयों, बेटों और पूरे साम्राज्य को खो दिया। 

3. प्रतिशोध : बदले की भावना इंसान को एक दिन बहुत नुकसान पहुंचाती है। यह एक ऐसा भाव है, जो मनुष्य को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है। इसका अंत कभी-कभी सर्वनाश के साथ होता है। रावण ने भी प्रतिशोध में सबकुछ खो दिया। सुपर्णखा की नाक कटने के बाद रावण ने राम को अपना प्रतिद्वंद्वी मान लिया। इसके कारण उसने सीता का हरण किया और राम-रावण युद्ध हुआ, जिसमें लंकापति रावण का सर्वनाश हो गया।

4. लालच-लोभ: लालच और लोभ का भाव मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसके चलते कभी-कभी मनुष्य अपना सबकुछ खो देता है। लालच मनुष्य का स्वाभाविक भाव है, लेकिन इस पर काबू पाना भी उसके वश में हैं। अधिक से अधिक पाने की चाहत ही एक दिन मनुष्य को लालच और लोभ के छलावे में भटका देती है। 

5. क्रोध: अगर मनुष्य क्रोध के परिणाम से भिज्ञ हो तो वह ऐसी गलती कभी नहीं करेगा। अमूमन ऐसा होता नहीं है। क्रोध के ही भाव में व्यक्ति अपना सबकुछ समाप्त कर लेता है।क्रोध हमारे मन को भी विकृत बना देता है। ऐसे लोगों को चाहिए कि ऐसे भाव को बाहर निकाल देना चाहिए और अपने भीतर क्षमा, दया के साथ सरलता का दीपक जलाना चाहिए।

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