जनजातियों का सशक्तीकरण संस्कृति से समझौता करके नहीं हो सकता, मंत्री किरन रिजिजू ने मतांतरण पर भी जताई चिंता
केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने कहा कि जनजातीय समाज का देश के विकास में बड़ा योगदान है, लेकिन उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं। उन्होंने आद ...और पढ़ें

किरन रिजिजू।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के 'जनपद संपदा' विभाग की ओर से आयोजित 'ज्ञानपथ शृंखला' के तहत ‘भारतीय जनजातीय समाज: शिक्षित एवं सशक्त भूमिका में आत्मनिर्भरता की ओर' पुस्तक का लोकार्पण करते हुए केंद्रीय संसदीय कार्य एवं अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरन रिजिजू पहुंचे।
उन्होंने कहा कि देश के विकास और स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समाज का योगदान बहुत बड़ा है, लेकिन आजादी के दशकों बाद भी उन्हें वह सम्मान और स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार है। उन्होंने आगे कहा कि आदिवासियों के सशक्तीकरण के नाम पर उनकी सांस्कृतिक पहचान से समझौता नहीं किया जाना चाहिए।
इसके अलावा केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सेवा के नाम पर जनजातीय समाज का मतांतरण उनकी पहचान को खत्म करने का प्रयास है। अगर सशक्तीकरण के नाम पर उनके कल्चर को डाइल्यूट कर देंगे तो उस सेवा का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार में पहली बार तीन जनजातीय मंत्री बनाए गए हैं और 15 नवंबर को 'जनजातीय गौरव दिवस' घोषित कर भगवान बिरसा मुंडा सहित समस्त आदिवासी समाज को वास्तविक सम्मान दिया गया है।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातीय आयोग के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्य व सदस्य डाॅ. आशा लकड़ा ने जनजातीय विमर्श और नीतिगत प्रयासों पर प्रकाश डाला। पुस्तक की लेखिका डाॅ. स्वीटी तिवारी ने कहा कि जनजातीय समाज ने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी संस्कृति की लौ को जलाए रखा।
उन्होंने 'गंगा- दामोदर तहजीब' का जिक्र करते हुए आदिवासी समाज की उपेक्षा पर कटाक्ष किया। कार्यक्रम में आईजीएनसीए के प्रो. के अनिल कुमार और वनवासी कल्याण आश्रम के सुरेश कुलकर्णी सहित कई विद्वान उपस्थित रहे।
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