आयुर्वेदिक डॉक्टरों को सर्जरी की मंजूरी पर गहराया विवाद, आंध्र सरकार के फैसले का IMA ने किया कड़ा विरोध
आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा आयुर्वेदिक चिकित्सकों को सर्जरी की अनुमति देने के फैसले पर विवाद छिड़ गया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने इसका कड़ा वि ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश सरकार की आयुर्वेदिक चिकित्सकों को कुछ सर्जिकल प्रक्रियाएं करने की अनुमति दिए जाने के फैसले ने देश के चिकित्सा समुदाय में तीखी बहस छेड़ दी है। इस निर्णय को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए इसे मरीजों की सुरक्षा से जुड़ा गंभीर मामला बताया है। आईएमए का कहना है कि इस तरह के कदम से न केवल चिकित्सा शिक्षा की स्थापित प्रणाली कमजोर होगी, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
आईएमए ने बताया विरोध का कारण
आईएमए ने स्पष्ट किया है कि सर्जरी एक अत्यंत जटिल और उच्च जोखिम वाली चिकित्सा प्रक्रिया है। इसके लिए वर्षों तक संरचित, वैज्ञानिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण अनिवार्य होता है। एसोसिएशन का तर्क है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति में सर्जनों को लंबी अवधि की पढ़ाई, इंटर्नशिप और सुपर स्पेशियलिटी प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है, ताकि किसी भी आपात स्थिति से सुरक्षित ढंग से निपटा जा सके।
'सर्जरी की अनुमति देना मरीजों के हित में नहीं'
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. दिलीप भानुशाली ने कहा कि एसोसिएशन आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों के महत्व को नकारता नहीं है। उन्होंने कहा कि ये पद्धतियां निवारक, प्रोमोटिव और समग्र स्वास्थ्य देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन सर्जरी जैसे इनवेसिव हस्तक्षेपों के लिए अलग स्तर की विशेषज्ञता आवश्यक होती है। बिना समान प्रशिक्षण और मानकों के सर्जरी की अनुमति देना मरीजों के हित में नहीं है।
जवाबदेही तय करना मुश्किल
आईएमए की आपत्ति के बाद अन्य चिकित्सीय संगठनों ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन और उत्तराखंड मेडिकल एसोसिएशन ने भी कहा है कि चिकित्सा की अलग-अलग पद्धतियों के बीच स्पष्ट सीमाएं बनाए रखना जरूरी है। उनका मानना है कि ‘मिक्सोपैथी’ जैसी व्यवस्था से भ्रम की स्थिति पैदा होती है और जवाबदेही तय करना मुश्किल हो जाता है।
आंध्र प्रदेश सरकार से पुनर्विचार की अपील
आईएमए ने आंध्र प्रदेश सरकार से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने और मरीजों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की अपील की है। संगठन का कहना है कि स्वास्थ्य नीति में किसी भी बदलाव से पहले व्यापक परामर्श, वैज्ञानिक मूल्यांकन और राष्ट्रीय स्तर पर सहमति आवश्यक है।

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