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    फर्जी डोमेन से चल रहे घोटालों पर दिल्ली हाईकोर्ट सख्त, डोमेन पंजीकरण के लिए ई-केवाईसी किया अनिवार्य

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 05:47 PM (IST)

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फर्जी वेबसाइटों से होने वाले ऑनलाइन घोटालों पर लगाम लगाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। अब डोमेन नाम पंजीकरण के लिए ई-केवाईसी अनि ...और पढ़ें

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    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। लोकप्रिय ब्रांडों की नकल करने वाली फर्जी वेबसाइटों के माध्यम से चलाए जा रहे ऑनलाइन घोटालों पर अंकुश लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने डोमेन नाम पंजीकरण के लिए ई-केवाईसी को अनिवार्य कर दिया है। साथ ही, कोर्ट ने पंजीकरणकर्ता के विवरणों की स्वचालित गोपनीयता छिपाने पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह की पीठ ने बैंकों को भी निर्देश दिया है कि वे भोले-भाले उपभोक्ताओं को धोखाधड़ी से बचाने के लिए भुगतान सत्यापन सुरक्षा उपायों को मजबूत करें।

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    अदालत ने ये निर्देश कई व्यावसायिक मुकदमों के संबंध में जारी किए गए हैं। इनमें कई ट्रेडमार्क मालिकों ने शिकायत की थी कि अज्ञात व्यक्ति उनके ट्रेडमार्क का उपयोग करके भ्रामक डोमेन नाम पंजीकृत कर रहे थे और उनका उपयोग फर्जी वेबसाइट चलाने के लिए कर रहे थे। इन वेबसाइटों ने असली ब्रांड्स की नकल की और लोगों को नौकरी, फ्रेंचाइजी या डिस्ट्रीब्यूटरशिप के बहाने पैसे ट्रांसफर करने के लिए उकसाया। इस मामले में कई जाने-माने ट्रेडमार्क का गलत इस्तेमाल किया गया। इनमें विशेष रूप से टाटा स्काई, अमूल, बजाज फाइनेंस, डाबर, मीशो, क्रोमा, कोलगेट और आईटीसी शामिल हैं।

    अदालत ने मामले पर निर्देश दिया कि डोमेन नेम रजिस्ट्रार और रजिस्ट्री आपरेटरों को कोर्ट के आदेश मिलने पर उल्लंघन करने वाले डोमेन नेम को तुरंत लाक, निलंबित या ब्लाक करना होगा। साथ ही रजिस्ट्रारों को ट्रेडमार्क मालिकों या कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा मांगे जाने पर 72 घंटे के भीतर रजिस्ट्रेंट की पूरी जानकारी सुरक्षित रखनी होगी और उसे सार्वजनिक करना होगा। अदालत ने निर्देश दिया कि अवैध या धोखाधड़ी वाली गतिविधि के लिए इस्तेमाल किए गए डोमेन नेम को स्थायी रूप से ब्लाॅक किया जाना चाहिए और उन्हें दोबारा रजिस्ट्रेशन के लिए उपलब्ध नहीं कराया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा इलेक्ट्राॅनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और दूरसंचार विभाग जैसे सरकारी अधिकारियों को नियमों का पालन न करने वाले रजिस्ट्रारों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। याचिका में ट्रेडमार्क मालिकों ने तर्क दिया कि मौजूदा व्यवस्था पर्याप्त नहीं थी क्योंकि रजिस्ट्रेंट की पहचान को अक्सर निजी सुरक्षा सुविधाओं के माध्यम से छिपा दिया जाता था।

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