Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    करघे की खट-खट में छिपा भारत का 1500 साल पुराना इतिहास, दिल्ली में सजी अनोखी वस्त्र प्रदर्शनी 'अभिव्यक्ति'

    Updated: Wed, 31 Dec 2025 08:13 AM (IST)

    जनपथ स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में 'अभिव्यक्ति' वस्त्र प्रदर्शनी लगाई गई है। यह प्रदर्शनी 7वीं से 20वीं शताब्दी तक के भारतीय ...और पढ़ें

    Hero Image

    नपथ स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में अभिव्यक्ति ,वस्त्र प्रदर्शनी देखती युवतियां। हरीश कुमार  

    शशि ठाकुर, नई दिल्ली। कहते हैं कि भारत को समझना हो तो यहां के करघे की खट-खट, धागों और रंगों के संबंधों को समझना होगा। यहां एक तरफ 12 वीं शताब्दी की जामदानी अपनी सूक्ष्मता से बंगाल की नजाकत बयां कर हैं तो दूसरी तरफ नक्शी कांथा के टांकों में पूर्व- वैदिक काल की स्मृतियां आज भी सांस ले रही हैं।्र

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जनपथ स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में अभिव्यक्ति एक्सप्रेशन आफ द लूम फ्राॅम द वाॅल्ट ऑफ ए विजिनरी वस्त्र प्रदर्शनी के सातवीं शताब्दी से लेकर 20 वीं शताब्दी के कालखंडों की कहानी को दर्शाया गया है। वस्त्र प्रदर्शनी एक सुई और धागे के विभिन्न रंगों ने सहस्राब्दियों के इतिहास को अपने भीतर समेटे हुए है।

    गुजरात की 'माता-नी-पछेड़ी' और कच्छ का कौशल

    यहां गुजरात की गलियों से आई 'माता-नी-पछेड़ी' की प्रदर्शनी वाघरी समुदाय के प्रतिरोध और अटूट विश्वास की एक पावन गाथा प्रस्तुत कर रहा है। 17 वीं शताब्दी की कलमकारी और ब्लाक प्रिंटिंग में उभरता देवी का स्वरूप कला और अध्यात्म के बीच का भेद मिटा रहा है।

    इसके अलावा कच्छ की हड्डियों को कंपा देने वाली हवाओं को मात देती वणकर समुदाय की भुजोड़ी और धाबला शाल ऊन और ब्रोकेड का जादुई कौशल है, जो 15 वीं सदी से लेकर आधुनिकता के दौर में जीवित है। जो विरासत की तरह पिताओं से पुत्रों को मिल रही है।

    मिट्टी की सोंधी महक और रंगों का उत्सव ओडिशा के मिरगन आदिवासियों का कोटपाड़ हैंडलूम हो या भुलिया समुदाय की बोमकाई साड़ी, इनका हर धागा प्रकृति और इंसान के गहरे जुड़ाव की कहानी कह रहा है।

    यहां बोमकाई में रेशम का राजसी वैभव झलक रही है। वहीं महाराष्ट्र की वारली पेंटिंग अब दीवारों की परिधि को लांघकर सिल्क की साड़ियों पर अपनी जनजातीय कला का जादू बिखेर रही है।

    यह भी पढ़ें- 2025 को अलविदा और नए साल के स्वागत के लिए NCR तैयार, दिल्ली समेत आसपास के शहरों में कैसे हैं इंतजाम?