निर्भया कांड के 13 साल बाद भी 'निर्भय' नहीं हो सकी दिल्ली, नाबालिगों के जुर्म की बन रही राजधानी
दिल्ली में निर्भया कांड के 13 साल बाद भी महिलाओं की सुरक्षा एक चिंता का विषय बनी हुई है। हाल ही में नरेला इंडस्ट्रियल एरिया में एक बच्ची के साथ दुष्कर ...और पढ़ें

निर्भया सामूहिक दुष्कर्म केस की सांकेतिक तस्वीर। सौजन्य- जागरण ग्राफिक्स
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। हाल ही में नरेला इंडस्ट्रियल एरिया से चार साल की बच्ची का अपहरण कर उसे हवस का शिकार बनाया गया। आरोपित नशे में धुत था। बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा जहां कई दिनों तक उसका इलाज चला।
बच्ची जब घर से मदरसा जा रही थी तभी आरोपित ने उसे अगवा कर अपने घर में ले जाकर वारदात को अंजाम दिया। इस बार बाहरी जिला पुलिस ने 13 नाबालिगों पर बालिग की तरह मुकदमा चलाने के लिए कोर्ट से अनुमति ली। यह स्थिति तब है जब देश-विदेश की सुर्खियां बनी निर्भया सामूहिक दुष्कर्म की घटना को 13 साल बीत गए।
घटना के बाद बड़े स्तर पर हुआ बदलाव
वसंत विहार की इस घटना के बाद कानून में बड़े स्तर पर बदलाव हुआ, सख्त सजा का प्रविधान आया, थानों में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढाई गई, हर थाने में एकल हेल्प डेस्क बनाया गया, पूरी दिल्ली में सभी क्षेत्रों में वाहनों की नियमित जांच के नियम बनाए गए, दुष्कर्म व छेड़खानी की घटनाओं को बेहद संजीदगी से लिया जाने लगा, तेजी से सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बने, पुलिस अधिकारियों व कर्मियों का माइंड सेट बदला।
बावजूद इसके महिलाएं निर्भीक नहीं हो पा रही हैं। दुष्कर्म के मामलों में किसी तरह की कमी के संकेत नहीं हैं। बल्कि मासूम बच्चियों से दुष्कर्म के मामले भी लगातार सामने आने लगे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म में नाबालिगों की संलिप्तता बढ़ गई है।
राष्ट्रीय राजधानी में इस वर्ष दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म के 92 ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें नाबालिग आरोपित थे। इन मामलों में 136 नाबालिग पकड़े भी गए हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि अपराध के मामलों में कमी नहीं इसलिए नहीं आ रही क्योंकि समाज के सोच के स्तर पर बदलाव नहीं आया, जिसकी बहुत जरूरत है।
परिवार में बच्चों को बैड टच, गुड टच व यौन से संबंधी जानकारी दी जानी चाहिए। स्कूलों में यौन से संबंधी पढा़ई अनिवार्य की जानी चाहिए। उन्हें जागरूक करने की जरूरत है तभी वे समझेंगे कि क्या अच्छा है और क्या बुरा चीज है। गलत काम करने पर उसका दुष्प्रभाव कितना भयानक हो सकता है, तभी उनमें डर पैदा होगा और इस अपराध में कमी आ सकती है।
निगरानी बढ़ने से सुनी जाने लगीं शिकायतें
16 दिसंबर 2012 यानी निर्भया की घटना से पहले थाने में महिलाओं व बच्चियों के साथ दुष्कर्म व छेड़खानी आदि से संबंधित शिकायतें आने पर कई बार एसएचओ केस दर्ज करने को लेकर टालमटोल भी करते थे, लेकिन अब महिलाओं से संबंधित दुष्कर्म व छेड़खानी आदि की शिकायतें आने पर उसे बहुत ही गंभीरता से लिया जाता है।
पीड़िता का तुरंत मेडिकल जांच करवा केस दर्ज कर लिया जाता है। क्योंकि अब कई स्तर पर निगरानी की जाती है। दरअसल निर्भया के बाद जीरो एफआइआर का प्रविधान हो गया। अगर किसी थाने में किसी महिला की शिकायत पर पुलिसकर्मी कोई कार्रवाई नहीं करता है तब वह किसी अन्य थाने में जाकर भी केस दर्ज करवा सकती है।
इसके बाद संबंधित एसएचओ को जवाब देना महंगा पड़ जाता है। इसलिए किसी न किसी डर से महिलाओं से संबंधित अपराध को बेहद गंभीरता से लिया जाता है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि निर्भया के बाद संबंधित एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ा। एनजीओ व पुलिस दोनों के स्तर पर कई तरह की योजना लाकर लोगों को पाक्सो जैसे कड़े कानून व जेजे एक्ट के बारे में जागरूक किया गया।
नाबालिग क्यों हो रहे संलिप्त
पुलिस अधिकारी का कहना है कि अपराध के बारे में जागरूकता की कमी, स्कूल छोड़ना, खराब निगरानी, परेशान करने वाला घरेलू माहौल, गलत दोस्तों का असर और नुकसानदायक सामाजिक व्यवहार के संपर्क में आना, अक्सर नाबालिगों को अपराधों की ओर धकेल रहा है। नाबालिग ड्रग्स के नशे में चोरी और लूटपाट आदि किसी भी तरह के अपराधिक वारदात करने से नहीं चूक रहे हैं।
सोशल मीडिया पर मौजूद अश्लील सामग्री पर जल्द प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। किशोर वर्ग कहीं न कहीं इस दुष्प्रभाव के शिकार हो रहे हैं। निर्भया मामले के जांच अधिकारी रहे सेवानिवृत्त एसीपी राजेंद्र सिंह का कहना है कि संयुक्त परिवार का चलन कम होने से बच्चों में भटकाव आ रहा है।

पहले बच्चे ज्वाइंट फैमिली में बड़े होते थे, जहां वे अपने चचेरे भाइयों और बहनों के साथ बाहर खेलते थे, एक साथ नई चीजें सीखते थे और मजबूत, सामूहिक पेरेंटिंग से फायदा उठाते थे। उनके भटकने की गुंजाइश कम थी। उन्होंने कहा समय के साथ, यह ढांचा खत्म हो गया। आज, बच्चों को अक्सर लाड़-प्यार किया जाता है और उनकी मांगें तुरंत पूरी की जाती हैं। और जब ऐसा नहीं होता, तो कुछ अपराध की ओर मुड़ सकते हैं।
दिल्ली में पिछले वर्ष की तुलना में कमी (पूर्ण वर्ष)
| अपराध | वर्ष 2023 | वर्ष 2024 |
|---|---|---|
| दुष्कर्म | 2141 | 2076 |
| छेड़खानी | 2345 | 2037 |
केस सुलझाने की दर
| अपराध | वर्ष 2024 | वर्ष 2025 |
|---|---|---|
| दुष्कर्म | 97.66% | 97.06% |
| छेड़खानी | 93.67% | 93.97% |
अन्य शहरों की स्थिति
गुरुग्राम
- इस साल बच्चियों के साथ दुष्कर्म के 142 केस सामने आए।
- दुष्कर्म के 22 मामलों में नाबालिग को दोषी करार दिया गया।
- बाल सुधार गृह की स्थिति: गुरुग्राम में कोई बाल सुधार गृह नहीं है। यहां के नाबालिगों को फरीदाबाद के बाल सुधार गृह में भेजा जाता है।
गाजियाबाद
- दुष्कर्म के 84 मामले सामने आए, जिनमें से 13 मामले में नाबालिग शामिल थे।
- लिंक रोड थानाक्षेत्र में 15 जनवरी को छह साल की मासूम को दुष्कर्म के बाद गला दबाकर हत्या कर दी गई। कोर्ट ने तीन माह में ही सुनवाई पूरी कर 19 साल के नूर आलम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
सोनीपत
- इस साल नाबालिग से दुष्कर्म और दुष्कर्म के प्रयास के दो मामले सामने आए। जिस बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ वह पांचवीं कक्षा की छात्रा थी। जबकि आरोपित उसी के स्कूल में पढ़ने वाला नौंवी कक्षा का छात्र था।
- चार अक्टूबर को गोहाना में एक व्यक्ति ने करीब नौ साल की बच्ची को अगवा कर उसके साथ दुष्कर्म की कोशिश की, लेकिन बच्ची के चिल्लाने पर वह मौके से भाग गया।
रेवाड़ी
- वर्ष 2025 के दौरान बच्चों से दुष्कर्म के 11 मामले एवं छेड़छाड़ के 43 मामले दर्ज किए गए हैं।
- आरोपितों में आठ नाबालिग थे।
- इस वर्ष नाबालिग से दुष्कर्म एवं छेड़छाड़ के मामले में 28 दोषियों को सजा सुनाई गई है। इनमें आठ नाबालिग भी शामिल हैं।
फरीदाबाद
- एक साल में POCSO के तहत 123 मुकदमे दर्ज हुए हैं।
- दुष्कर्म के इन मामलों में तीन नाबालिग आरोपित थे।
- इस साल एक भी मामले में नाबालिग को सजा नहीं हुई।
- जिले में एक बाल सुधार गृह है। इसमें 322 नाबालिग को रखा गया है। इसकी क्षमता 480 बंदियों को रखने की है।
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