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    कबूतर प्रेम से फैल रहीं खतरनाक बीमारियां, दिल्ली में एनजीटी की नोटिस के बाद भी एमसीडी बनी है सुस्त

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 12:06 AM (IST)

    मुंबई में कबूतरों को दाना खिलाने पर जुर्माने के बाद दिल्ली में भी यह समस्या गंभीर हो गई है। कबूतरों की बढ़ती संख्या और दाना डालने की प्रवृत्ति से सिटा ...और पढ़ें

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    राजघाट के समीप रिंग रोड के किनारे कबू्तरों को दाना देता युवक। जागरण आर्काइव

    अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। मुंबई में कबूतर को दाना डालने पर कोर्ट ने पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। यह बताता है कि कबूतरों को दाना डालने की प्रवृत्ति चिंता का कारण बन गई है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही है। राष्ट्रीय राजधानी भी इस समस्या से अछूती नहीं है। यहां भी जगह-जगह कबूतरों को डाला डालने की प्रवृत्ति बड़ी समस्या हो चुकी है।

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    चिकित्सकों और पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनियों के बावजूद दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) इन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहा। यही वजह है कि जून में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के नोटिस के बाद भी दिल्ली में जमीनी स्तर पर अब तक कोई ठोस बदलाव नजर नहीं आ रहा। प्रतिबंध के नाम पर निगम की कार्रवाई सिर्फ एडवाइजरी तक ही सीमित है।

    विशेषज्ञों के अनुसार, जब तक दाना डालने पर प्रभावी रोक, कानूनी सख्ती और जन-जागरूकता अभियान एक साथ लागू नहीं किए जाते, तब तक कबूतरों से जुड़ा यह संकट और गहराता जाएगा। कबूतर शहरी जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उनकी अनियंत्रित संख्या और अंधविश्वास आधारित दाना डालने की प्रवृत्ति गंभीर स्वास्थ्य, पर्यावरण और आर्थिक संकट बन चुकी है। दाना डालना कम करना, जागरूकता अभियान तेज करना और कानून का सख्त पालन ही इससे बचाव का एकमात्र रास्ता है।

    कबूतर प्रेम से बढ़ रही हैं गंभीर बीमारियां

    दिल्ली में कबूतरों की कोई आधिकारिक गणना नहीं होती, लेकिन समय-समय पर हुए पर्यावरणीय अध्ययनों के आधार पर एनसीआर में इनकी संख्या 10 लाख से अधिक बताई जाती है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, कबूतरों की बीट व पंखों से फैलने वाली सिटाकोसिस जैसी बीमारियां फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा रही हैं।

    कबूतरों की बीट और पंखों से निकलने वाले सूक्ष्म कण हवा में घुलकर इंसानी शरीर में प्रवेश कर श्वसन तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। दिल्ली में गंभीर वायु प्रदूषण के बीच यह खतरा और भी बढ़ गया है। इससे बच्चों और बुजुर्गों के लिए खतरा और बढ़ गया है। बावजूद इसके, सार्वजनिक स्थानों पर दाना डालने की परंपरा बेरोकटोक जारी है, इसे लेकर प्रशासनिक उदासीनता सवालों के घेरे में है।

    एनजीटी का नोटिस, कार्रवाई में सुस्ती

    सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरे को देखते हुए एनजीटी ने दिल्ली सरकार, एमसीडी, एनडीएमसी और लोक निर्माण विभाग को जून माह में नोटिस जारी किया था। बावजूद इसके, अब तक दाना डालने पर पूर्ण प्रतिबंध या सख्त निगरानी व्यवस्था लागू नहीं हो सकी। एमसीडी की ओर से सार्वजनिक स्थानों पर दाना डालने को लेकर एडवाइजरी जारी की गई है और उल्लंघन पर 200 से 500 तक का चालान करने का प्रावधान बताया। पर, निगम की ओर से यह प्रावधान लागू किया गया या नहीं, अब तक कुल कितने चालान हुए, इसका कोई स्पष्ट और सार्वजनिक आंकड़ा अब तक सामने नहीं आया है।

    शहर का ढांचा बना कबूतरों का सुरक्षित ठिकाना

    पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार, बढ़ते फ्लाईओवर ऊंची इमारतें, पुराने खंडहर, शिकारी पक्षियों की कमी ने कबूतरों को दिल्ली में सुरक्षित ठिकाना उपलब्ध करा रखा है। ऊपर से लोगों की इन्हें दाना डालने की आदत ने इनकी संख्या और तेजी से बढ़ा दी है।

    स्वास्थ्य ही नहीं, आर्थिक नुकसान भी

    कबूतरों की बीट अम्लीय होती है, जो इमारतों, स्मारकों और वाहनों को नुकसान पहुंचाती है। घरों में जाल, स्पाइक्स और बार-बार सफाई पर होने वाला खर्च आम लोगों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डाल रहा है। ऐतिहासिक स्मारकों की सफाई और संरक्षण पर सरकार को हर वर्ष भारी रकम खर्च करनी पड़ रही है।

    ‘कबूतरों से फैलने वाली सबसे खतरनाक बीमारी सिटाकोसिस है। यह क्लैमाइडिया सिटासी नामक बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण है, जो कबूतरों की बीट, पंख और श्वसन स्राव में पाया जाता है।’

    -डाॅ. राहुल शर्मा, अतिरिक्त निदेशक (पल्मोनोलाजी व क्रिटिकल केयर), फोर्टिस अस्पताल

    ‘सिटाकोसिस के अलावा कबूतरों से कई अन्य गंभीर बीमारियां भी फैल रही हैं, जिनमें हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (एचपी), क्रिप्टोकोकोसिस, हिस्टोप्लास्मोसिस, इन बीमारियों में फेफड़ों में सूजन, सांस की तकलीफ, अस्थमा और निमोनिया तेजी से बढ़ता है।’

    -डाॅ. गिरीश त्यागी, अध्यक्ष दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन

    ‘कुछ जोन में अधिकारियों, जोनल उपायुक्त ने प्रयोग के तौर पर इसको लेकर कार्य किया था। देखा जाएगा कि आखिर वह क्यों बंद हो गया और दूसरे जोन में कैसे लागू किया जा सकता है। पब्लिक हेल्थ और पशु चिकित्सा विभाग को साथ बैठाकर इस पर चर्चा की जाएगी।’

    -राजा इकबाल सिंह, महापौर, दिल्ली

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