दुष्कर्म केस में पीड़िता को न्याय, दिल्ली हाईकोर्ट ने डीएसएलएसए को दिए मुआवजा देने के निर्देश
दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी की सजा बरकरार रखी है। कोर्ट ने दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना-2018 के तहत पीड़िता को अधिकतम मुआवजा देने का ...और पढ़ें

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। नाबालिग से दुष्कर्म करने के मामले के तथ्याें को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने दोषी की सजा को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता को दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना-2018 के तहत अधिकतम मुआवजा देने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता को पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया था, लेकिन प्रकरण के तथ्यों को देखते हुए दिल्ली राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकरण (डीएसएलएसए) के सदस्य सचिव को निर्देश दिया जाता है कि पीड़िता को योजना के तहत दो सप्ताह के अंदर अधिकतम मुआवजा का लाभ देना सुनिश्चित कराए।
वहीं, मोहम्मद हसमुद्दीन व मोहम्मद आबिद को दोषी करार देने के ट्रायल कोर्ट के फरवरी 2018 को दिए गए निर्णय को बरकरार रखते हुए पीठ ने कहा कि पीड़िता के बयान के साथ ही मामले में जुटाए गए सुबूत व फोरेंसिक जांच रिपोर्ट से स्पष्ट है कि अपीलकर्ता ने अपराध को अंजाम दिया था। पीठ ने कहा कि मामले में न सिर्फ समय पर प्राथमिकी हुई थी, बल्कि आबिद व हसमुद्दीन को पीड़िता द्वारा पहचान किए जाने पर घटना के दिन ही गिरफ्तार किया गया था।
दोषी करार देने के निर्णय को बरकरार रखते हुए दुष्कर्म पीड़िता को बकाया मुआवजा देना सुनिश्चित करने का डीएसएलएसए को निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि मामले में पेश किए तथ्यों व फाेरेंसिक साक्ष्य को देखते हुए दोषी करार देने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की जाती है। अदालत ने डीएसएलएसए को दो सप्ताह के अंदर मुआवजा राशि पीड़िता को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। पाक्सो के तहत 2015 में दर्ज हुई प्राथमिकी के मामले में ट्रायल कोर्ट ने 2018 में अपीलकर्ता मोहम्मद आबिद को दोषी करार दिया था।
याचिका के अनुसार केशवपुरम थाना क्षेत्र में अपीलकर्ताओं ने पहले युवती को रुपये देने की पेशकश की थी और जब उसने इन्कार किया तो दोनों उसे जबरदस्ती घटनास्थल पर लेकर गए थे। वहां पर एक अपीलकर्ता आबिद ने उसके साथ दुष्कर्म किया था, जबकि हसमुद्दीन वहां पर खड़ा था।

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